धान में खैरा रोग से बचने के लिए किसान उचित मात्रा में करे छिड़काव, जिंक,सल्फेट एवं यूरिया का करे प्रयोग



इंद्रेश तिवारी की रिपोर्ट

बरईपार(जौनपुर): सितंबर माह में धान में अधिकतर रोग लगने की संभावना अधिक हों जाती है। किसानों की मानों तो इस बार धान की फसल खेतों में लहलहा रही है। उत्पादन कम होने का मुख्य कारण मानसून की अनिश्चितता व किसानों को सही तकनीकी की जानकारी का अभाव है। फसलों पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों एवं रोगों का प्रकोप भी है। धान की फसल में अक्सर खैरा रोग का प्रकोप देखा जाता है, इस बार भी क्षेत्र में अधिकतर किसानों के खेतों में यह रोग देखने को मिल रहा है। इसके बचाव के किसानों को दवा का छिड़काव करना चाहिए। क्षेत्र के प्रगतिशील किसान राजेश कुमार सिंह, कृपाशंकर सिंह, अलख नारायण सिंह बताते है की यह रोग मुख्यतः जिक की कमी के कारण होता है। जिक पौधों के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है, जिंक प्रोटीन संश्लेषण तथा आक्सीकरण से संबंधित होता है। अक्सर देखा जाता है की धान में खैरा रोग केवल उस भूमि में ही उत्पन्न होता है जिसकी मिट्टी में पोषक तत्व का अभाव होता है। यह रोग वहां भी पाया जाता है जहां की मिट्टी में जिक की उपस्थिति होने पर भी मृदा क्षारता या किसी अन्य कारणों से यह पोषण तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता हैं।

धान में खैरा रोग के लक्षण

खैरा रोग पौधों की पत्तियों के आधार पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बों के रूप मे प्रकट होते हैं, जो समय के साथ बढ़ते हुए पत्तियों के सभी भागों में फैल कर कत्थई रंग में बदल जाते हैं । इससे पूरी पत्ती सूखने लगती है। फसल के उत्पादन में गिरावट आ जाती है। यदि रोग ज्यादा फैल जाता है तो किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।

खैरा रोग से बचाव 

किसान को फसल पर ध्यान देना चाहिए। खैरा रोग से बचाने के लिए धान की फसल पर जिक,सल्फेट व बीस किग्रा यूरिया को एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के बाद किसान खेतों में पर्याप्त नमी को भी बनाए रखना चाहिए।

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