बरेली की मस्जिदों में अदा हुई ईद-उल-अज़हा की नमाज़, एक-दूसरे से गले मिलकर दी मुबारकबाद



बरेली की मस्जिदों में अदा हुई ईद-उल-अज़हा की नमाज़, एक-दूसरे को दी मुबारकबाद, कुर्बानी का दौर तीन दिन तक चलेगा।

बरेली से संवाददाता इरफान हुसैन की रिपोर्ट


बरेली में अमन-ओ-सुकून के साथ अदा हुई ईद-उल-अज़हा की नमाज़

उत्तर प्रदेश के बरेली में आज ईद-उल-अज़हा (बकरीद) की नमाज़ अकीदत और अमन के साथ अदा की गई। सुबह से ही शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज़ अदा करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। बाकरगंज स्थित ऐतिहासिक ईदगाह में सुबह 10 बजे काज़ी-ए-हिंदुस्तान मुफ्ती असजद रज़ा कादरी (असजद मियाँ) ने नमाज़ अदा कराई और नमाज़ के बाद खास खुत्बा पढ़ते हुए मुल्क में अमन और फिलिस्तीन के लोगों के लिए दुआ की गई।

ईदगाह से दरगाह तक – शहर की हर मस्जिद में दिखा रौनक

सुबह सबसे पहली नमाज़ बाजार संदल की चाँद मस्जिद में 5:35 बजे अदा की गई। दरगाह आला हज़रत की रज़ा मस्जिद में सबसे आखिरी नमाज़ 10:30 बजे मुफ्ती ज़ईम रज़ा ने अदा कराई। इस मौके पर अल्लामा तौसीफ रज़ा खान ने ख़ास दुआ कराई। दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियाँ, सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियाँ, मुफ्ती सलीम नूरी, नासिर कुरैशी, मंजूर रज़ा सहित बड़ी तादाद में उलेमा और आम लोग शामिल हुए।



मस्जिदों में पढ़ा गया सुन्नते इब्राहीमी का वाकया

हर मस्जिद में इमामों ने हज़रत इब्राहीम व इस्माइल अलेहिस्सलाम की कुर्बानी का वाकया बयान करते हुए मुसलमानों को अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्यारी चीज़ कुर्बान करने की सीख दी। शरई मालदारों द्वारा जानवरों की कुर्बानी का दौर भी शुरू हुआ जो अगले दो दिनों यानी 08 और 09 जून तक जारी रहेगा।



शहर के प्रमुख स्थलों पर समय अनुसार अदा हुई नमाज़

  • दरगाह ताजुश्शरिया – 6:30 बजे
  • दरगाह शाह शराफत अली मियाँ – 7:00 बजे
  • खानकाह-ए-वामिकिया – 7:30 बजे
  • दरगाह बशीर मियाँ – 8:30 बजे
  • खानकाह-ए-नियाज़िया व किला की जामा मस्जिद – 9:00 बजे
  • गढ़ी मस्जिद – दो शिफ्टों में, 7:00 और 7:30 बजे

गढ़ी मस्जिद में नमाज़ियों की संख्या अधिक होने के कारण यहाँ दो बार नमाज़ कराई गई। हर स्थान पर नमाज़ के बाद गले मिलकर एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी गई और अमन की दुआएं मांगी गईं।



घरों में दावतों और पकवानों की महक, बच्चों के लिए मेला

नमाज़ और कुर्बानी के बाद घरों में खास दावतों का आयोजन किया गया। तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए, जिसमें सिवइयाँ, कबाब, बिरयानी, मटन करी आदि प्रमुख रहे। ईदगाह के आसपास और कुछ मस्जिदों के बाहर बच्चों के लिए झूले, खिलौने और खाने-पीने के स्टॉल्स लगे।

ईद-उल-अज़हा का यह त्योहार बरेली में सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि भाईचारे, त्याग और समर्पण का प्रतीक बनकर सामने आया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ