रबर फैक्टरी की बेशकीमती जमीन पर सिडकुल स्थापना की आशीष ने फिर छेड़ी मुहिम




केंद्रीय विधि मंत्री को संबोधित मांगपत्र वन-पर्यावरण मंत्री अरुण कुमार को सौंपा, केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करवाने पर जोर

संवाददाता मुदित प्रताप सिंह की रिपोर्ट

बरेली : फतेहगंज पश्चिमी नगर पंचायत अध्यक्ष पद के भाजपा प्रत्याशी रहे अंतरराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन युवा मोर्चा के बरेली जिलाध्यक्ष आशीष अग्रवाल ने बरेली में प्रवेश के वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डाॅ. अरुण कुमार सक्सेना से भेंट कर रबर फैक्टरी के वर्षों से लंबित भूमि स्वामित्व केस को व्यापक जनहित में मुंबई हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करवाने संबंधी केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को संबोधित मांगपत्र उन्हें सौंपा।
मांगपत्र में बताया गया है कि रबर फैक्ट्री प्रबंधन को 1500 एकड़ से भी ज्यादा जमीन उप्र सरकार के तत्कालीन राज्यपाल के हस्ताक्षरों वाली रजिस्टर्ड सेल डीड के साथ इस शर्त पर दी गई थी कि फैक्टरी छह माह या अधिक समय तक बंद रहने पर खरीदी गई कीमत पर ही सरकार को वापस करनी होगी। 
मांगपत्र के मुताबिक, प्रबंधन ने 15जुलाई 1999 को रबर फैक्टरी की अघोषित तालाबंदी कर दी और सभी 1443 स्थायी अधिकारियों-कर्मचारियों को फैक्टरी दुबारा चालू होने पर बकाया वेतन और अन्य देयों के भुगतान का आश्वासन देकर सवेतन अवकाश पर घर भेज दिया। भयावह आर्थिक तंगी नहीं झेल पाने की वजह से 14 श्रमिकों को खुदकुशी करनी पड़ी जबकि 600 से ज्यादा मजदूर भूख-बीमारी-गरीबी से त्रस्त होकर असमय ही मृत्यु के मुंह में समा चुके हैं।

मांगपत्र में बताया गया है कि मुंबई हाईकोर्ट और ॠण समाशोधन न्यायाधिकरण (डीआरटी) में गलत तथ्य पेश कर 14 ॠणदाता बैंकों ने फैक्टरी की जमीन को अपने अधिकार में लेकर कोर्ट का रिसीवर बैठा दिया। दलील देते हुए सवाल भी दागा है कि बैंकों ने लोन सरकारी जमीन पर नहीं, बल्कि फैक्टरी मालिकान की हैसियत और निजी मिलकियत पर दिया था तो बैंक जमीन हथियाने के हकदार कैसे हो सकते हैं? लेकिन रिसीवर की तैनाती और सुरक्षा कर्मियों की फौज होने पर भी पिछले 25 वर्षों में फैक्टरी की बेशकीमती मशीनों और उपकरणों को चोरी से काट-काटकर उसे पूरी तरह से खोखला कर दिया गया है। आरोप लगाया है कि अल कैमिस्ट लिमिटेड ने भी सरकार को गुमराह करते हुए फैक्टरी की बेशकीमती जमीन का सिर्फ 100 करोड़ रुपये में अपने हक में बयनामा करवा लिया और अब कोर्ट की मदद से अरबों की परिसंपत्तियों पर खुद काबिज होने के ख्याली पुलाव पका रही है लेकिन न्याय तंत्र अभी जीवित है और मोदी सरकार के रहते यह आपाधापी संभव नहीं है।

मांगपत्र में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी ऑनलाइन जनहित याचिका स्वीकार हो चुकने लेकिन सुनवाई के लिए लंबित होने का हवाला देते हुए श्री अग्रवाल ने व्यापक जनहित में शीघ्र इसकी सुनवाई शुरू करवाने का केंद्रीय विधि मंत्री से आग्रह किया है ताकि रेलवे ब्राडगेज और फोरलेन हाईवे से सटी बेशकीमती जमीन उप्र सरकार के कब्जे में आ सके और इस जमीन पर राजकीय औद्योगिक आस्थान (सिडकुल) की स्थापना कर हजारों विस्थापित मजदूरों और उनके आश्रितों को रोजगार देकर पुनर्वासित कराया जा सके। डाॅ. अरुण कुमार ने प्रदेश सरकार की प्रबल संस्तुति के साथ मांगपत्र शीघ्र ही केंद्रीय विधि मंत्री श्री मेघवाल को सौंपने का भरोसा दिलाया है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ