ग्रेटर नोएडा में डिलीवरी ऑपरेशन के दौरान महिला के पेट में कपड़ा छूट गया, डेढ़ साल दर्द, कोर्ट के आदेश पर 6 पर FIR दर्ज।
ग्रेटर नोएडा से सामने आई रोंगटे खड़े कर देने वाली लापरवाही
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने निजी अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा, डॉक्टरों की जवाबदेही और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक महिला को डिलीवरी के नाम पर ऐसा दर्द मिला, जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। ऑपरेशन के दौरान उसके पेट में आधा मीटर कपड़ा छोड़ दिया गया और वह महिला करीब डेढ़ साल तक असहनीय पीड़ा झेलती रही। दर्द, बुखार और बेचैनी के बीच उसने कई अस्पतालों के चक्कर काटे, लेकिन सच्चाई सामने आने में लंबा वक्त लग गया।
वेक्सन हॉस्पिटल में हुई डिलीवरी, यहीं से शुरू हुआ दर्द का सफर
पीड़िता अंशुल वर्मा, जो ग्रेटर नोएडा के डेल्टा-1 इलाके की निवासी हैं, को 14 नवंबर 2023 को डिलीवरी के लिए वेक्सन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। परिवार को उम्मीद थी कि सुरक्षित डिलीवरी के बाद सब कुछ सामान्य रहेगा, लेकिन यही दिन उनके लिए एक लंबे संघर्ष की शुरुआत बन गया। डिलीवरी ऑपरेशन डॉ. अंजना अग्रवाल द्वारा किया गया। आरोप है कि ऑपरेशन के दौरान बुनियादी सर्जिकल सावधानियों का पालन नहीं किया गया और कपड़े का एक टुकड़ा महिला के पेट के अंदर ही रह गया।
ऑपरेशन के बाद बढ़ता गया दर्द, लेकिन किसी ने नहीं सुनी
डिलीवरी के बाद अंशुल वर्मा को लगातार पेट दर्द की शिकायत रहने लगी। शुरुआती दिनों में परिवार को लगा कि यह ऑपरेशन के बाद की सामान्य परेशानी होगी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, दर्द कम होने के बजाय और बढ़ता चला गया। कई बार तेज बुखार आया, कमजोरी बढ़ती गई और महिला का सामान्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया। बावजूद इसके, कहीं से ठोस जवाब नहीं मिला कि आखिर परेशानी की जड़ क्या है।
मार्च 2025 में हालत बिगड़ी, अस्पतालों की दौड़ शुरू
22 मार्च 2025 को अंशुल वर्मा की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई। तेज बुखार और असहनीय पेट दर्द के बाद परिजन उन्हें यथार्थ हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। वहां प्राथमिक जांच के बाद डॉक्टरों ने गंभीर स्थिति को देखते हुए आगे की जांच कराने की सलाह दी। इसके बाद महिला की MRI जांच जेम्स हॉस्पिटल में कराई गई, लेकिन रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य बताया गया। इस रिपोर्ट ने परिवार की चिंता और बढ़ा दी, क्योंकि दर्द का कारण अब भी रहस्य बना हुआ था।
कैलाश हॉस्पिटल में खुला राज, डॉक्टर भी रह गए हैरान
लगातार दर्द और बिगड़ती हालत को देखते हुए अंशुल वर्मा को कैलाश हॉस्पिटल में दिखाया गया। यहां डॉक्टर डॉ. संचिता विश्वास ने जांच के बाद पेट में गांठ की आशंका जताई और ऑपरेशन की सलाह दी। 22 अप्रैल 2025 को जब ऑपरेशन किया गया, तो ऑपरेशन थिएटर में मौजूद डॉक्टरों की आंखें फटी की फटी रह गईं। महिला के पेट के अंदर से करीब आधा मीटर कपड़ा निकला। यह वही कपड़ा था, जो कथित तौर पर डिलीवरी ऑपरेशन के दौरान अंदर छूट गया था।
ऑपरेशन का वीडियो बना सबूत, सच छिपाना हुआ मुश्किल
इस पूरे ऑपरेशन की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई, जिसमें साफ-साफ देखा जा सकता है कि महिला के पेट से कपड़ा निकाला जा रहा है। यही वीडियो बाद में इस मामले का सबसे बड़ा सबूत बना। डॉक्टरों के लिए यह यकीन करना भी मुश्किल था कि इतना बड़ा कपड़ा इतने लंबे समय तक किसी के पेट में रह सकता है और वह जिंदा रह सकती है। इस खुलासे के बाद परिवार को अपनी आशंका सच साबित होती दिखी।
न्याय के लिए भटकता रहा परिवार
इतना बड़ा सच सामने आने के बावजूद पीड़िता और उसके परिवार को तुरंत न्याय नहीं मिला। आरोप है कि मामले को दबाने की कोशिश की गई। पीड़िता के पति विकास वर्मा ने गौतमबुद्धनगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय को लिखित शिकायत दी। इसके साथ-साथ नॉलेज पार्क थाना में भी शिकायत दर्ज कराई गई, लेकिन लंबे समय तक कोई FIR दर्ज नहीं की गई।
स्वास्थ्य विभाग की जांच पर उठे सवाल
सीएमओ की ओर से जांच अधिकारियों की नियुक्ति की गई, लेकिन आरोप है कि जांच को जानबूझकर लटकाया गया। कपड़े की FSL जांच तक नहीं कराई गई और बिना ठोस आधार के वेक्सन हॉस्पिटल को क्लीन चिट दे दी गई। जांच रिपोर्ट में यह तक लिखा गया कि डिलीवरी ऑपरेशन के बाद अंशुल वर्मा कभी दोबारा वेक्सन हॉस्पिटल इलाज के लिए नहीं आईं, जबकि परिवार का कहना है कि दर्द की शिकायत लगातार बनी हुई थी।
कोर्ट की शरण में पहुंचा मामला
जब हर दरवाजा बंद होता नजर आया, तब पीड़ित परिवार ने न्यायालय का रुख किया। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस को FIR दर्ज करने के आदेश दिए। कोर्ट के आदेश के बाद नॉलेज पार्क कोतवाली पुलिस ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों समेत छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
इन 6 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई FIR
पुलिस ने इस मामले में डिलीवरी ऑपरेशन करने वाली डॉक्टर अंजना अग्रवाल, डॉक्टर मनीष गोयल, गौतमबुद्धनगर के सीएमओ डॉ. नरेंद्र मोहन और स्वास्थ्य विभाग के दो जांच अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह FIR डॉक्टरों की लापरवाही, जांच में कोताही और संभावित साक्ष्य छिपाने जैसे गंभीर आरोपों के तहत दर्ज की गई है।
पुलिस की चुप्पी और सवालों के घेरे में जांच
मामले में FIR दर्ज होने के बावजूद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी फिलहाल कुछ भी कहने से बचते नजर आ रहे हैं। जांच किस दिशा में आगे बढ़ेगी, दोषियों पर क्या कार्रवाई होगी और पीड़िता को कब न्याय मिलेगा, इन सवालों के जवाब अभी बाकी हैं। वहीं, इस केस ने एक बार फिर निजी अस्पतालों में होने वाले ऑपरेशनों की निगरानी व्यवस्था पर बहस छेड़ दी है।
वेक्सन हॉस्पिटल का पक्ष
वेक्सन हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरीटेंडेंट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अस्पताल ने सिर्फ ऑपरेशन थिएटर और जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। उनके मुताबिक, ऑपरेशन करने की मांग महिला डॉक्टर ने की थी और पूरा ऑपरेशन उन्हीं द्वारा किया गया। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि ऑपरेशन के बाद न तो अंशुल वर्मा दोबारा अस्पताल आईं और न ही संबंधित डॉक्टर इलाज के लिए यहां पहुंचीं।
एक महिला का दर्द, सिस्टम पर बड़ा सवाल
यह मामला सिर्फ एक महिला के साथ हुई मेडिकल लापरवाही का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम पर भी सवाल खड़ा करता है, जहां मरीज को इंसाफ पाने के लिए डेढ़ साल तक दर्द सहना पड़ता है और फिर अदालत की शरण लेनी पड़ती है। ग्रेटर नोएडा की यह घटना उन तमाम महिलाओं के लिए चेतावनी है, जो निजी अस्पतालों पर आंख मूंदकर भरोसा करती हैं।
आगे क्या, सबकी निगाहें जांच पर
अब सबकी निगाहें पुलिस जांच और कोर्ट की आगे की कार्यवाही पर टिकी हैं। यह देखना अहम होगा कि क्या दोषियों को सजा मिलती है या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाता है। फिलहाल, अंशुल वर्मा का परिवार सिर्फ एक ही उम्मीद लगाए बैठा है कि इतने लंबे दर्द और संघर्ष के बाद उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।


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