पद्म विभूषण जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देकर किया सम्मानित।
इंद्रेश तिवारी की रिपोर्ट
शचीपुरम् से ज्ञानपीठ तक का ऐतिहासिक सफर! राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संस्कृत सेवा पर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी को दिया देश का 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार
पुरस्कार समारोह नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जहाँ राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वयं जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य जी को शॉल, श्रीफल, मां सरस्वती की मूर्ति, स्मृति चिह्न और नकद राशि के साथ यह पुरस्कार भेंट किया। इस अवसर पर पूरे भारत के दिग्गज साहित्यकार, कुलपति, शिक्षाविद् और विद्वान मौजूद रहे।
शचीपुरम् की माटी को मिला गौरव का मुकुट
शचीपुरम् (साडी खुर्द), सुजानगंज की वह पुण्यभूमि जहां आचार्य गिरिधरलाल मिश्र का जन्म हुआ था, आज पूरे देश में पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के नाम से जानी जाती है। संस्कृत भाषा, शास्त्र, दर्शन, रामकथा, वैदिक साहित्य और शारीरिक अक्षमता को पीछे छोड़ अद्भुत विद्वता के साथ जीवन बिताने वाले पूज्य गुरुदेव को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं।
उनके निजी सचिव श्री आर.पी. मिश्रा ने भावुक होते हुए कहा,
"आज का दिन हमारे गांव ही नहीं, पूरे भारतवर्ष के लिए ऐतिहासिक और गर्व से भरा हुआ है। यह सम्मान पूज्य गुरुदेव की वर्षों की निःस्वार्थ सेवा, लेखनी की सच्चाई और वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार का परिणाम है।"
गुरुदेव बोले- मेरी लेखनी मनोरंजन नहीं, सृजन है…
सम्मान प्राप्त करने के बाद जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य जी ने मंच से जो शब्द कहे, वे सीधे हृदय को छू गए। उन्होंने कहा:
"मुझे यह पुरस्कार संस्कृत भाषा में मेरी सेवा के लिए दिया गया है। मैं जीवनपर्यन्त इस साहित्यिक सेवा में लगा रहूंगा। लेखक का कार्य मनोरंजन करना नहीं होता, वह समाज के पुनर्निर्माण के लिए सृजन करता है।"
शचीपुरम् में बधाइयों का तांता, मिश्रा परिवार में खुशी की लहर
जैसे ही यह खबर गांव पहुंची, पूरे शचीपुरम् गांव में उत्सव का माहौल बन गया। मिश्रा परिवार, जहाँ से गुरुदेव का जन्म और बाल्यकाल बीता, वहाँ बधाई देने वालों की कतार लग गई। ब्रह्मदेव मिश्र, आचार्य चंद्रकांत मणि मिश्र, ओमप्रकाश मिश्र सहित मिश्रा परिवार के सभी सदस्य भाव-विभोर हो गए। क्षेत्रीय गणमान्य नागरिक उमाशंकर सिंह (जज साहब), अवधेश सिंह, डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. विनय तिवारी, सुशील मिश्र, डॉ. प्रमोद के. सिंह, एसपी मिश्रा, आनंद मिश्र, सुबेदार मिश्र, अरविंद मिश्र, संतोष मिश्र, सचिन मिश्र और शिवम सिंह जैसे अनेक लोगों ने पहुंचकर गुरुदेव को शुभकामनाएं दीं।
देशभर के शिक्षाविदों का हुआ समागम
यह पुरस्कार समारोह केवल एक पुरस्कार का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि देशभर के प्रमुख विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षाविदों का ऐतिहासिक मिलन बन गया। संस्कृत, साहित्य और भारतीय संस्कृति को समर्पित शिक्षकों ने एकजुट होकर इस बात पर बल दिया कि ऐसे संतों की सेवाओं को राष्ट्रीय मंच पर लाया जाना बेहद आवश्यक है।
ज्ञानपीठ ने दर्ज किया नया अध्याय
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा दिया जाने वाला यह 58वां पुरस्कार अब तक की श्रेणी में सबसे अलग इसलिए था क्योंकि यह सम्मान पूर्ण रूप से दृष्टिहीन होते हुए भी भारतवर्ष को शास्त्रों, ग्रंथों और प्रवचनों के माध्यम से नई चेतना देने वाले एक दिव्य पुरूष को मिला।
गांव की गलियों से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा
आचार्य गिरिधरलाल मिश्र से जगद्गुरु रामभद्राचार्य तक की यात्रा संघर्ष, तप, साधना और अटूट विश्वास की मिसाल रही है। बाल्यावस्था में दृष्टिहीन होने के बावजूद उन्होंने अपने जीवन को रचनात्मकता और भक्ति के माध्यम से ऐसा आकार दिया कि वे आज करोड़ों लोगों के आदर्श बन चुके हैं।
पूरे भारत को मिला एक नया प्रेरणास्त्रोत
उनका जीवन संदेश देता है कि असंभव कुछ भी नहीं होता। जो व्यक्ति दृष्टिहीन होकर भी रामचरितमानस की टीका, शताधिक ग्रंथ, रामकथा की प्रवचन शृंखला रच सकता है, वह सच्चा योगी, सच्चा ऋषि और भारतभूमि का गौरव है।
आगे भी संस्कृत सेवा में समर्पित रहेंगे गुरुदेव
अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पुरस्कार उनके लिए किसी उपलब्धि का अंत नहीं, बल्कि नई जिम्मेदारी की शुरुआत है। वे अंतिम श्वास तक संस्कृत भाषा, शास्त्र और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगे रहेंगे।
संस्कृत का पुनर्जागरण – एक युग का उद्घोष
भारत में जहां आधुनिकता के बीच पारंपरिक भाषाएं कमजोर हो रही हैं, वहीं ऐसे संत और शिक्षाविद भारत की जड़ों को सींचने का कार्य कर रहे हैं। यह सम्मान पूरे संस्कृत समाज को नूतन ऊर्जा देने वाला बन गया है।
आज का दिन न केवल शचीपुरम् गांव के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए ऐतिहासिक रहा। पद्म विभूषण जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी को मिला ज्ञानपीठ सम्मान एक युग की सिद्धि है, एक विचार की जीत है, और एक परंपरा के पुनर्जागरण की शुरुआत है।


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