भारत में कैंसर के मरीज 15 लाख के पार, यूपी में बिहार से दोगुने केस, दिल्ली का AAIR देश में सबसे खतरनाक



भारत में कैंसर मरीज 15 लाख पार, यूपी में सबसे ज्यादा केस, दिल्ली का AAIR मुंबई-कोलकाता से अधिक, ब्रेस्ट कैंसर सबसे बड़ा खतरा


भारत में कैंसर का बढ़ता संकट: आंकड़े जो डराते हैं

भारत में कैंसर अब सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के ताजा आंकड़े यह साफ संकेत दे रहे हैं कि देश में कैंसर मरीजों की संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है। संसद में केंद्र सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, भारत में कैंसर मरीजों की अनुमानित संख्या 15 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है। यह इजाफा अचानक नहीं, बल्कि बीते पांच वर्षों से लगातार जारी है, जिसने स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर आम नागरिकों तक को चिंता में डाल दिया है।

पांच साल में दो लाख नए मरीज: कैंसर का साल-दर-साल ग्राफ

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में कैंसर मरीजों की संख्या 13,92,179 थी। इसके बाद 2021 में यह बढ़कर 14,26,447 हो गई। 2022 में यह आंकड़ा 14,61,427 तक पहुंचा, जबकि 2023 में कैंसर मरीजों की संख्या लगभग 15 लाख के करीब यानी 14,96,972 दर्ज की गई। वर्ष 2024 में यह संख्या साफ तौर पर 15 लाख के पार चली गई और अनुमानित मरीजों की संख्या 15,33,055 दर्ज की गई। यह आंकड़े बताते हैं कि हर साल औसतन करीब 35 से 40 हजार नए मरीज देश में जुड़ रहे हैं, जो स्वास्थ्य नीति के लिए एक बड़ा अलार्म है।

उत्तर प्रदेश बना कैंसर की राजधानी: बिहार से भी दोगुने केस

देश के अलग-अलग राज्यों की तुलना की जाए तो उत्तर प्रदेश कैंसर के मामलों में सबसे ऊपर है। वर्ष 2024 के अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश में कैंसर मरीजों की संख्या 2 लाख 21 हजार से अधिक हो चुकी है। यह आंकड़ा बिहार के मुकाबले लगभग दोगुना है, जहां कैंसर मरीजों की संख्या करीब 1,15,123 बताई गई है। महाराष्ट्र में 1,27,512 और पश्चिम बंगाल में 1,18,910 कैंसर मरीज दर्ज किए गए हैं। जनसंख्या के लिहाज से बड़ा राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कैंसर की यह भयावह संख्या स्वास्थ्य सेवाओं, जांच सुविधाओं और जागरूकता की कमी की ओर भी इशारा करती है।

ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में बढ़ता खतरा

उत्तर प्रदेश में कैंसर केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण जिलों में भी तेजी से फैल रहा है। तंबाकू, गुटखा, शराब, प्रदूषण, मिलावटी खानपान और समय पर जांच न होना इसके बड़े कारण माने जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कैंसर की पहचान अक्सर अंतिम चरण में होती है, जिससे इलाज मुश्किल और महंगा हो जाता है। यही वजह है कि यूपी में कैंसर से होने वाली मौतों का अनुपात भी लगातार बढ़ रहा है।

दिल्ली में हालात सबसे गंभीर: AAIR ने बढ़ाई चिंता

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की स्थिति आंकड़ों के लिहाज से और भी चिंताजनक है। संसद में दिए गए जवाब के अनुसार दिल्ली में उम्र के हिसाब से समायोजित कैंसर दर यानी एज-एडजस्टेड इंसिडेंस रेट देश के बड़े महानगरों में सबसे अधिक है। दिल्ली में पुरुषों के लिए AAIR 1 लाख की आबादी पर 146.7 और महिलाओं के लिए 132.5 दर्ज किया गया है। यह दर मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों से कहीं ज्यादा है, जो राजधानी में प्रदूषण, जीवनशैली और खानपान से जुड़े जोखिमों को उजागर करती है।

मुंबई और कोलकाता से आगे दिल्ली

आंकड़ों के अनुसार मुंबई में कैंसर का AAIR पुरुषों के लिए 108.9 और महिलाओं के लिए 114.2 है, जबकि कोलकाता में यह क्रमशः 105.5 और 98.6 दर्ज किया गया। अहमदाबाद और अन्य शहरों की तुलना में भी दिल्ली का आंकड़ा कहीं ज्यादा है। इसका मतलब साफ है कि दिल्ली में कैंसर होने की संभावना अन्य मेट्रो शहरों की तुलना में कहीं अधिक है, जो राजधानी की हवा, पानी और शहरी जीवनशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

हैदराबाद और बेंगलुरु में भी तेजी से बढ़ रहे केस

दिल्ली के अलावा हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे आईटी हब शहरों में भी कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। हैदराबाद में पुरुषों के लिए AAIR 114.7 और महिलाओं के लिए 153.8 दर्ज किया गया, जबकि बेंगलुरु में पुरुषों के लिए 127.7 और महिलाओं के लिए 151.3 रहा। यह आंकड़े बताते हैं कि तेजी से शहरीकरण, तनावपूर्ण जीवन और असंतुलित खानपान कैंसर के खतरे को कई गुना बढ़ा रहे हैं।

पंजाब और पटियाला: अपेक्षाकृत कम लेकिन खतरा बरकरार

पंजाब के पटियाला में कैंसर का AAIR पुरुषों के लिए 69.6 और महिलाओं के लिए 80.7 दर्ज किया गया, जो दिल्ली के मुकाबले काफी कम है। इसके बावजूद पंजाब में कैंसर के मामलों को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि यहां भी ब्रेस्ट कैंसर, मुंह का कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर तेजी से उभर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और नशे की प्रवृत्ति को यहां कैंसर का बड़ा कारण माना जा रहा है।

दिल्ली और पंजाब में ब्रेस्ट कैंसर का कहर

महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर देशभर में सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले 2023 में 3,198 थे, जो 2025 तक बढ़कर 3,321 हो गए। यह लगातार बढ़ोतरी महिलाओं की सेहत को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक देर से शादी, देर से मां बनना, शारीरिक गतिविधियों की कमी और अनियमित जीवनशैली इसके बड़े कारण हैं।

सर्वाइकल कैंसर में मामूली राहत, फेफड़े और मुंह का खतरा बढ़ा

दिल्ली में सर्वाइकल कैंसर के मामलों में हल्की गिरावट जरूर दर्ज की गई है, जहां 2023 में 741 मामलों से घटकर 2025 में यह संख्या 692 रह गई। इसके बावजूद फेफड़ों और मुंह के कैंसर के मामलों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है। वायु प्रदूषण, धूम्रपान, तंबाकू और गुटखा सेवन को इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है।

पंजाब में महिलाओं और पुरुषों के कैंसर ट्रेंड

पंजाब में भी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर सबसे आम कैंसर बना हुआ है, जहां 2023 में 3,342 मामले थे, जो 2025 में बढ़कर 3,388 हो गए। वहीं पुरुषों में मुंह और प्रोस्टेट कैंसर के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। अनुमान है कि 2025 तक पंजाब में प्रोस्टेट कैंसर के मामले 1,170 से अधिक हो जाएंगे, जो पुरुषों की सेहत के लिए गंभीर संकेत हैं।

सरकार की तैयारी: डे केयर कैंसर सेंटर पर फोकस

कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने डे केयर कैंसर सेंटर स्थापित करने की योजना पर काम तेज कर दिया है। बजट 2025-26 की घोषणा के अनुसार अगले तीन वर्षों में जिला अस्पतालों में डे केयर कैंसर सेंटर खोले जाएंगे। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ मिलकर नेशनल गैप स्टडी की है, ताकि सबसे अधिक प्रभावित जिलों को प्राथमिकता दी जा सके।

यूपी में सबसे ज्यादा डे केयर कैंसर सेंटर

सरकारी जवाब के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए देशभर में 297 डे केयर कैंसर सेंटर स्थापित करने की मंजूरी दी गई है। इनमें सबसे अधिक 68 सेंटर उत्तर प्रदेश में खोले जाएंगे, जो यह दर्शाता है कि यूपी में कैंसर की गंभीरता को सरकार ने प्राथमिकता में रखा है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में 18, तेलंगाना में 27 और बिहार में 21 डे केयर कैंसर सेंटर स्थापित किए जाने हैं।

इलाज से ज्यादा जरूरी रोकथाम और जागरूकता

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि केवल अस्पताल और सेंटर खोलने से कैंसर पर काबू नहीं पाया जा सकता। इसके लिए समय पर जांच, शुरुआती लक्षणों की पहचान और जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी है। तंबाकू और शराब से दूरी, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और प्रदूषण नियंत्रण जैसे कदम कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

कैंसर और भारत का भविष्य

भारत में कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी दबाव डाल सकती है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इलाज का खर्च, मरीजों की संख्या और मौतों का आंकड़ा और भयावह हो सकता है। सरकार, समाज और आम नागरिकों को मिलकर इस बीमारी के खिलाफ गंभीर लड़ाई लड़नी होगी, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस खतरनाक संकट से बचाया जा सके।

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