UP BJP को मिला नया सेनापति! पंकज चौधरी बने 17वें प्रदेश अध्यक्ष, 45 साल के इतिहास में किसे-किसे मिली पार्टी की कमान




UP BJP के 17वें अध्यक्ष बने पंकज चौधरी। जानिए 1980 से अब तक यूपी बीजेपी के सभी प्रदेश अध्यक्षों का पूरा इतिहास।


उत्तर प्रदेश बीजेपी को मिला नया अध्यक्ष, पंकज चौधरी के नाम दर्ज हुआ नया अध्याय

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर बड़ा संगठनात्मक बदलाव देखने को मिला है। भारतीय जनता पार्टी ने पंकज चौधरी को उत्तर प्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया है। 14 दिसंबर 2025 को हुए इस ऐलान के साथ ही पंकज चौधरी बीजेपी के 17वें प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। 1980 में पार्टी की स्थापना के बाद से लेकर अब तक यूपी बीजेपी ने कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे हैं और हर दौर में संगठन की कमान अलग-अलग नेताओं के हाथों में रही है। पंकज चौधरी की ताजपोशी ऐसे समय पर हुई है जब पार्टी 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट चुकी है और संगठन को जमीनी स्तर पर और मजबूत करने की चुनौती सामने है।

45 साल का संगठनात्मक सफर, 17 अध्यक्ष और बदलती राजनीति

भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश में संगठनात्मक इतिहास लगभग 45 साल पुराना है। 1980 में जनसंघ से अलग होकर बीजेपी के गठन के बाद से यूपी संगठन ने कई प्रयोग किए। कभी सामाजिक संतुलन साधा गया, तो कभी संगठनात्मक मजबूती को प्राथमिकता दी गई। इस लंबे सफर में पार्टी ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, ओबीसी और गैर-यादव पिछड़ा वर्ग समेत अलग-अलग सामाजिक समूहों से आने वाले नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। यही वजह है कि यूपी बीजेपी का संगठनात्मक इतिहास केवल नामों की सूची नहीं बल्कि राज्य की बदलती राजनीतिक रणनीति की कहानी भी कहता है।

ब्राह्मण चेहरों पर भरोसा, सात बार मिली प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी

अगर यूपी बीजेपी के अध्यक्षों के सामाजिक समीकरणों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि पार्टी ने ब्राह्मण नेतृत्व पर कई बार भरोसा जताया। अब तक सात बार ब्राह्मण नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। खास बात यह रही कि इनमें से कुछ नेताओं ने दो-दो बार संगठन की कमान संभाली। ब्राह्मण चेहरे यूपी बीजेपी की वैचारिक रीढ़ माने जाते रहे हैं और संगठन के शुरुआती दौर से ही उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती रही हैं।

मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी यहीं से खुला

यूपी बीजेपी के इतिहास में दो ऐसे मौके आए जब प्रदेश अध्यक्ष पद से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय हुआ। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह ऐसे नेता रहे जिन्होंने पहले संगठन की कमान संभाली और बाद में प्रदेश की सत्ता भी संभाली। इससे यह साफ होता है कि बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष का पद केवल संगठनात्मक नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम माना जाता है।

माधो प्रसाद त्रिपाठी: यूपी बीजेपी के पहले अध्यक्ष

1980 में जब बीजेपी का गठन हुआ तो उत्तर प्रदेश में संगठन की पहली जिम्मेदारी माधो प्रसाद त्रिपाठी को सौंपी गई। वह 1980 से 1984 तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे। यह वह दौर था जब बीजेपी खुद को जनसंघ की छवि से बाहर निकालकर एक नई राजनीतिक पहचान गढ़ने में जुटी थी। माधो प्रसाद त्रिपाठी ने संगठन को खड़ा करने, कार्यकर्ताओं को जोड़ने और पार्टी की वैचारिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई। वह लोकसभा सांसद भी रहे और पार्टी के शुरुआती स्तंभों में गिने जाते हैं।

कल्याण सिंह: संगठन से सत्ता तक का सफर

माधो प्रसाद त्रिपाठी के बाद कल्याण सिंह को यूपी बीजेपी की कमान सौंपी गई। कल्याण सिंह छह साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे और पार्टी को सामाजिक आधार देने में उनकी बड़ी भूमिका रही। बाद में वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय वह मुख्यमंत्री थे, जो उनके राजनीतिक जीवन का सबसे विवादित और चर्चित दौर माना जाता है। कुछ वर्षों तक पार्टी से अलग रहने के बाद 2014 में उन्होंने बीजेपी में वापसी की।

राजेंद्र कुमार गुप्ता: संक्रमणकाल के अध्यक्ष

कल्याण सिंह के बाद राजेंद्र कुमार गुप्ता को एक साल के लिए प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। यह वह समय था जब पार्टी संगठनात्मक रूप से खुद को नए दौर के लिए तैयार कर रही थी। हालांकि उनका कार्यकाल लंबा नहीं रहा, लेकिन संगठन को स्थिर रखने में उनकी भूमिका अहम रही।

कलराज मिश्र: सबसे लंबे कार्यकाल वाले अध्यक्ष

राजेंद्र कुमार गुप्ता के बाद कलराज मिश्र को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। वह 1991 से 1997 तक इस पद पर रहे और यूपी बीजेपी के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले नेता बने। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई बड़े राजनीतिक संघर्ष देखे और संगठन को मजबूती मिली। बाद में 2000 से 2002 तक उन्होंने दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली, जिससे उनका नाम यूपी बीजेपी के इतिहास में खास तौर पर दर्ज हो गया।

राजनाथ सिंह: संगठन से मुख्यमंत्री तक

कलराज मिश्र के बाद बीजेपी ने राजनाथ सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। मार्च 1997 से जनवरी 2000 तक वह इस पद पर रहे। इसके बाद 2000 से 2002 तक वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। राजनाथ सिंह का संगठनात्मक अनुभव उनकी प्रशासनिक भूमिका में भी साफ नजर आया। बाद में वह केंद्र की राजनीति में भी महत्वपूर्ण चेहरा बने और गृह मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे।

ओम प्रकाश सिंह: अल्पकालिक लेकिन अहम भूमिका

राजनाथ सिंह के बाद ओम प्रकाश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जनवरी 2000 से अगस्त 2000 तक उनका कार्यकाल केवल सात महीने का रहा। कुर्मी समाज से आने वाले ओम प्रकाश सिंह के जरिए पार्टी ने सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की।

विनय कटियार: राम मंदिर आंदोलन का असर

कलराज मिश्र के दूसरे कार्यकाल के बाद विनय कटियार को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों में गिने जाने वाले विनय कटियार ने करीब दो साल तक संगठन की कमान संभाली। उनके दौर में पार्टी का वैचारिक एजेंडा और ज्यादा मुखर हुआ।

केशरीनाथ त्रिपाठी: संगठन से संवैधानिक पदों तक

विनय कटियार के बाद केशरीनाथ त्रिपाठी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जुलाई 2004 से सितंबर 2007 तक वह इस पद पर रहे। बाद में वह यूपी विधानसभा के स्पीकर बने और कई राज्यों के राज्यपाल भी रहे। उनका कार्यकाल संगठनात्मक स्थिरता के लिए जाना जाता है।

रमापति राम त्रिपाठी: संगठन को चुनावी मोड में लाने की कोशिश

2007 से 2010 तक डॉ. रमापति राम त्रिपाठी यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे। वह देवरिया लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में पार्टी ने खुद को चुनावी मोड में ढालने की कोशिश की, हालांकि उस समय सत्ता से दूरी बनी रही।

सूर्य प्रताप शाही: सत्ता के करीब पहुंचती बीजेपी

मई 2010 से अप्रैल 2012 तक सूर्य प्रताप शाही प्रदेश अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने संगठनात्मक मजबूती के साथ सत्ता की वापसी की तैयारी शुरू की। आज वह योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, जो उनके राजनीतिक कद को दर्शाता है।

लक्ष्मीकांत वाजपेयी: लंबे समय तक संगठन की कमान

2012 से 2016 तक लक्ष्मीकांत वाजपेयी यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रहे। करीब चार साल के इस कार्यकाल में पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जिसका असर प्रदेश संगठन पर भी साफ दिखा।

केशव प्रसाद मौर्य: 2017 की जीत के सूत्रधार

अप्रैल 2016 से अगस्त 2017 तक केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल किया। बाद में वह डिप्टी सीएम बने और आज भी प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

महेंद्र नाथ पांडेय: संगठन से केंद्र तक

अगस्त 2017 से जुलाई 2019 तक महेंद्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष रहे। दो बार सांसद रह चुके महेंद्र नाथ पांडेय केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। उनके कार्यकाल में संगठन और सरकार के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला।

स्वतंत्र देव सिंह: ओबीसी समीकरण पर फोकस

जुलाई 2019 से अगस्त 2022 तक स्वतंत्र देव सिंह यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रहे। कुर्मी समाज से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह ने संगठन में ओबीसी समीकरण को मजबूत किया। बाद में वह योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।

चौधरी भूपेंद्र सिंह: 2022 के बाद का दौर

2022 में चौधरी भूपेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने संगठन को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए तैयार किया और सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी।

पंकज चौधरी: नए दौर की शुरुआत

14 दिसंबर 2025 को पंकज चौधरी को यूपी बीजेपी का 17वां प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया गया। ओबीसी पृष्ठभूमि से आने वाले पंकज चौधरी को संगठनात्मक अनुभव और केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा हासिल है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करना और सामाजिक समीकरणों को साधना है। पंकज चौधरी की नियुक्ति से साफ संकेत मिलते हैं कि बीजेपी अब संगठन को और ज्यादा आक्रामक व चुनावी मोड में लाने की तैयारी कर चुकी है।

यूपी बीजेपी का इतिहास और भविष्य की राजनीति

उत्तर प्रदेश बीजेपी के 45 साल के इतिहास में प्रदेश अध्यक्षों की भूमिका केवल संगठन तक सीमित नहीं रही है। यह पद सत्ता की राजनीति, सामाजिक समीकरण और वैचारिक दिशा तय करने का केंद्र रहा है। पंकज चौधरी की ताजपोशी के साथ ही एक नया अध्याय शुरू हो चुका है, जहां संगठन और सरकार के बीच संतुलन बनाते हुए आने वाले चुनावों की रणनीति तय की जाएगी। यूपी की राजनीति में यह बदलाव आने वाले समय में क्या रंग लाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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