अररिया में 4 करोड़ का पुल तीन साल में धंस गया, भ्रष्टाचार पर उठे सवाल, चुनावी माहौल में विभाग की कार्यशैली पर निशाना
अररिया में भ्रष्टाचार की नई मिसाल, 4 करोड़ का पुल धराशायी
बिहार में सरकारी परियोजनाओं की गुणवत्ता एक बार फिर सवालों के घेरे में है। अररिया जिले के फारबिसगंज प्रखंड के कौआचार गांव में करोड़ों की लागत से बना पुल सोमवार दोपहर अचानक ध्वस्त हो गया। इस पुल की लागत करीब 3.80 करोड़ रुपये थी और इसे ग्रामीण कार्य विभाग ने वर्ष 2019 में बनवाया था। यह पुल परमान नदी पर बनाया गया था, जिसका उद्देश्य कौआचार गांव को फारबिसगंज, सिकटी और पटेगना से जोड़ना था। लेकिन कुछ ही वर्षों में यह पुल पूरी तरह धंस गया, जिससे इलाके का संपर्क टूट गया और ग्रामीणों में भारी नाराजगी फैल गई।
तीन साल में जर्जर, फिर ढह गया करोड़ों का पुल
पुल का निर्माण केवल तीन वर्ष पहले हुआ था, लेकिन कुछ समय से यह जर्जर हालत में था। ग्रामीणों ने कई बार विभाग को इसकी सूचना दी, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आखिरकार सोमवार को यह पुल अचानक नीचे धंस गया। इस पुल के चार स्पैन में से एक स्पैन पूरी तरह से नीचे बैठ गया। सौभाग्य से उस समय कोई वाहन पुल पर नहीं था, वरना बड़ा हादसा हो सकता था। पुल के नीचे धंसने से अब फारबिसगंज से सिकटी तक का सड़क संपर्क बाधित हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूरी तरह विभागीय लापरवाही और निर्माण में भ्रष्टाचार का नतीजा है।
भाजपा सांसद के पैतृक गांव में धंसा पुल, बढ़ा सियासी तापमान
सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह पुल अररिया के भाजपा सांसद प्रदीप कुमार सिंह के पैतृक गांव कौआचार में बना था। पुल के ध्वस्त होने की खबर फैलते ही राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। चूंकि बिहार में विधानसभा चुनावी सरगर्मी तेज है, इसलिए इस घटना का राजनीतिक असर साफ नजर आने लगा है। विपक्ष ने इसे भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण बताते हुए सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। भाजपा के विरोधी दलों का कहना है कि सत्ता पक्ष के प्रभाव वाले इलाके में भी अगर ऐसा भ्रष्टाचार हो रहा है, तो पूरे राज्य की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।
विभागीय लापरवाही और संवेदक की जिम्मेदारी पर उठे सवाल
ग्रामीण कार्य विभाग ने इस पुल का निर्माण संवेदक के माध्यम से कराया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुल का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद संवेदक को पांच साल की गारंटी अवधि दी गई थी, जो अब समाप्त हो चुकी है। इंजीनियरों का कहना है कि पुल के धंसने की सूचना 30 अक्टूबर को ही विभाग को मिल चुकी थी, लेकिन तत्काल कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए। इंजीनियर चंद्रशेखर कुमार ने बताया कि पुल की स्थिति पर नजर रखी जा रही थी और अब डीएम व एसपी को इसकी जानकारी दे दी गई है। उन्होंने कहा कि निर्माण की गुणवत्ता की जांच कराई जाएगी और दोषियों पर कार्रवाई होगी।
दो साल में दूसरी बड़ी घटना, पहले भी धंसा था पुल
यह पहली बार नहीं है जब अररिया जिले में करोड़ों की लागत से बना पुल ध्वस्त हुआ हो। इससे पहले 18 जून 2024 को सिकटी विधानसभा क्षेत्र के पड़रिया गांव में बकरा नदी पर बन रहा 12 करोड़ रुपये का पुल भी निर्माणाधीन अवस्था में धंस गया था। उस समय भी निर्माण कार्य ग्रामीण कार्य विभाग के अधीन था। अब कौआचार में हुआ हादसा उसी विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। महज एक साल के भीतर दूसरी घटना होने से यह स्पष्ट है कि पुलों के निर्माण में तकनीकी जांच, गुणवत्ता परीक्षण और निगरानी के मानकों की भारी अनदेखी की गई है।
ग्रामीणों का आक्रोश: “कमीशनखोरी ने पुल निगल लिया”
कौआचार और आसपास के गांवों में इस घटना के बाद गुस्से का माहौल है। ग्रामीणों ने पुल निर्माण में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का आरोप लगाया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुल बनने के समय घटिया मटेरियल का इस्तेमाल किया गया था और अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि पहले ही बरसात के दौरान पुल के नीचे की मिट्टी बह गई थी और जगह-जगह दरारें दिखने लगी थीं। इसके बावजूद विभाग ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। आज वही लापरवाही जनता के लिए मुसीबत बन गई है।
परिवहन व्यवस्था पर पड़ा असर, किसानों को भारी नुकसान
पुल के धंसने से न केवल दो प्रखंडों का संपर्क टूट गया है, बल्कि किसानों और व्यापारियों की आर्थिक स्थिति पर भी बड़ा असर पड़ा है। इलाके के किसान अब अपने खेतों से उत्पाद मंडी तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। परिवहन बंद होने से व्यापारिक गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। स्कूली बच्चों को अब कई किलोमीटर घूमकर जाना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक नया पुल नहीं बन जाता, तब तक उनकी दिक्कतें कम नहीं होंगी।
इंजीनियरों की सफाई और जांच के आदेश
ग्रामीण कार्य विभाग के इंजीनियर चंद्रशेखर कुमार ने कहा कि पुल के धंसने की सूचना समय रहते मिल गई थी और अब इसकी तकनीकी जांच कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि पांच साल की गारंटी अवधि खत्म होने के बाद भी विभाग ने सुरक्षा के लिए कुछ मरम्मत कार्य कराए थे, परंतु नदी के प्रवाह और मिट्टी के खिसकने से यह घटना हो गई। विभाग ने डीएम और एसपी को सुरक्षा की दृष्टि से पुल के दोनों सिरों पर आवागमन रोकने का निर्देश दिया है। फिलहाल प्रशासन ने इस मार्ग पर वैकल्पिक रास्ते की व्यवस्था शुरू कर दी है।
चुनावी मौसम में सरकार की मुश्किलें बढ़ीं
घटना ऐसे समय में हुई है जब बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। विपक्ष ने इस मुद्दे को तुरंत उठाते हुए मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। राजद और कांग्रेस नेताओं ने कहा कि “नीतीश मॉडल” की पोल खुल चुकी है और बिहार में पुल, सड़कें और योजनाएं अब कमीशनखोरी के कारण धराशायी हो रही हैं। वहीं भाजपा नेता इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं और कह रहे हैं कि पुल की तकनीकी वजह से यह हादसा हुआ है, भ्रष्टाचार से नहीं।
सरकारी जांच और जिम्मेदारी तय करने की मांग
पुल धंसने की घटना के बाद डीएम ने जांच टीम गठित करने का आदेश दिया है। टीम में विभागीय इंजीनियरों के साथ-साथ स्वतंत्र विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया है। यह टीम पुल की डिजाइन, निर्माण सामग्री, मिट्टी की मजबूती और जल प्रवाह के कारणों की जांच करेगी। प्रशासन ने कहा है कि दोषी पाए जाने पर संवेदक और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।
बिहार में पुलों की बदहाली बनी शर्म का कारण
यह घटना बिहार में पुलों और बुनियादी ढांचे की बदहाली को उजागर करती है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में कई पुल धंसने की घटनाएं सामने आई हैं — चाहे गोपालगंज का बालुआ नदी पुल हो या भागलपुर का सुल्तानगंज पुल, हर घटना ने सरकार की निर्माण नीतियों पर सवाल उठाए हैं। अब अररिया की यह नई घटना बिहार के विकास मॉडल पर तंज कस रही है।
लोगों की सुरक्षा बनी प्राथमिक चिंता
फिलहाल पुल के दोनों छोर से पुलिस बल तैनात किया गया है ताकि कोई व्यक्ति जोखिम लेकर आवागमन न करे। स्थानीय प्रशासन ने चेतावनी दी है कि जब तक तकनीकी जांच पूरी नहीं हो जाती, पुल पर किसी भी तरह की गतिविधि पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को अस्थायी वैकल्पिक पुल या नाव व्यवस्था करनी चाहिए ताकि लोगों को राहत मिल सके।
बिहार की विकास योजनाओं पर फिर लगा दाग
अररिया के कौआचार पुल के धंसने से यह साफ है कि बिहार में निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और निगरानी की भारी कमी है। तीन साल में ही करोड़ों का पुल ढह जाना भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है। यह घटना न केवल सरकारी कामकाज की पोल खोलती है, बल्कि जनता के विश्वास पर भी चोट करती है। अगर सरकार ने अब भी कठोर कदम नहीं उठाए, तो “विकास की तस्वीर” केवल भाषणों में ही रह जाएगी।


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