बरेली महिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट की चौंकाने वाली गलती, कहीं जुड़वा बताए गए तो जन्मा एक, कहीं उलटा मामला
बरेली महिला अस्पताल से सामने आया हैरान कर देने वाला मामला
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से सामने आई यह घटना सिर्फ एक मेडिकल चूक नहीं, बल्कि पूरे अल्ट्रासाउंड सिस्टम की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल बनकर उभरी है। जिला महिला अस्पताल में बीते कुछ दिनों के भीतर दो ऐसे प्रसव मामले सामने आए हैं, जिन्होंने आम जनता, डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग सभी को असमंजस में डाल दिया है। एक ओर अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में जुड़वा बच्चों की पुष्टि की गई, लेकिन डिलीवरी के समय केवल एक बच्चे का जन्म हुआ। दूसरी ओर महिला को पूरे गर्भकाल में सिंगल चाइल्ड बताया गया, लेकिन प्रसव के समय उसने जुड़वा बच्चों को जन्म दे दिया।
एक रिपोर्ट, एक हकीकत और सवालों का अंबार
इन दोनों घटनाओं ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर अल्ट्रासाउंड जैसी संवेदनशील जांच में इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है। गर्भवती महिलाएं और उनके परिवार अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं, उसी रिपोर्ट के आधार पर मानसिक और आर्थिक तैयारियां होती हैं। लेकिन जब रिपोर्ट और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क निकल आए, तो भरोसा डगमगाना लाजमी है।
इज्जतनगर की आरती और जुड़वा बच्चों का चौंकाने वाला सच
पहला मामला इज्जतनगर थाना क्षेत्र के आंबेडकरनगर निवासी आकाश की पत्नी आरती से जुड़ा है। आरती की गर्भावस्था के दौरान कई बार निजी अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर जांच कराई गई। हर रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा था कि गर्भ में एक ही बच्चा है। इसी जानकारी के साथ परिवार ने पूरी गर्भावस्था बिताई और प्रसव की तैयारी की।
अचानक शुरू हुआ दर्द और महिला अस्पताल तक का सफर
गुरुवार देर रात आरती को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। परिवार ने तुरंत आशा कार्यकर्ता को सूचना दी। इसके बाद 102 एंबुलेंस बुलाई गई और शुक्रवार सुबह करीब छह बजे आरती को बरेली के जिला महिला अस्पताल लाया गया। अस्पताल में भर्ती होने के बाद डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ ने जरूरी औपचारिकताएं पूरी कीं और आरती को लेबर रूम में ले जाया गया।
पांच मिनट का अंतर और दो नवजात, परिवार सन्न
कुछ ही देर बाद ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। आरती ने करीब पांच मिनट के अंतराल पर दो बच्चों को जन्म दिया। दोनों बच्चे पूरी तरह स्वस्थ बताए गए। लेकिन इस खबर ने जहां अस्पताल स्टाफ को हैरान कर दिया, वहीं परिजन भी स्तब्ध रह गए। क्योंकि पूरे नौ महीने तक सभी रिपोर्टों में एक ही बच्चे की पुष्टि होती रही थी।
निजी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट्स ने बढ़ाई उलझन
आरती के पति आकाश ने तुरंत सुभाषनगर और इज्जतनगर स्थित दो निजी अल्ट्रासाउंड सेंटरों की रिपोर्ट अस्पताल प्रशासन को दिखाई। दोनों रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सिंगल चाइल्ड लिखा हुआ था। न तो कहीं ट्विन प्रेग्नेंसी का जिक्र था और न ही कोई संदिग्ध नोट। यह देखकर अस्पताल स्टाफ भी चौंक गया और मामला तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाया गया।
सीएमएस ने क्या कहा, क्यों शुरू हुई जांच
महिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. त्रिभुवन प्रसाद ने बताया कि आरती की आखिरी अल्ट्रासाउंड जांच 11 अक्टूबर को हुई थी और उस रिपोर्ट में भी एक ही बच्चा बताया गया था। ऐसे में जुड़वा बच्चों का जन्म होना एक असामान्य स्थिति है। उन्होंने कहा कि पूरे मामले की गहराई से जांच कराई जाएगी और संबंधित अल्ट्रासाउंड सेंटरों से भी जवाब तलब किया जाएगा।
भुता की राजेश्वरी देवी और उलटा मामला
इसी बीच दूसरा मामला भुता थाना क्षेत्र के गजनेरा गांव निवासी सुरेश बाबू की पत्नी राजेश्वरी देवी का सामने आया। इस केस ने पहले मामले से भी ज्यादा सवाल खड़े कर दिए। राजेश्वरी देवी की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में जुड़वा बच्चों की पुष्टि की गई थी। परिवार इसी सोच के साथ अस्पताल पहुंचा कि दो बच्चों का जन्म होगा।
रिपोर्ट में जुड़वा, डिलीवरी में एक
लेकिन जब प्रसव हुआ तो सिर्फ एक ही बच्चे का जन्म हुआ। यह देखकर न सिर्फ परिजन बल्कि अस्पताल प्रशासन भी चौंक गया। जुड़वा बच्चों की रिपोर्ट और सिंगल डिलीवरी के बीच का यह फर्क किसी को समझ नहीं आ रहा था। सवाल यह था कि दूसरा बच्चा आखिर गया कहां।
सीसीटीवी फुटेज खंगालने में क्या मिला
महिला अस्पताल प्रशासन ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया। सीएमएस के अनुसार लेबर रूम में फिलहाल कैमरे नहीं लगे हैं, लेकिन अस्पताल के बरामदे और परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई। प्रसव के बाद करीब छह घंटे तक की रिकॉर्डिंग को बारीकी से देखा गया।
कहीं नहीं दिखा दूसरा बच्चा
सीसीटीवी जांच में कहीं भी दूसरे बच्चे की मौजूदगी नहीं दिखी। न तो किसी नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी और न ही स्टाफ या परिजनों द्वारा दूसरे बच्चे को ले जाते हुए देखा गया। स्टाफ, ड्यूटी पर मौजूद नर्स और यहां तक कि नवजात की दादी ने भी सिर्फ एक ही बच्चे के जन्म की पुष्टि की। इसके बावजूद मामला जांच के दायरे में है।
नवजात खरीद-फरोख्त की आशंका और चर्चाएं
इन दोनों घटनाओं के बाद अस्पताल परिसर में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं। कुछ लोगों ने इसे मशीन की तकनीकी खामी बताया, तो कुछ ने रेडियोलॉजिस्ट और अल्ट्रासाउंड टेक्नीशियन की लापरवाही पर सवाल उठाए। वहीं कुछ लोगों ने नवजातों की खरीद-फरोख्त जैसी गंभीर आशंकाएं भी जाहिर कीं। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया है, जो इन आशंकाओं की पुष्टि कर सके।
पीसीपीएनडीटी प्रभारी ने दी सफाई
पीसीपीएनडीटी के प्रभारी डॉक्टर लईक अहमद अंसारी ने दोनों मामलों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने बताया कि जिन निजी अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर जांच कराई गई थी, वे सभी स्वास्थ्य विभाग में पंजीकृत हैं। आमतौर पर अल्ट्रासाउंड जांच टेक्निकल एक्सपर्ट करते हैं और रेडियोलॉजिस्ट उनके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर देते हैं। इसी प्रक्रिया में गड़बड़ी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अल्ट्रासाउंड में गलती के संभावित कारण
विशेषज्ञों के अनुसार अल्ट्रासाउंड के दौरान कई तकनीकी और शारीरिक कारणों से रिपोर्ट में त्रुटि हो सकती है। भ्रूण की स्थिति ठीक न होना, पेट में अत्यधिक गैस, एम्नियोटिक फ्लूड का कम या ज्यादा होना, मशीन की गुणवत्ता और उसकी सेटिंग, रेडियोलॉजिस्ट का अनुभव कम होना या जुड़वां बच्चों का आपस में सटा होना, इन सभी स्थितियों में रिपोर्ट गलत आ सकती है। मेडिकल विशेषज्ञ मानते हैं कि करीब 10 प्रतिशत मामलों में ऐसी गलती की संभावना रहती है।
सवालों के घेरे में निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर
इन घटनाओं के बाद निजी अल्ट्रासाउंड सेंटरों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। गर्भावस्था के दौरान की गई जांच सिर्फ एक मेडिकल रिपोर्ट नहीं होती, बल्कि पूरे परिवार के भविष्य की योजना का आधार होती है। ऐसे में रिपोर्ट में इस तरह की चूक लोगों के भरोसे को गहरा झटका देती है।
स्वास्थ्य विभाग की अगली कार्रवाई
महिला अस्पताल प्रशासन ने दोनों मामलों में संबंधित अल्ट्रासाउंड सेंटरों की जांच के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र भेजने की तैयारी कर ली है। जांच में यह देखा जाएगा कि रिपोर्ट तैयार करने में किस स्तर पर लापरवाही हुई। क्या यह सिर्फ तकनीकी चूक थी या फिर मानवीय गलती। जांच के बाद ही सच्चाई पूरी तरह सामने आ पाएगी।
गर्भवती महिलाओं के लिए बढ़ी चिंता
इन घटनाओं के बाद गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों में चिंता बढ़ गई है। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पर निर्भर रहने वाली महिलाएं अब दोबारा सोचने को मजबूर हैं कि क्या एक रिपोर्ट पर पूरी तरह भरोसा किया जाए। विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि संदिग्ध स्थिति में दूसरी जगह से भी जांच कराना बेहतर होता है।
भरोसे की कसौटी पर अल्ट्रासाउंड सिस्टम
बरेली के जिला महिला अस्पताल में सामने आए ये दोनों मामले अल्ट्रासाउंड सिस्टम के भरोसे की कसौटी बन गए हैं। जब रिपोर्ट और वास्तविकता में इतना बड़ा अंतर सामने आता है, तो यह सिर्फ एक जिले की समस्या नहीं रह जाती, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र के लिए चेतावनी बन जाती है। आने वाले दिनों में जांच के नतीजे यह तय करेंगे कि यह तकनीकी गलती थी या लापरवाही, लेकिन तब तक यह मामला लोगों के जेहन में कई अनसुलझे सवाल छोड़ चुका है।


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