दंडक वन आश्रम: गुजरात की पहाड़ियों में बसा आध्यात्मिक चमत्कार, जहां महर्षि सदाफल देव ने साधना की, जानिए अनोखी बातें।
इंद्रेश तिवारी की रिपोर्ट
दंडक वन आश्रम: जहां सांसों में बसती है ब्रह्मविद्या की दिव्य ऊर्जा
गुजरात के वासदा क्षेत्र में कावेरी नदी के किनारे स्थित दंडक वन आश्रम महज एक साधारण स्थान नहीं, बल्कि ब्रह्मविद्या की गूंज से भरपूर एक अलौकिक धाम है। महर्षि सद्गुरु सदाफल देव महाराज द्वारा स्थापित इस दिव्य धाम की उपस्थिति मानो स्वयं आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम बन जाती है। हरे-भरे पहाड़ों की गोद में स्थित यह स्थान हजारों सालों से आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र रहा है।
जौनपुर से गुजरात पहुंचे पत्रकार और ग्राम प्रधानों का सम्मान
मछली शहर (जौनपुर) से पत्रकार अनिल कुमार पांडेय, कटका गांव के प्रधान प्रदीप यादव और बंगालीपुर गांव के प्रधान अंजनी यादव जब आश्रम पहुंचे, तो मंदिर आश्रम समिति ने उनका विशेष स्वागत किया। समिति की ओर से उन्हें सदाफल देव महाराज द्वारा लिखित “स्ववेद” भेंट की गई। यह सम्मान एक प्रकार से आध्यात्मिक पत्रकारिता के लिए आशीर्वाद की तरह था। इस आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई प्रकाश त्रिपाठी और आश्रम के अकाउंटेंट अखिलेश कुमार ने।
प्रकृति की गोद में बसा आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर धाम
दंडक वन आश्रम केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, यह आध्यात्मिक साधना की जड़ें रखने वाला केंद्र है। यहां की शांति, हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता एक अलौकिक अनुभव प्रदान करती है। आश्रम के दर्शन मात्र से मन स्थिर हो जाता है, और साधकों को ब्रह्मविद्या का साक्षात अनुभव होता है। प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि यह वही स्थान है जहां 1944 में महर्षि सदाफल देव जी कबीर-वट के दर्शन के लिए आए थे और यहीं से गुजरात में विहंगम योग की नींव रखी गई।
वंसदा रियासत से मिली थी दान में भूमि
आश्रम की भूमि वंसदा के तत्कालीन राजा द्वारा श्री शार्दुल सिंह सोलंकी के अनुरोध पर दान की गई थी। सोलंकी जी ने महर्षि सदाफल देव जी के विचारों से प्रभावित होकर गुजरात में विहंगम योग के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान दिया था। राजा ने जब इस भूमि को आश्रम हेतु समर्पित किया, तब से यह स्थान साधना, भक्ति और ब्रह्मविद्या का तीर्थ बन गया।
जहां मिलती है भक्ति और मुक्ति दोनों की राह
आश्रम के बारे में कहा जाता है कि जो स्त्री या पुरुष भगवान की खोज में आते हैं, वे जब दंडकवन की भूमि पर पहुंचते हैं, तो उनके भीतर भक्ति का समुद्र उमड़ पड़ता है। यह भूमि उन्हें मुक्ति के द्वार तक पहुंचाने में सहायक बनती है। इस स्थान की शक्ति इतनी प्रबल मानी जाती है कि स्वयं अहिल्या भी ऋषि गौतम के श्राप से यहीं मुक्ति प्राप्त कर पाईं थीं।
पवित्रता और तपस्या की भूमि है दंडकवन
शास्त्रों में दंडकवन का उल्लेख एक ऐसे वन के रूप में है जहां पापियों को दंड मिलता था। लेकिन यहां की हरियाली, शांत वातावरण और दिव्यता को देखकर लगता है जैसे यह कोई पृथ्वी पर बसा स्वर्ग हो। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र से लेकर महर्षि गौतम तक ने इस क्षेत्र को अपनी तपोभूमि बनाया। यही वह धरती है जहां पर ब्रह्मविद्या का साक्षात आलोक फैला है।
कबीर-वट और सदाफल देव जी का दिव्य मिलन
यह वही क्षेत्र है जहां कबीर-वट स्थित है — वह पवित्र वटवृक्ष जिसके पास कबीरदास जी साधना करते थे। सद्गुरु महर्षि सदाफल देव जी ने 1944 में इसी स्थान पर भ्रमण किया और इसे अपनी साधना स्थली बनाया। यहीं से विहंगम योग की दिव्य परंपरा की शुरुआत मानी जाती है, जो आज पूरे भारत ही नहीं, विदेशों तक फैल चुकी है।
आश्रम की निशुल्क गौसेवा: समाजसेवा का उदाहरण
दंडक वन आश्रम की गौशाला से प्राप्त दूध को बेचा नहीं जाता। इसके विपरीत, आश्रम द्वारा यह दूध निशुल्क उन गरीब महिलाओं और बच्चों को दिया जाता है जो पास के 50 किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। धात्री महिलाएं और 10 वर्ष तक के बच्चों को हर दिन एक लीटर दूध पीने के लिए दिया जाता है ताकि वे कुपोषण का शिकार न हों। यह सेवा पूरी तरह निःशुल्क है और इसकी सराहना पूरे क्षेत्र में होती है।
जीवन जीने की कला सिखाता है यह आश्रम
दंडक वन आश्रम न केवल आध्यात्मिक साधना का केंद्र है, बल्कि यह मानव जीवन को सही दिशा में चलाने की प्रेरणा भी देता है। यहां आने वाला हर व्यक्ति जीवन की नश्वरता को समझता है, मन की अशांति से बाहर निकलता है और आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है। आश्रम का वातावरण और यहां की साधना-पद्धति, आत्मा को शांत करने के साथ-साथ उसे ईश्वर से जोड़ने का कार्य करती है।
यदि आप आध्यात्मिकता, साधना और सेवा के संगम की तलाश में हैं, तो दंडक वन आश्रम आपका अगला पड़ाव हो सकता है — एक ऐसा स्थान जो आपको केवल दर्शन नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा पर ले जाएगा।
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