'आंसुओं' में बहुत ताकत होती हैं 'हुजूरे आला' समझ गए न

व्यंग्यकर्ता - चैतन्य भट्ट

अपने को याद है जब बचपन में बच्चे  लोग कोई खेल खेलते थे तब जो बच्चा हार जाता था वो रोने लगता था  वो जीतने वाले पर  ' रोहटाईं ' का आरोप लगाता  था तो जीतने वाला बच्चा उसको  चिढ़ाने लगता था, लोगों को ये ही  मालूम था  कि जो हार जाता  है वो ही  रोता है , उसके ही आंसू निकलते है पर यंहा तो  पांसा ही उलटा पड़ गया। जो किसान आंदोलन 26 जनवरी की हिंसा के बाद 'फुट फ़ैल' होने वाला था और सरकार  उस पर भारी पड़ने वाली थी  उस  आंदोलन में किसान नेता 'राकेश टिकैत' के आंसुओं ने ऐसा तूफ़ान खड़ा  कर दिया कि सारा देश हतप्रभ रह गया l सरकार को भी समझ में नहीं आया कि 'टिकैत साहेब' के आंसुओं में ऐसा कौन सा जादू था कि ख़त्म हो रहे किसान आंदोलन में एक़दम से आग लग गयी और अब तो ये हालत है कि उनके आंसुओं ने देश भर के किसानों  को सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया है कंही पंचायत हो रही है तो कंही महापंचायत, सरकार भी सकते में है कि न टिकैत अपनी आँखों से आंसू  गिराते  न ऐसा माहौल बनता l दरअसल 'आंसुओं' को कमतर मान  लिया  था  सरकार  ने, अरे आंसुओं की ताकत किसी शादी शुदा मर्द से पूछो, बीबी आंसू बहाती है और पति को उसे सोने का हार लाकर देना पड़ता है,  बच्चा जब आंसू बहाता है तो माता पिता को उसके दांत  ख़राब होने के बाद भी  बच्चे को चॉकलेट देना ही पड़ता है, माशूका जब आंसू बहाती है तो आशिक आसमान से  तारे तोड़कर  लाने में जुट  जाता है, मास्टर साहब  जब क्लास में किसी को पीटने के लिए छड़ी  उठाते थे और वो स्टूडेंट  रोने लगता था तो  मासाब की छड़ी खुद ब खुद रुक जाती थी l आंसुओं की महत्ता पर तो कई फ़िल्मी गीतकारों ने गाने भी लिख डाले हैं जो आज के संदर्भ में  सटीक  बैठ रहे हैं  मसलन  किसानों पर  ये गाना  फिट बैठा रहा है वे सरकार से कह रहे हैं  'आंसू समझ के क्यों मुझे आँख से तुमने गिरा दिया'  सरकार के मंत्री  तोमर  साहब इसके  जवाब में कह रहे है 'तेरी आंख के आंसू पी  जाऊं ऐसी  मेरी तकदीर कंहाँ'  क्योकि ऊपर से जो कहा जाएगा वही तय करना  पडेगा,  इधर राकेश टिकैत ने इस गाने के माध्यम से  सारी  बातें साफ़ कर दी 'ये आंसू  मेरे दिल की जुबान है' इसके साथ साथ ये भी कह दिया  कि 'आंसू भरी हैं  गाजीपुर की बॉर्डर कोई उनसे कह दो हमें न हटाएँ'  आंसुओं पर एक फिल्म भी 60 के दशक में  बनी थी  'आंसू बन गए फूल' जो बड़ी ही मकबूल हुई थीl फिल्मों को  छोड़  दें तो शायरी में भी  'आंसुओं'  का भरपूर उपयोग किया गया है क्योकि आंसू 'ख़ुशी' के भी होते हैं  'गम' के भी और 'खून' के भी  इसलिए  गुलाम अली की ये गजल आज भी लोगो की जुबान  पर है 'चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है' अपनी  तो  सरकार को यही  राय  है कि हुजूर  आंसुओं  की ताकत को पहचानो, बैठ कर कोई निबटारा कर लो कंही ऐसा न हो  कि ये  चंद आंसू  सैलाब  में तब्दील हो जाएँ  क्योकि ये दर्द से निकले  आंसू है और 'मिर्जा ग़ालिब' ने ठीक ही कहा है  'तासीर किसी दर्द की मीठी नहीं होती ग़ालिब,  वजह यही है कि आंसू नमकीन होते हैं' 


भूल जाओ  मंत्री बनने का सपना 


मामाजी  यानि शिवराज सिंह हैं तो बड़े जी उस्ताद, राजनीती कैसे  की जाती  है लोगों को संतुष्ट कैसे किया जाता है उसकी ट्रेनिंग अपने मामाजी से लेना चाहिए, भारी हल्ला मचा रहे थे महाकोशल के नेता लोग कि महकौशल को  मंत्री मंडल में स्थांन नहीं  दिया गया, ये महाकोशल के साथ अन्याय है, इस बीच मुख्यमंत्री जबलपुर आ  गए पत्रकारों   ने मामाजी से पूछ लिया कि जबलपुर और महाकोशल को मंत्रीमंडल में स्थान क्यों नहीं  दिया गया, मामाजी ने तपाक से उत्तर  दिया मैं तो हूँ महाकोशल  का मंत्री, मुझे  मानो अपना, अरे भाई जब  मैं आपका  हुआ तो महाकोशल का हुआ और आप मंत्री की बात कर रहे हो मुख़्यमंत्री  आपके महाकोशल का है अब जब मुख्यमंत्री ही  महाकोशल  का हो गया है जैसा मामाजी कह रहे है तो फिर मंत्रियों की जरूरत भी  क्या है, इसका मतलब साफ़ है कि जो लोग भी मंत्री बनने  का सपना देखा रहे  वे सब अपना सपना टूटा हुआ मान लें क्योंकि  मामाजी ने एक ही झटके में  सारे  नेताओं के अरमानो पर पानी फेर दिया है किस मुंह से मंत्री पद मांगोगे जब मुख़्यमंत्री खुद कह  रहा है कि मैं  महाकोशल  का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ तो किसकी हिम्मत है कि वो मामाजी की बात काट  दे कि  हुजूर इस  तरह का लॉलीपॉप  मत  पकड़ाओ  हमें  मालूम  है कि आप कँहा के हो, पर बोले तो बोले कौन  यदि कोई कह रहा है और वो भी  खुद मुख्यमंत्री ,इसलिये महाकोशल के नेताओ अब ये भूल जाओ कि महाकोशल या जबलपुर से कोई मंत्री बन पायेगा l 


सुपर हिट ऑफ़ द वीक


'आप बहुत भोले हो, आपको कोई भी बेबकूफ बना सकता है' श्रीमती जी ने श्रीमान जी से कहा 


'ठीक कहा तुमने, शुरुआत तो तुम्हारे  पिताजी  ने ही की थी'  श्रीमान जी का  उत्तर  था

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