हिंदू लड़की को मुस्लिम समझ एग्जाम देने से रोका गया, सिर पर दुपट्टा बना मुसीबत, NEET का सपना चकनाचूर!


अलीगढ़ की हेमा कश्यप को सिर पर दुपट्टा रखने के कारण मुस्लिम समझा गया, OBC सर्टिफिकेट रिजेक्ट, NEET का सपना टूटा।


सिर पर दुपट्टा... और बर्बाद हो गया सालभर का सपना!

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सिस्टम की लापरवाही और पहचान के आधार पर होने वाले भेदभाव की पोल खोल दी है। मंजूरगढ़ी गांव की रहने वाली होनहार छात्रा हेमा कश्यप की जिंदगी उस दिन थम गई, जब एक लेखपाल ने उसे उसकी वेशभूषा के आधार पर पहचानने की भूल कर दी।

OBC सर्टिफिकेट नहीं मिला, NEET में नहीं हो सकी शामिल

हेमा कश्यप ने पूरे एक साल तक NEET परीक्षा की तैयारी की थी। उसने दिन-रात मेहनत की, पिता सुरेंद्र सिंह की मजदूरी की कमाई से पढ़ाई की, लेकिन NEET परीक्षा में बैठने के लिए जरूरी OBC सर्टिफिकेट उसके पास नहीं था।

हेमा ने तीन बार ऑनलाइन आवेदन किया, हर बार लेखपाल ने उसका आवेदन बिना किसी ठोस वजह के रिजेक्ट कर दिया। कारण? सिर्फ ये कि उसने सिर पर दुपट्टा ले रखा था।

“हिजाब समझ लिया… और तीन बार सर्टिफिकेट रिजेक्ट कर दिया”

हेमा का आरोप है कि लेखपाल ने बिना पूछे उसके सिर पर दुपट्टा देखकर यह मान लिया कि वह मुस्लिम है। इसी कारण तीन बार उसके आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया। हेमा ने जब विरोध किया, तो तहसील जाकर खुद तहसीलदार से शिकायत की। तहसीलदार ने लेखपाल को डांटा और प्रमाण पत्र देने का आदेश भी दिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी – NEET परीक्षा की अंतिम तिथि निकल चुकी थी।

“मैं हिंदू हूं, मेरी मेहनत मेरी पहचान है”

हेमा ने जब जिलाधिकारी संजीव रंजन से शिकायत की तो पूरे जिले में यह मामला गरमाने लगा। हेमा ने कहा –
“दुपट्टा मेरी पहचान नहीं है। मेरी मेहनत मेरी पहचान है। मैंने अपने सपनों के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन सिस्टम ने मेरी पहचान ही बदल दी।”

पूरा जिला स्तब्ध, लेखपाल पर गिरी गाज

जिलाधिकारी ने तुरंत मामले की जांच बैठा दी। कुछ ही दिनों में जांच पूरी हुई और लेखपाल को दोषी पाया गया। प्रशासन ने उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश जारी किए। लेकिन हेमा को अब भी संतोष नहीं है, क्योंकि उसके डॉक्टर बनने के सपने पर अब भी धुंध छाई हुई है।



NEET की जगह मिली अपमान की पीड़ा

हेमा के मुताबिक,
“मैंने मेहनत से तैयारी की, लेकिन मुझे परीक्षा में बैठने का हक ही नहीं मिला। मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि मैंने सिर पर दुपट्टा लिया था।”

हेमा की कहानी बनी संघर्ष की आवाज

अब हेमा सिर्फ सर्टिफिकेट नहीं बल्कि न्याय की मांग कर रही है। वह चाहती है कि देश में किसी लड़की को उसके पहनावे से न पहचाना जाए। उसकी पहचान उसकी मेहनत, उसका लक्ष्य और उसकी काबिलियत हो।

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