सावन छोड़ो, पूरे साल ही झूले झूल रहे हैं हम

व्यंग: चैतन्य भट्ट

अब सावन में पहले जैसे झूले नहीं लगते , ऐसा लोग बाग़ कहते हैं, पहले के जमाने में जब सावन आता था  तो  झूलों की बहार शुरू हो जाती थी गांवों में पेड़ों पर रस्सियों के झूलों में गांव की छोरियां  और छोरे जम कर झूला झूलते थे सावन में लगने वाले मेलों में भी  "टेंपरेरी झूला" भी लग जाता था जिसे "हिंडोला" कहा जाता था , पर वक्त बदल रहा है पुरानी बातें अब सिर्फ बातें रह गई ,अब नया जमाना है भैया ,नए-नए झूले आ गए हैं जो दिखाई  तो नहीं देते पर हमें झुला रहे हैं  और अकेले सावन में नहीं बल्कि  पूरे साल  झूले लगे हुए और हर आदमी उन झूलों में झूल रहा है l मसलन नेता, मंत्री आम जनता को अपने वादों का झूला झुला  रहे हैं ये झूला खूब ऊपर जाता है और फिर धड़ाम से  नीचे आ जाता है  अर्थव्यवस्था का जो झूला है वह भी बहुत तेज झूल रहा है लेकिन ये ऊपर कम जाता है नीचे बहुत तेजी से आता है ।बेरोजगार नौजवान रोजगार पाने का झूला झूल रहे है वे इस आशा में झूले का इंतजार कर रहे हैं कि जैसे ही झूला उनकी  तरफ आएगा वे उसे पकड़ कर उसमें लटक जाएंगे पर ये झूला गोदाम में बंद हो चुका है जिसके बाहर निकलने की उम्मीद कम ही है।शेयर मार्केट का झूला तो इतनी स्पीड से ऊपर नीचे होता है कि खरीदने वाले कभी नोट  कमा नहीं पाते क्योंकि यह झूला कब ऊपर चला जाए कब नीचे आ जाए  भगवान् भी नहीं  जानता,  कोरोना का झूला तो आजकल चल ही रहा है कभी इधर, कभी उधर ,ये ऊपर नीचे आड़ा तिरछा कहीं भी झूल जाता है  कोई भरोसा नहीं इस झूले का, इस झूले पर  पर लोग नहीं बैठते बल्कि झूला लोगों पर ही बैठा जा रहा है।  हमारे प्रधानमंत्री ने चीन के प्रधानमंत्री को झूले में बैठा कर उन्हें झूला झुलाया था, अब वही चीन हमें झूले पर बैठाए हुए है l  किसी भी शहर की सड़कों पर वाहन चलाओ तो झूले जैसा आनंद तो अपने आप आता है । सावन,छोड़ो भादों छोड़ो क्वार, कार्तिक, अगहन ,मास पूस ,,फागुन,  चैत, बैसाख यानी पूरे साल जनता तो झूला झूल रही है इधर अपने  प्रदेश   के भाजपा  विधायकों  को  "मामाजी"  झुलाए पड़े हैं    ये विधायक इस आस में हैं कि निगम मंडलों  का झूला जैसे ही उनकी तरफ आएगा और वे  उसे लपक  लेंगे पर मामा उन्हें झूला झुलाये पड़े हैं यानी कुल मिला कर पूरा देश ,पूरा प्रदेश, पूरा शहर तरह-तरह के झूलों का आनंद उठा रहा है। उसे ना सावन की राह देखने की जरूरत है ना भादो की ,चौतरफा झूले लगे हुए हैं और लोग झूल रहे हैं बस अंतर इतना है कि झुलाने  वाले चंद लोग हैं और झूलने वाले करोड़ों और वे जिंदगी भर झूलते ही रहेंगे ये भी तय हैं 
सुपर हिट ऑफ़ द  वीक 
"तुम्हारी शर्ट में तो एक भी लम्बा बाल नहीं मिलता" श्रीमती जी ने श्रीमान जी से कहा 
"हां तो क्या हुआ" श्रीमान जी ने पूछा
"मैं पूछती हूँ कौन हैं वो टकली"  श्रीमती जी ने चिल्ला कर पूछा

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