कानपुर में खेतों से संचालित साइबर गिरोह का भंडाफोड़, अश्लील वीडियो के नाम पर ठगी… DCP का नाम लेकर करते थे वसूली
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कानपुर: खेतों से चल रहा था साइबर ठगी का हाईटेक नेटवर्क
उत्तर प्रदेश के कानपुर में साइबर क्राइम टीम ने एक ऐसी वारदात का खुलासा किया है जिसने पुलिस और आम लोगों दोनों को चौंका दिया है. पुलिस ने जिस गैंग को गिरफ्तार किया, वह वर्षों से खेतों, ट्यूबवेल और ग्रामीण इलाकों में पानी की टंकी के पास बैठकर करोड़ों रुपये की ठगी को अंजाम दे रहा था. आरोपियों की कार्यशैली इतनी चतुराई से डिजाइन की गई थी कि पीड़ित उनके जाल में आसानी से फंस जाते थे. यह पूरा नेटवर्क अश्लील साइट और वीडियो देखने के आरोप में लोगों को फंसाकर वसूली करता था. खास बात यह है कि आरोपी खुद को साइबर क्राइम ब्रांच का अधिकारी और कानपुर डीसीपी क्राइम अतुल श्रीवास्तव बताकर लोगों से पैसे वसूल रहे थे. पर विडंबना देखिए कि जिस अधिकारी के नाम पर गिरोह ने ठगी की, अंत में उसी अधिकारी की टीम ने गिरोह को दबोच लिया
शिकायत से खुला पूरा मामला, कॉल पर मिली धमकी
यह मामला श्रावस्ती जिले के रहने वाले प्रमोद चौहान की शिकायत के बाद खुला. प्रमोद को एक अनजान कॉल आया, जिसमें कॉलर ने जोरदार आवाज में कहा, मैं क्राइम ब्रांच से बोल रहा हूं. तुम अश्लील वीडियो देखते हो. तुम्हारा नंबर प्रतिबिंब पोर्टल से मिला है. हमारे अधिकारी तुमसे बात करेंगे. इसके बाद फोन उसी कॉलर के हाथ से जाकर एक कथित डीसीपी के पास माना गया, जिसने प्रमोद से कठोर आवाज में कहा कि अगर तुरंत पैसे जमा नहीं कराओगे तो जेल जाना पड़ेगा. इस धमकी के डर से प्रमोद ने 42 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिए. बाद में जब उन्हें शक हुआ, तो उन्होंने केस की शिकायत साइबर क्राइम टीम से की
सर्विलांस, छापेमारी और गिरफ्तारी—गैंप का पर्दाफाश
शिकायत मिलते ही साइबर क्राइम टीम हरकत में आ गई. सर्विलांस के जरिए आरोपियों की लोकेशन का पता लगाया गया. लोकेशन कानपुर देहात के गजनेर क्षेत्र में मिली. बुधवार देर रात पुलिस टीम ने वहां छापा मारा और गिरोह के पांच सदस्यों को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार आरोपियों में अकबरपुर थाना क्षेत्र के नारायणपुर दुर्गापुर निवासी पंकज सिंह, गजनेर के मन्नहापुरवा निवासी सुरेश सिंह और उसके भाई दिनेश सिंह, बर्रा-2 निवासी अमन विश्वकर्मा और विनय सोनकर शामिल हैं. गिरोह का मुख्य सरगना संदीप सिंह फरार है, जिसकी तलाश जारी है
खेतों और ट्यूबवेल के पास बैठकर साइबर अपराध
यह गिरोह ग्रामीण इलाकों के खेतों में, पानी की टंकी के पास और ट्यूबवेल के किनारे बैठकर वारदातों को अंजाम देता था, ताकि कोई उस पर शक न कर सके. दूरदराज के स्थानों का चुनाव इसलिए भी किया जाता था ताकि पुलिस की नजर उन तक न पहुंच सके. आरोपी पेड़ों के नीचे मोबाइल फोन और लैपटॉप के सहारे एक के बाद एक रैंडम नंबर पर कॉल करते थे और लोगों को अश्लील वेबसाइट देखने का आरोप लगाते थे. झांसा इसी बात पर आधारित था कि पुलिस अधिकारी अश्लील वीडियो संबंधी अपराध में कार्रवाई करने के लिए फोन कर रहे हैं. पुलिस की प्रोफाइल फोटो और सरकारी नाम देखकर लोग डर जाते थे
डीसीपी क्राइम अतुल श्रीवास्तव के नाम का दुरुपयोग
आरोपी खुद को डीसीपी क्राइम अतुल श्रीवास्तव के रूप में पेश करते थे. उनके व्हाट्सएप नंबरों पर डीसीपी क्राइम की प्रोफाइल फोटो लगी होती थी. वे स्क्रीनशॉट भेजकर लोगों को विश्वास दिलाते थे कि यह कानूनी कार्रवाई है. इस डर से कई लोग बिना पूछताछ पैसे ट्रांसफर कर देते थे. इस बार भी ऐसा ही हुआ, लेकिन बदकिस्मती से आरोपियों को शायद यह नहीं पता था कि असली डीसीपी उनके पीछे लग चुके हैं
गिरोह कैसे तैयार करता था स्क्रिप्ट और मनोवैज्ञानिक दबाव
पुलिस जांच के अनुसार, आरोपियों ने एक स्क्रिप्ट तैयार कर रखी थी. पहले कॉल कर डराना, फिर सरकारी विभाग का नाम लेना, उसके बाद प्रतिबिंब पोर्टल का हवाला देना और अंत में डीसीपी बनकर धमकी देना. वे कहते थे कि तुम्हारा नंबर प्रतिबिंब पोर्टल पर दर्ज है जो अश्लील साइट देखने वालों की लिस्ट है. अगर तुरंत पैसा नहीं भेजा, तो FIR दर्ज होगी, वॉरंट जारी होगा और जेल जाना पड़ेगा. यह पूरी प्रक्रिया पीड़ित के दिमाग पर दबाव बनाती थी. धमकी देने के साथ-साथ आरोपियों की आवाज में सरकारी टोन और कानूनी शब्द भी होते थे
सरकारी एजेंसियों के नाम का फायदा उठाने वाली साइबर ठगी बढ़ रही
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, ठग अब सरकारी प्रोफाइल, पुलिस पहचान और अधिकारी टाइटल का इस्तेमाल करना शुरू कर चुके हैं. सरकारी पहचान का भय लोगों को मानसिक दबाव में डाल देता है. अगर कोई व्यक्ति इंटरनेट पर अश्लील सामग्री देख भी ले, तो क्या पुलिस फोन करके गिरफ्तारी की धमकी देती है? जवाब बिल्कुल नहीं. पर ठग इसी मनोविज्ञान का फायदा उठाते हैं
पीड़ितों ने पैसे भेजे, पर किसी ने शिकायत नहीं की
जांच में सामने आया है कि इस गिरोह ने अब तक दर्जनों लोगों को ठगा है. बहुत सारे मामलों में लोग शिकायत करने से डर गए क्योंकि वे सोचते थे कि कहीं सच में पुलिस जांच शुरू न हो जाए. शर्म, संकोच और डर के कारण लोग इस प्रकार के अपराध में नाम आने से कतराते हैं. साइबर ठग इसी कमजोरी को समझते हैं
पुलिस पूछताछ में चौंकाने वाले खुलासे
गिरफ्तार आरोपियों ने पूछताछ में कबूला है कि उन्होंने सैंकड़ों नंबरों पर कॉल की है. उनकी मोबाइल डिवाइस में रैंडम नंबरों की लिस्ट और लेन-देन के डिजिटल स्क्रीनशॉट मिले हैं. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क मजबूत है, लेकिन दूरदराज होने से पुलिस की मौजूदगी बहुत कम होती है. इसलिए उन्होंने खेतों को ठगी का अड्डा बना लिया
गिरोह का नेटवर्क, बैंक खातों की जांच शुरू
पहली नजर में यह गिरोह छोटे स्तर पर दिख रहा है, लेकिन पुलिस को शक है कि इसके पीछे बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है. गिरोह के बैंक खातों की जांच की जा रही है. डिजिटल पेमेंट रिकॉर्ड, यूपीआई ऐप और लेन-देन के इतिहास से पुलिस को उम्मीद है कि गिरोह से जुड़े और लोग भी पकड़े जाएंगे. कई खातों में लाखों रुपये जमा मिले हैं. यह भी जांच की जा रही है कि पैसा कैसे निकाला गया और किसके माध्यम से आगे भेजा गया
पुलिस की बड़ी चेतावनी—किसी कॉल का जवाब न दें
पुलिस ने साफ कहा है कि कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर गिरफ्तारी, जांच या एफआईआर की धमकी नहीं देती. अगर कोई भी कॉलर ऐसा दावा करे, तो तुरंत हेल्पलाइन 1930 पर रिपोर्ट करें
साइबर ठगी के नए तरीके—छुपकर हमला, खुलेआम लूट
आज का दौर इंटरनेट क्रांति का है, लेकिन इसने अपराध के लिए भी नए दरवाजे खोल दिए हैं. अश्लील वीडियो, फर्जी ऐप, सरकारी दस्तावेज, बैंक KYC, बिजली बिल, पुलिस नोटिस, कोर्ट समन—सभी का इस्तेमाल करके अपराधी लोगों को ठग रहे हैं. कानपुर का यह मामला केवल एक उदाहरण है कि अपराधी कितनी तेजी से तकनीक सीख रहे हैं और अपराध को बढ़ा रहे हैं
असली कहानी: ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवा अपराध की राह पर क्यों?
आरोपी ग्रामीण इलाकों के थे. पढ़ाई लिखाई कम थी. खेतों में समय बिताना उनका रोज़मर्रा था. लेकिन मोबाइल फोन, इंटरनेट और फर्जी पहचान ने उन्हें अपराधी बना दिया. उन्होंने आसान पैसे के चक्कर में साइबर ठगी को करियर बना लिया.
पुलिस की अगली कार्रवाई—मुख्य आरोपी की तलाश
गिरोह का सरगना संदीप सिंह अभी फरार है. पुलिस का कहना है कि उसे जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. उसके फिलहाल पड़ोसी जिलों में छिपे होने की आशंका है. उसकी कॉल डिटेल और लोकेशन ट्रैकिंग की जा रही है
घटना का सामाजिक प्रभाव—डर, शर्म और अपराध का संयोजन
अश्लील साइट देखने का आरोप लगाकर ठगी करना एक ऐसा तरीका है जिसमें पीड़ित शर्म के मारे आवाज नहीं उठा पाता. लोग मान लेते हैं कि वे कहीं न कहीं गलत पाए जाएंगे. परिणाम? अपराधी मौज करते हैं और पीड़ित चुप रहते हैं. यह डर अपराध की सबसे बड़ी ताकत है
कानपुर साइबर क्राइम पुलिस ने एक बड़ा खुलासा किया है. यह मामला केवल ठगी का नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक खेल का है. अपराधी पुलिस की छवि का इस्तेमाल करके जनता को धोखा दे रहे थे. लेकिन अब गिरोह जेल में है और बाकी सदस्य जल्द पकड़ लिए जाएंगे. यह घटना पूरे देश के लिए चेतावनी है कि फोन पर किसी सरकारी पहचान के नाम से धमकी मिले तो तुरंत शिकायत दर्ज कराएं
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