सुशी सक्सेना की किताबों ने जीता पाठकों का दिल, श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान में ‘किताबों की दुनिया’ कार्यक्रम रहा बेहद खास


सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर ‘किताबों की दुनिया’ कार्यक्रम में साहित्य प्रेमियों की उमड़ी भीड़, लेखनी ने सबका दिल जीत लिया।


सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर ‘किताबों की दुनिया’ कार्यक्रम में उमड़ा साहित्य प्रेमियों का सैलाब

साहित्य की पवित्र दुनिया में एक शाम पूरी तरह समर्पित रही लेखिका सुशी सक्सेना को, जिनकी रचनाओं ने न सिर्फ शब्दों को जीवन दिया बल्कि पाठकों के दिलों में विचारों का गहरा बीजारोपण किया। बीती रात्रि 9 बजे श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान भारत के मंच पर ‘किताबों की दुनिया में सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर चर्चा’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसने साहित्य जगत में नई चेतना का संचार किया।

इस आयोजन का उद्देश्य केवल पुस्तकों की समीक्षा नहीं था, बल्कि उन विचारों, संवेदनाओं और दृष्टिकोणों पर संवाद स्थापित करना था जो सुशी सक्सेना की लेखनी में गूंजते हैं। कार्यक्रम में लेखिका के साथ-साथ संस्थान की संस्थापिका दिव्यांजली वर्मा और साहित्य, कला व संस्कृति के अनेक दिग्गज उपस्थित रहे। यह आयोजन ऑनलाइन माध्यम से भी प्रसारित हुआ, जिसमें देशभर से सैकड़ों साहित्यप्रेमियों ने भाग लिया।

लेखिका सुशी सक्सेना: विचारों की नई क्रांति की प्रतिनिधि

सुशी सक्सेना का नाम आज हिंदी साहित्य की उन लेखिकाओं में गिना जाता है जिन्होंने अपने लेखन से समाज की वास्तविकताओं को बेबाकी से उजागर किया है। उनकी पुस्तकों में नारी अस्मिता, सामाजिक न्याय, वैज्ञानिक सोच और मानवता के भावों का सुंदर संगम दिखाई देता है। इस कार्यक्रम में उनकी प्रसिद्ध रचनाओं जैसे “मन का विज्ञान”, “संवेदना के रंग”, और “राजनीति के पार्श्व स्वर” पर गहन विमर्श हुआ।

वक्ताों ने बताया कि सुशी सक्सेना की लेखनी केवल साहित्यिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा भी है। उनकी कहानियाँ और कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं कि सरल भाषा में गहरी बात कहना एक कला है, और वे इस कला में पारंगत हैं।

मंच पर संवाद और रचनाओं का जीवंत वाचन

कार्यक्रम की शुरुआत दिव्यांजली वर्मा के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने कहा कि साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के विचारों को दिशा देने वाला माध्यम है। इसी कड़ी में लेखिका सुशी सक्सेना ने अपनी लोकप्रिय पुस्तकों के कुछ अंशों का वाचन किया। जब उन्होंने अपनी कविता “स्त्री की मौन पुकार” पढ़ी, तो सभागार में सन्नाटा और भावनाओं का ज्वार एक साथ उमड़ पड़ा।

उनकी एक और रचना “विज्ञान और मनुष्य” पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान और संवेदना विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। इस कथन पर श्रोताओं ने ज़ोरदार तालियों से स्वागत किया।

साहित्य, कला और संस्कृति के दिग्गजों की उपस्थिति ने बढ़ाई शोभा

इस आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से साहित्यकार, कवि, समीक्षक और कलाकार शामिल हुए। दिल्ली से प्रो. रजनीश अवस्थी, लखनऊ से साहित्यकार सुभाष चौबे, और जयपुर से कवयित्री रश्मि पंड्या जैसी जानी-मानी हस्तियों ने कार्यक्रम को अपने विचारों से समृद्ध किया।

रजनीश अवस्थी ने कहा कि “सुशी सक्सेना की किताबें हमें यह सिखाती हैं कि संवेदना और विवेक जब एक साथ चलते हैं, तब समाज में वास्तविक परिवर्तन आता है।” वहीं सुभाष चौबे ने कहा कि “उनकी भाषा में वह गहराई है जो पाठक को भीतर तक छू जाती है।”

‘किताबों की दुनिया’ कार्यक्रम बना साहित्यिक उत्सव

यह आयोजन केवल एक चर्चा नहीं बल्कि एक उत्सव बन गया। कई युवा लेखकों और छात्रों ने सुशी सक्सेना से सवाल पूछे कि वे अपने लेखन में प्रेरणा कहाँ से लाती हैं। लेखिका ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—“प्रेरणा जीवन से मिलती है, और जीवन हर किसी का सबसे बड़ा शिक्षक है।”

उन्होंने यह भी कहा कि आज के डिजिटल युग में किताबें और पढ़ने की संस्कृति को बचाए रखना जरूरी है, क्योंकि यही हमारी मानसिक जड़ों को मज़बूत करती हैं। दिव्यांजली वर्मा ने उनके इस विचार का समर्थन करते हुए कहा कि “शब्दों में वह शक्ति होती है जो पीढ़ियों को जोड़ती है।”

कार्यक्रम का समापन और साहित्य के प्रति नई प्रतिबद्धता

कार्यक्रम के अंतिम चरण में दिव्यांजली वर्मा ने सभी उपस्थित महानुभावों को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान का उद्देश्य यही है कि समाज में साहित्यिक चेतना को बनाए रखा जाए। उन्होंने सुशी सक्सेना की लेखन शैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि “उनकी कलम केवल लिखती नहीं, समाज की धड़कन को महसूस करती है।”

कार्यक्रम का समापन सामूहिक कविता पाठ और राष्ट्रगान के साथ हुआ। विदाई के वक्त उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर संतोष और प्रेरणा की झलक थी। हर कोई इस भावना से लौट रहा था कि साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है।

सुशी सक्सेना का साहित्य: युग का आईना

कार्यक्रम के बाद सोशल मीडिया पर भी चर्चाएँ तेज हो गईं। साहित्यप्रेमियों ने लिखा कि सुशी सक्सेना की किताबें आज की पीढ़ी के लिए एक नई सोच का मार्ग खोलती हैं। उनकी कहानियाँ केवल नारी जीवन तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज की जटिलताओं को प्रतिबिंबित करती हैं।

उनकी लेखनी का प्रभाव इतना व्यापक है कि उन्हें आज के युग की “विचारों की वास्तुकार” कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उनकी रचनाएँ यह सिखाती हैं कि संवेदना की शक्ति तर्क से बड़ी होती है, और तर्क की गहराई संवेदना से समृद्ध होती है।

साहित्य की जीवंत धारा में सुशी सक्सेना का योगदान अमिट

इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि जब लेखक और पाठक एक मंच पर संवाद करते हैं, तो शब्दों की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है। सुशी सक्सेना का यह कार्यक्रम न केवल साहित्य के प्रचार का माध्यम बना बल्कि युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत भी।

श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान भारत के इस आयोजन ने साहित्यिक समाज में नई चेतना का संचार किया है। यह केवल एक सफल कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह उस सांस्कृतिक विरासत की पुनर्स्मृति थी जिसे शब्दों ने सदियों से संभाल रखा है।

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