अयोध्या राम मंदिर में राजा राम दरबार की भव्य प्राण प्रतिष्ठा पूरी, भक्तों ने त्रेतायुग के रामराज्य का अनुभव किया।
अयोध्या में इतिहास का पुनर्जन्म: राजा राम दरबार में विराजे मर्यादा पुरुषोत्तम
अयोध्या नगरी एक बार फिर इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई, जब श्रीराम मंदिर के प्रथम तल पर राजा राम अपने पूरे राजदरबार सहित विराजमान हुए। 22 जनवरी 2024 को बाल रूप में गर्भगृह में प्रतिष्ठित रामलला के बाद यह दूसरा दिव्य अध्याय है, जो पूरे भारतवर्ष को भाव-विभोर कर गया है।
राम मंदिर में अब श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान, भरत, शत्रुघ्न और गुरु वशिष्ठ जैसे प्रमुख पात्रों के साथ राजसी मुद्रा में विराजमान हैं। यह दरबार मात्र एक स्थापत्य नहीं, बल्कि वह त्रेतायुगीन ऊर्जा का पुनर्स्थापन है जिसकी कल्पना तुलसीदास और वाल्मीकि ने की थी।
त्रेतायुग का दृश्य साकार: रामराज्य का जीवंत प्रतिरूप बना मंदिर
राम दरबार में विराजे भगवान श्रीराम अब एक बालक नहीं, बल्कि वह मर्यादा पुरुषोत्तम राजा हैं, जो न्याय, धर्म और करुणा का जीवंत उदाहरण हैं। स्वर्ण सिंहासन, उसके चारों ओर शेरों की आकृति से सजे स्तंभ और दरबार में विराजमान उनके परिजन एक अद्भुत दैवीय दृश्य रचते हैं, जिसे देख भक्तजन भावविभोर हो जाते हैं।
यह दर्शन भक्तों को सीधे त्रेतायुग में ले जाते हैं। राम के राजसी स्वरूप के साथ माता सीता की शांत मुस्कान, लक्ष्मण की अटल भक्ति, हनुमान की समर्पण मुद्रा, भरत-शत्रुघ्न की सेवा भाव और गुरु वशिष्ठ की विद्वत्ता – यह सब मिलकर एक संपूर्ण रामराज्य की तस्वीर बनाते हैं।
सिर्फ मंदिर नहीं, जनआस्था की धड़कन बना अयोध्या
राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा का यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आस्था, राष्ट्रधर्म और सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना है। अयोध्या में उमड़ा जनसैलाब, मंदिर प्रांगण में गूंजते वैदिक मंत्र और श्रद्धालुओं के अश्रुपूरित नेत्र इस बात के गवाह हैं कि राम अब केवल मूर्तियों में नहीं, जन-जन के हृदय में बस चुके हैं।
यह दरबार भारत के सांस्कृतिक आत्मसम्मान की पुनर्प्राप्ति है। हर कोने से अयोध्या आने वाले श्रद्धालु कहते हैं कि जैसे ही वह दरबार के सामने खड़े होते हैं, तो उन्हें त्रेतायुग की अनुभूति होती है, जैसे समय पीछे चला गया हो।
राजा राम के सिंहासन से गूंज रहा है धर्म और न्याय का स्वर
राजा राम की इस प्रतिष्ठा से आज के भारत को वह संदेश मिलता है जिसकी आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक है। धर्म, करुणा और न्याय से परिपूर्ण शासन की भावना, जिसे रामराज्य कहते हैं, अब सिर्फ पौराणिक कथा नहीं रही। अयोध्या में यह साकार हो चुका है।
राम सिंहासन केवल एक पद नहीं, यह उत्तरदायित्व है – प्रजा के सुख-दुख का। यह दरबार यह भी सिखाता है कि राजा वह नहीं जो राज करता है, बल्कि वह है जो सेवा करता है, जो तपस्वी है, जो त्यागी है।
विश्व को प्रेरणा देता अयोध्या का रामराज्य
राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह सांस्कृतिक जागरण का प्रतीक है। यह दरबार भारत ही नहीं, पूरे विश्व को यह संदेश देता है कि जब समाज मूल्यों से भटकता है, तो एक मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार लेकर आता है और समाज को धर्म, करुणा और न्याय की ओर पुनः मोड़ता है।
राजा राम का यह दरबार भारतीय संस्कृति का गौरवशाली अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को न केवल दर्शन देगा बल्कि दिशा भी। रामराज्य अब एक सपना नहीं, एक सच्चाई है, जिसकी शुरुआत अयोध्या से हो चुकी है।
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