बिहार के मुजफ्फरपुर में पिता ने तीन बेटियों संग फांसी लगाई, दो बेटे बचे। पत्नी की मौत और गरीबी ने रची बुराड़ी जैसी त्रासदी।
बिहार के मुजफ्फरपुर में सुबह-सुबह कांप उठा पूरा गांव
15 दिसंबर 2025 की अल सुबह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सकरा थाना क्षेत्र स्थित नवलपुर मिश्रौलिया गांव में जो मंजर सामने आया, उसने पूरे इलाके को सन्न कर दिया। एक छोटे से कच्चे-पक्के घर के भीतर एक पिता और उसकी तीन मासूम बेटियां फांसी के फंदे से लटकी मिलीं। घर के अंदर का दृश्य इतना भयावह था कि देखने वालों की रूह कांप गई। गांव में कुछ ही मिनटों में यह खबर आग की तरह फैल गई कि एक ही परिवार में चार लोगों ने एक साथ जान दे दी है, जबकि दो बच्चे किसी चमत्कार से बच गए हैं।
गरीबी, अवसाद और अकेलेपन ने रची मौत की पटकथा
इस दर्दनाक सामूहिक आत्महत्या के पीछे जो कहानी सामने आई है, वह सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि समाज के कई कड़वे सच उजागर करती है। मृतक पिता अमरनाथ राम बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। मजदूरी और छोटे-मोटे काम से परिवार का गुजारा चलता था, लेकिन इस साल जनवरी में पत्नी की मौत के बाद मानो उनकी पूरी दुनिया उजड़ गई। पत्नी के जाने के बाद अमरनाथ पूरी तरह टूट चुके थे। गांव वालों के मुताबिक वह अक्सर गुमसुम रहते, किसी से ज्यादा बात नहीं करते और कई-कई दिनों तक काम पर भी नहीं जाते थे।
पत्नी की मौत के बाद गहराता गया अवसाद
परिवार वालों और पड़ोसियों का कहना है कि अमरनाथ अपनी पत्नी से बेहद लगाव रखते थे। पत्नी की बीमारी और फिर अचानक मौत ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया था। घर में पांच छोटे-छोटे बच्चे थे, जिनमें तीन बेटियां और दो बेटे शामिल थे। पत्नी के गुजर जाने के बाद बच्चों की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधों पर आ गई। आर्थिक तंगी, काम की अनिश्चितता और बच्चों का भविष्य—इन सभी बातों ने मिलकर उन्हें मानसिक रूप से पूरी तरह कमजोर कर दिया।
सरकारी राशन पर चल रहा था घर का गुजारा
मृतक के बड़े बेटे शिवम ने पुलिस को बताया कि मां की मौत के बाद से घर का गुजारा लगभग पूरी तरह सरकारी राशन पर निर्भर हो गया था। कई बार घर में सब्जी तक नहीं बन पाती थी। पैसों की इतनी कमी थी कि बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी। पिता अक्सर कहते थे कि वह बच्चों को इस दुनिया में ऐसे हालात में नहीं छोड़ सकते। हालांकि किसी को अंदाजा नहीं था कि यह चिंता एक दिन इतनी खौफनाक शक्ल ले लेगी।
14 दिसंबर की रात, आखिरी साथ का खाना
घटना से ठीक एक दिन पहले 14 दिसंबर की रात का जिक्र करते हुए शिवम ने बताया कि उस रात पिता ने कुछ अलग ही व्यवहार किया। उन्होंने अंडा भुजिया और आलू-सोयाबीन की सब्जी बनवाई और सभी बच्चों को पेट भरकर खाना खिलाया। यह सामान्य रातों से अलग था, क्योंकि अक्सर घर में इतनी चीजें नहीं बन पाती थीं। खाना खाने के बाद सभी बच्चे सो गए। शिवम को नींद नहीं आ रही थी, इसलिए वह मोबाइल चला रहा था। उस समय भी उसे यह आभास नहीं था कि यह रात उनकी जिंदगी की सबसे डरावनी सुबह में बदलने वाली है।
अल सुबह जागे बच्चे, छत से लटकते दिखे 6 फंदे
सोमवार अल सुबह पिता ने सभी बच्चों को जगा दिया। जैसे ही बच्चे नींद से उठे, उन्होंने जो देखा वह किसी डरावने सपने से कम नहीं था। छत से मम्मी की साड़ी से बने छह फंदे लटक रहे थे। नीचे एक पुराना ट्रंक रखा हुआ था, जिस पर चढ़कर कोई भी फंदे तक पहुंच सकता था। बच्चों के गले में भी फंदे डाल दिए गए थे। उस समय बच्चे कुछ समझ पाते, उससे पहले पिता की आवाज गूंज उठी कि आज हम सबको एक साथ जाना है।
“जब कहूं, तब ट्रंक से कूदना”
शिवम ने पुलिस को बताया कि पिता ने बेहद गंभीर और शांत आवाज में कहा था कि जब वह इशारा करेंगे, तब सभी को ट्रंक से कूदना है। बच्चों पर पिता का इतना असर था कि वे डर और सदमे में कुछ बोल भी नहीं पाए। तीनों बेटियां और दोनों बेटे पिता की बात मानने को मजबूर हो गए। यह वह पल था, जब एक परिवार की किस्मत का फैसला कुछ सेकंड में होने वाला था।
मौत के मुंह से लौटे दो मासूम
जैसे ही पिता ने इशारा किया, सभी बच्चे ट्रंक से कूद गए। कुछ ही पलों में फंदे कसने लगे। शिवम ने बताया कि उसका दम घुटने लगा और आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। इसी दौरान किसी तरह उसने हिम्मत जुटाई और फंदे को अपने गले से निकालने में सफल रहा। बिना एक पल गंवाए उसने अपने छोटे भाई चंदन के गले से भी फंदा हटा दिया। दोनों भाई नीचे गिर पड़े और जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
पिता और तीन बेटियों की हो चुकी थी मौत
दोनों बच्चों की चीख-पुकार सुनकर जब तक पड़ोसी मौके पर पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पिता अमरनाथ राम और उनकी तीन बेटियां राधा कुमारी, राधिका और शिवानी फंदे से लटकी हुई थीं। उनकी सांसें थम चुकी थीं। घर के भीतर एक साथ चार शवों को लटका देख हर कोई स्तब्ध रह गया। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कुछ ही देर पहले तक हंसता-खेलता परिवार इस तरह तबाह कैसे हो गया।
गांव में मचा कोहराम, पुलिस को दी गई सूचना
घटना की सूचना मिलते ही सकरा थाना पुलिस मौके पर पहुंची। पूरे गांव में अफरा-तफरी का माहौल था। महिलाएं रो रही थीं, पुरुष स्तब्ध खड़े थे और बच्चे डर के मारे सिमटे हुए थे। पुलिस ने तुरंत चारों शवों को नीचे उतरवाया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। साथ ही घटनास्थल को सील कर जांच शुरू कर दी गई।
बच्चों की आंखों देखी कहानी सुन पुलिस भी सन्न
पुलिस ने जब दोनों जीवित बचे भाइयों से पूरी घटना सुनी, तो जांच अधिकारी भी सन्न रह गए। इतने छोटे बच्चों ने जिस तरह मौत को करीब से देखा था, वह किसी भी इंसान को अंदर तक हिला देने वाला था। पुलिस ने बच्चों को काउंसलिंग के लिए भी भेजने की प्रक्रिया शुरू की, ताकि वे इस गहरे सदमे से उबर सकें।
मृतक परिवार का सामाजिक और आर्थिक हाल
नवलपुर मिश्रौलिया गांव में अमरनाथ राम का परिवार बेहद साधारण जीवन जीता था। न कोई बड़ी जमीन, न कोई स्थायी आमदनी। गांव वालों के मुताबिक अमरनाथ सीधे-साधे इंसान थे और किसी से झगड़ा नहीं रखते थे। पत्नी की मौत के बाद वह धीरे-धीरे समाज से कटते चले गए। कई बार गांव वालों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन शायद उनका दर्द इतना गहरा था कि किसी की बात उन तक पहुंच ही नहीं पाई।
पुलिस कर रही हर पहलू से जांच
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह मामला प्रथम दृष्टया सामूहिक आत्महत्या का लग रहा है, लेकिन फिर भी हर पहलू की गहन जांच की जा रही है। यह भी देखा जा रहा है कि कहीं इसके पीछे कोई और कारण या दबाव तो नहीं था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारणों की पुष्टि हो पाएगी। पुलिस गांव वालों, रिश्तेदारों और बच्चों से लगातार पूछताछ कर रही है।
पूरे गांव में दहशत और मातम
एक साथ चार मौतों ने पूरे गांव को गहरे सदमे में डाल दिया है। जिस घर से बच्चों की किलकारियां सुनाई देती थीं, वहां अब सन्नाटा पसरा है। पड़ोसी बताते हैं कि घटना के बाद से गांव के कई बच्चे रात में सो नहीं पा रहे हैं। हर कोई यही सवाल कर रहा है कि क्या इस त्रासदी को रोका जा सकता था।
बुराड़ी कांड की याद दिलाती है यह घटना
यह मामला दिल्ली के बहुचर्चित बुराड़ी कांड की याद दिलाता है, जहां 30 जुलाई 2018 को एक ही परिवार के 11 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली थी। वहां भी मानसिक दबाव, पारिवारिक तनाव और अंधविश्वास जैसे पहलू सामने आए थे। बिहार की इस घटना में भी मानसिक अवसाद और सामाजिक-आर्थिक दबाव की भूमिका साफ दिखाई देती है।
समाज के लिए बड़ा सवाल
मुजफ्फरपुर की यह घटना सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस चुप्पी की कहानी है जो गरीबी, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग की कमी के कारण लोगों को अंदर ही अंदर तोड़ देती है। अगर समय रहते मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए, आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को सहारा मिले और समाज सतर्क हो, तो शायद ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
आगे क्या होगी कार्रवाई
पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कानूनी प्रक्रिया पूरी की जाएगी। बच्चों की सुरक्षा और भविष्य को लेकर भी प्रशासन गंभीर है। जिला प्रशासन की ओर से पीड़ित बच्चों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने और मानसिक काउंसलिंग देने की बात कही गई है।
एक परिवार उजड़ा, कई सवाल छोड़ गया
नवलपुर मिश्रौलिया गांव की यह घटना आने वाले समय तक लोगों के जेहन में बनी रहेगी। मर चुकी पत्नी की याद, आर्थिक तंगी और अवसाद ने मिलकर एक पिता को इस हद तक मजबूर कर दिया कि उसने अपने ही बच्चों के साथ मौत का रास्ता चुन लिया। यह हादसा समाज को झकझोरने वाला है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं न कहीं हम सबकी जिम्मेदारी भी बनती है कि ऐसे टूटते लोगों को समय रहते संभाला जाए।


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