लखनऊ में मां की डांट से नाराज 11 साल का बच्चा साइकिल लेकर घर से भागा, 3 दिन बाद 1100 KM दूर अहमदाबाद में सुरक्षित मिला
मां की डांट बनी घर छोड़ने की वजह, इंदिरानगर से शुरू हुई कहानी
छोटी उम्र, मासूम मन और भावनाओं की नाजुक दुनिया… कई बार बड़ों को जो सामान्य डांट लगती है, वही बच्चों के लिए जीवन का सबसे बड़ा झटका बन जाती है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरानगर इलाके से सामने आया यह मामला इसी सच्चाई को उजागर करता है। यहां 11 साल का एक बच्चा मां की मामूली फटकार से इतना आहत हुआ कि उसने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। स्कूल से लौटने के बाद हुए एक छोटे से विवाद ने देखते ही देखते एक बड़े सस्पेंस और पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई घटना का रूप ले लिया।
पिता शिक्षक, बेटा कक्षा 6 का छात्र
गुमशुदा हुआ बच्चा इंदिरानगर के पटेलनगर इलाके में रहने वाले शिक्षक बृजेश कुमार सुमन का बेटा है। वह रानी लक्ष्मीबाई स्कूल, सेक्टर-8 में कक्षा 6 में पढ़ता है। परिवार सामान्य, पढ़ा-लिखा और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर सजग माना जाता है। 10 दिसंबर की दोपहर स्कूल से लौटने के बाद घर में किसी बात को लेकर मां ने बच्चे को डांट दिया। बात बेहद सामान्य थी, लेकिन बच्चे के मन पर उसका असर गहरा पड़ा।
दोपहर 3 बजे निकला, किसी को अंदेशा तक नहीं
मां की डांट के बाद बच्चा चुपचाप अपनी साइकिल उठाकर घर से निकल गया। समय था करीब दोपहर 3 बजे। परिवार को शुरुआत में बिल्कुल अंदेशा नहीं हुआ कि बच्चा घर छोड़कर भाग सकता है। परिजनों को लगा कि वह गली में या आसपास खेलने गया होगा और कुछ देर में लौट आएगा। लेकिन शाम ढलने लगी, रात हो गई और बच्चा घर नहीं लौटा तो परिवार की चिंता गहराने लगी।
देर शाम बदली चिंता में, थाने पहुंचा परिवार
जब काफी तलाश के बाद भी बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला, तब परिवार ने आसपास के इलाकों में खोजबीन शुरू की। रिश्तेदारों, दोस्तों और परिचितों के यहां पूछताछ की गई, लेकिन कहीं से भी कोई जानकारी नहीं मिली। आखिरकार रात में परिजन गाजीपुर थाने पहुंचे और बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। उस पल परिवार की आंखों में डर, अनिश्चितता और पछतावे की साफ झलक थी।
पुलिस ने तुरंत शुरू की तलाश, हर जिले तक भेजा अलर्ट
गुमशुदगी की सूचना मिलते ही लखनऊ पुलिस हरकत में आ गई। बच्चे की हालिया तस्वीर, कपड़ों का विवरण और पहचान से जुड़ी सारी जानकारियां जुटाई गईं। इन जानकारियों को लखनऊ शहर के सभी थानों, आसपास के जिलों और प्रमुख चौराहों तक भेजा गया। इसके साथ ही नेशनल पोर्टल ऑफ इंडिया पुलिस और ट्रैक चाइल्ड पोर्टल पर भी बच्चे का पूरा विवरण अपलोड कर दिया गया, ताकि देश के किसी भी कोने में अगर बच्चा मिले तो तुरंत पहचान हो सके।
तीन दिन तक परिवार ने झेला अनकहा डर
बच्चे के लापता होने के बाद के तीन दिन परिवार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे। हर फोन कॉल पर दिल की धड़कन तेज हो जाती थी। हर आहट पर उम्मीद बंधती थी कि शायद बच्चा लौट आया हो। मां खुद को बार-बार कोस रही थी कि काश उस दिन वह डांटने के बजाय प्यार से समझा लेती। पिता पुलिस और रिश्तेदारों के बीच दौड़ते रहे। पूरा मोहल्ला बच्चे की सुरक्षित वापसी की दुआ कर रहा था।
1100 किलोमीटर दूर अहमदाबाद में मिला सुराग
तीन दिन बाद 13 दिसंबर की सुबह एक ऐसी खबर आई, जिसने पूरे परिवार को राहत की सांस लेने का मौका दिया। गुजरात के अहमदाबाद में पुलिस को एक 11 साल का बच्चा मिला, जिसका हुलिया और विवरण लखनऊ से गायब बच्चे से मेल खा रहा था। अहमदाबाद पुलिस ने जब नेशनल पोर्टल पर डाले गए डेटा से मिलान किया, तो पुष्टि हो गई कि बच्चा वही है, जिसकी तलाश लखनऊ पुलिस कर रही थी।
नेशनल पोर्टल बना उम्मीद की कड़ी
नेशनल पोर्टल ऑफ इंडिया पुलिस और ट्रैक चाइल्ड पोर्टल इस मामले में बेहद अहम साबित हुए। अहमदाबाद पुलिस ने जैसे ही बच्चे का विवरण पोर्टल पर मैच किया, तुरंत लखनऊ पुलिस से संपर्क किया। 13 दिसंबर की सुबह करीब 9 बजे गाजीपुर थाने के इंस्पेक्टर राजेश मौर्य को अहमदाबाद से कॉल आया, जिसमें बच्चे के सुरक्षित मिलने की सूचना दी गई।
बच्चा पूरी तरह सुरक्षित, नहीं आई कोई चोट
पुलिस अधिकारियों के अनुसार बच्चा पूरी तरह सुरक्षित है। उसके शरीर पर किसी तरह की चोट या हिंसा के निशान नहीं मिले हैं। बच्चा डरा हुआ जरूर था, लेकिन उसकी हालत स्थिर बताई गई। अहमदाबाद पुलिस ने उसे बाल संरक्षण से जुड़े सभी मानकों के तहत सुरक्षित स्थान पर रखा और जरूरी देखभाल सुनिश्चित की।
लखनऊ से अहमदाबाद तक का सफर बना सबसे बड़ा सवाल
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर एक 11 साल का बच्चा लखनऊ से करीब 1100 किलोमीटर दूर अहमदाबाद तक कैसे पहुंचा। वह घर से साइकिल लेकर निकला था, लेकिन इतनी लंबी दूरी साइकिल से तय करना असंभव है। पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि बच्चे ने किन साधनों का इस्तेमाल किया, किसने उसकी मदद की और रास्ते में वह किन-किन जगहों पर रुका।
ट्रेन, बस या किसी की मदद? हर एंगल से जांच
पुलिस हर संभावित एंगल से जांच कर रही है। यह भी देखा जा रहा है कि कहीं बच्चा ट्रेन में बिना टिकट यात्रा तो नहीं कर गया, या किसी बस चालक अथवा यात्री ने उसकी मदद की। रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं। बच्चे के बयान के आधार पर पूरे रूट को ट्रेस करने की कोशिश की जा रही है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
परिवार के साथ अहमदाबाद रवाना हुई पुलिस टीम
जैसे ही बच्चे के मिलने की पुष्टि हुई, लखनऊ पुलिस की एक टीम परिवार के साथ अहमदाबाद के लिए रवाना हो गई। पिता बृजेश कुमार सुमन की आंखों में खुशी के साथ-साथ गहरी थकान भी झलक रही थी। मां की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, लेकिन इस बार ये आंसू राहत और शुक्रगुजारी के थे।
मासूम मन और भावनाओं की अनदेखी का नतीजा
यह घटना बच्चों की मानसिक स्थिति और भावनाओं की नाजुकता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस उम्र में बच्चे भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते हैं। उन्हें डांट-फटकार से ज्यादा समझ, संवाद और भरोसे की जरूरत होती है। एक छोटी सी बात उनके मन में बड़े फैसलों का बीज बो सकती है।
डांट नहीं, संवाद है समाधान
बाल मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बच्चों को गलती पर समझाना जरूरी है, लेकिन सख्त शब्दों और गुस्से से नहीं। प्यार, धैर्य और संवाद बच्चों को सुरक्षित महसूस कराता है। इस मामले में भी एक पल की डांट ने बच्चे को इतना असहाय महसूस कराया कि उसने घर छोड़ने जैसा कदम उठा लिया।
समाज के लिए चेतावनी है यह घटना
लखनऊ से अहमदाबाद तक पहुंची यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। बच्चों की बातें सुनना, उनकी भावनाओं को समझना और उन्हें सुरक्षित माहौल देना आज के समय में और भी जरूरी हो गया है। मोबाइल, सोशल मीडिया और बाहरी दुनिया के बीच बच्चों को मानसिक सुरक्षा की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है।
राहत की सांस, लेकिन सबक भी जरूरी
अब जबकि बच्चा सुरक्षित मिल चुका है और जल्द ही अपने घर लौट आएगा, परिवार ने राहत की सांस ली है। लेकिन यह घटना हमेशा एक सबक बनकर रहेगी। मां-बाप, शिक्षक और समाज सभी को यह समझना होगा कि बच्चों की दुनिया हमारी सोच से कहीं ज्यादा संवेदनशील होती है। एक छोटी सी डांट कभी-कभी बहुत लंबा सफर तय करवा देती है।
सुरक्षित वापसी का इंतजार
फिलहाल परिवार और लखनऊ पुलिस अहमदाबाद में औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द ही बच्चा अपने घर लौटेगा, अपने स्कूल जाएगा और यह डरावना अध्याय उसकी जिंदगी में बस एक सीख बनकर रह जाएगा। यह घटना याद दिलाती है कि बच्चों के लिए घर सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा का सबसे मजबूत किला होना चाहिए।


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