बीमार पत्नी संग सफर कर रहे यात्री को रात 2 बजे सोते से उठाकर काटा चालान, DRM ने मानी TTE की गलती लेकिन कार्रवाई से किया किनारा!


दिल्ली-वाराणसी सफर में बीमार मरीज संग यात्री को 2 बजे चालान, DRM ने गलती मानी लेकिन कार्रवाई पर चुप्पी साध ली।


दिल्ली से बनारस का सफर और रेलवे की चुप्पी

9 अगस्त 2025, शनिवार की रात नई दिल्ली से बनारस जाने वाली सुपरफास्ट ट्रेन संख्या 12582 में एक यात्री के साथ घटी घटना ने रेलवे की कार्यप्रणाली और संवेदनशीलता दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यात्री अपनी बीमार पत्नी और साले के साथ कोच A1 में सफर कर रहा था। पत्नी कैंसर की मरीज हैं और सफर उनके लिए पहले से ही कठिन था।

यात्री ने ट्रेन में चढ़ते ही टिकट चेकर को अपना परिचय दिया और पूरी स्थिति समझाई। साले का रिजर्वेशन नहीं था क्योंकि उसका आना अचानक तय हुआ। यात्री को उम्मीद थी कि बीमारी को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।

3AC का चालान, लेकिन बर्थ 2AC में

ट्रेन टिकट चेकर Raj Kumar Sanger ने यात्री के साले का ₹1620 का 3AC चालान काटा, जबकि बर्थ 2AC में उपलब्ध करवाई। यह कदम सतही तौर पर मददगार लगता है क्योंकि 2AC का किराया ज़्यादा होता है, लेकिन 3AC का किराया लेकर ऊँची श्रेणी में बर्थ देना नियमों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

आधी रात 2 बजे सोते हुए जगाकर चालान

सबसे विवादित पहलू यह रहा कि चालान आधी रात 2 बजे बनाया गया। यात्री का कहना है कि उसने स्थिति ट्रेन में चढ़ते ही स्पष्ट कर दी थी, इसके बावजूद कैंसर मरीज और उसके परिजनों को आधी रात नींद से उठाकर परेशान किया गया। बीमार महिला के लिए यह अनुभव बेहद कठिन रहा।

रेलवे नियमों के मुताबिक बिना टिकट यात्रा या अतिरिक्त यात्री होने पर चालान बनाना ज़रूरी है, लेकिन यात्री सुविधा को देखते हुए समय और तरीका संवेदनशील होना चाहिए।

DRM वाराणसी ने माना – “हाँ, गलती हुई है”

इस मामला को आगे बढ़ाकर जब विश्व मीडिया की टीम ने Divisional Railway Manager (DRM), वाराणसी से संपर्क किया। DRM ने माना कि यह TTE की गलती थी। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि गलती स्वीकार करने के बावजूद DRM ने किसी भी तरह की कार्रवाई पर कुछ नहीं कहा।

यानी रेलवे अधिकारी ने समस्या को स्वीकार कर लिया, लेकिन समाधान या सुधार पर चुप्पी साध ली।

रेलवे की संवेदनशीलता पर सवाल

यह घटना कई सवाल खड़े करती है:

  • जब DRM मानते हैं कि गलती हुई, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
  • क्या कैंसर मरीज जैसी संवेदनशील परिस्थितियों में रेलवे स्टाफ को और लचीला रवैया अपनाना चाहिए?
  • क्या यात्रियों की सुविधा और मानवीय संवेदना को रेलवे नियमों के साथ संतुलित नहीं किया जा सकता?

यात्री के पास सबूत मौजूद

यात्री के पास चालान की रसीद मौजूद है जिसमें ₹1620 का 3AC किराया दर्ज है, जबकि बर्थ 2AC में दी गई। यह तथ्य घटना की पुष्टि करता है और रेलवे की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न भी लगाता है।

जनता और यात्रियों की अपील

अब यात्रियों और सामाजिक संगठनों की ओर से मांग उठ रही है कि DRM वाराणसी और रेलवे बोर्ड इस मामले में न केवल स्पष्ट कार्रवाई करें बल्कि स्टाफ को विशेष ट्रेनिंग दें, ताकि भविष्य में यात्रियों को ऐसी परेशानियों का सामना न करना पड़े।

यात्रियों का कहना है कि अगर बीमारी जैसी परिस्थितियों में भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई तो रेलवे की सेवा का उद्देश्य ही अधूरा रह जाएगा।

नई दिल्ली से बनारस के बीच हुई यह घटना रेलवे की दोहरी तस्वीर सामने लाती है। एक ओर मानवीय राहत दिखाने का प्रयास था, लेकिन दूसरी ओर प्रोसीजर और संवेदनशीलता की कमी यात्री सुविधा पर भारी पड़ी।

और जब DRM खुद गलती मानते हैं, लेकिन कार्रवाई से किनारा कर लेते हैं, तो सवाल और बड़ा हो जाता है कि यात्रियों की असली सुरक्षा और सुविधा का जिम्मेदार कौन होगा?

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