सतारा की डॉक्टर संपदा मुंडे का आख़िरी पत्र: ‘मैं और सहन नहीं कर सकती’—राजनीतिक दबाव, पुलिस की धमकियों और टूटे हौसले की पूरी कहानी


सतारा की डॉक्टर संपदा मुंडे का 4 पेज का पत्र सामने आया, जिसमें राजनीतिक दबाव, पुलिस धमकी और आरोपों से टूटने की कहानी लिखी है


सतारा में महिला डॉक्टर की आत्महत्या ने उठाए सवाल

महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुई महिला डॉक्टर संपदा मुंडे की आत्महत्या का मामला अब गहराई से चर्चाओं में है। डॉक्टर मुंडे के कमरे से बरामद हुआ चार पन्नों का पत्र पूरे घटनाक्रम को एक नया मोड़ देता है। इस पत्र में उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा कि वे लगातार दबाव, अपमान और झूठे आरोपों से टूट चुकी थीं। “मैं और सहन नहीं कर सकती,” ये शब्द अब पूरे महाराष्ट्र के स्वास्थ्य तंत्र और पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।

संपदा मुंडे पेशे से एक सरकारी डॉक्टर थीं और येरवडा कारागृह से आने वाले मरीजों की फिटनेस जांच की जिम्मेदारी संभालती थीं। उनकी आत्महत्या से पहले जो पत्र सामने आया है, उसमें उन्होंने न केवल अपनी व्यथा व्यक्त की बल्कि कुछ पुलिस अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं पर गलत मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने के लिए दबाव डालने का गंभीर आरोप भी लगाया है।

“मुझ पर लगाए गए आरोप पूरी तरह निराधार हैं”

डॉ. मुंडे ने अपने चार पन्नों के पत्र में लिखा कि उन पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। उन्होंने बताया कि एक बार पुलिस कर्मचारी एक आरोपी को लेकर अस्पताल आए थे लेकिन उसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी। जब उन्होंने सुबह जांच करने की बात कही, तो पुलिसकर्मियों ने बार-बार फोन कर दबाव बनाया। बाद में जब आरोपी को लाया गया, तो उसका ब्लड प्रेशर अत्यधिक बढ़ा हुआ था, इसलिए उन्होंने उसे भर्ती कर इलाज शुरू किया।

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, डॉक्टर मुंडे ने बताया कि उन्होंने सहायक पुलिस निरीक्षक जापपत्रे को कॉल करके पूरी स्थिति स्पष्ट की, लेकिन उन्होंने आने से इनकार कर दिया। डॉक्टर ने लिखा कि उस समय अस्पताल में काफी भीड़ थी और माहौल तनावपूर्ण था, बावजूद इसके उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई।

पुलिस अधिकारियों और नेताओं पर लगाया दबाव का आरोप

पत्र में संपदा मुंडे ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक व्यक्तियों और पुलिस अधिकारियों ने आरोपी के लिए गलत फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने का दबाव बनाया। उन्होंने लिखा कि “मैं डॉक्टर हूं, न कि किसी की कठपुतली। गलत सर्टिफिकेट देना मेरे नैतिक कर्तव्य और मेडिकल प्रोफेशन के खिलाफ है।”

उन्होंने बताया कि कई बार फोन कर धमकाया गया, यहां तक कि अस्पताल में बुलाकर अपमानित भी किया गया। उन्होंने लिखा कि “मुझे डराने की कोशिश की गई ताकि मैं आरोपी को ‘फिट’ घोषित कर दूं, लेकिन मैंने मना कर दिया।”

“पुलिस अधिकारी ने धमकाया और गाली दी”

डॉ. मुंडे ने अपने पत्र में विस्तार से लिखा कि एक पुलिस उपनिरीक्षक ने उन्हें झूठे बहाने से बुलाया और वहां पहुंचने पर दुर्व्यवहार किया। उन्होंने बताया कि “उन्होंने मुझे धमकाया और अपशब्द कहे। जब मैंने इस बात की शिकायत प्रभारी चिकित्सा अधिकारी निगो मैडम से की, तो उन्होंने भी कहा कि पंचनामा करना होगा, लेकिन उस वक्त अभंग वहां मौजूद थे। उस दौरान भी मुझे और स्टाफ को गाली-गलौज का सामना करना पड़ा।”

डॉ. मुंडे ने आगे लिखा कि जब आरोपी अस्पताल से जा रहा था, तो उन्होंने पुलिस को सूचित किया कि आरोपी का व्यवहार संदिग्ध है और वहां सुरक्षा की जरूरत है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी का मेडिकल चेकअप तक नहीं किया गया।

“महाडिक ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया”

पत्र में डॉक्टर ने बताया कि जब उन्होंने पुलिस निरीक्षक महाडिक से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने उनका नंबर ब्लॉक कर दिया। इसके बाद डॉक्टर ने ऑन-ड्यूटी स्टाफ के फोन से कॉल किया तो उन्हें कहा गया—“जो करना है करो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।” यह बयान स्पष्ट करता है कि डॉ. मुंडे किस मानसिक दबाव में थीं।

उन्होंने लिखा कि यह सब सुनकर उनका आत्मसम्मान टूट गया। “मैंने अपनी पूरी जिंदगी ईमानदारी से काम किया, लेकिन अब मुझे गलत तरीके से बदनाम किया जा रहा है। ऐसे माहौल में मैं अब और नहीं रह सकती।”

“मैंने सिर्फ अपनी ड्यूटी निभाई”

डॉ. मुंडे ने लिखा कि उन्होंने मरीज की स्थिति देखकर जो भी निर्णय लिया, वह पूरी तरह मेडिकल प्रक्रिया के अनुसार था। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ की गई टिप्पणी पूरी तरह झूठी है। “मैंने अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाई। मरीज की जांच की और उसे आवश्यक उपचार दिया। अगर मैंने किसी नियम का उल्लंघन किया होता तो मैं खुद जिम्मेदारी लेती, लेकिन मेरे खिलाफ जो बोला गया वह दुर्भावनापूर्ण है।”

फोरेंसिक जांच से जुड़े सवाल

पुलिस अब इस चार पेज के पत्र की हैंडराइटिंग की फोरेंसिक जांच करवा रही है। जांच का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि यह पत्र वास्तव में डॉ. मुंडे ने ही लिखा था या नहीं। सूत्रों के अनुसार, पत्र में जिन पुलिस अधिकारियों और राजनीतिक व्यक्तियों के नाम लिखे गए हैं, उनसे भी पूछताछ की जा सकती है।

महाराष्ट्र पुलिस ने बताया कि मामले को गंभीरता से लिया गया है और जांच समिति को स्वतंत्र रूप से जांच करने के निर्देश दिए गए हैं। सतारा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “हम यह जानना चाहते हैं कि आखिर डॉक्टर मुंडे पर ऐसा कौन-सा दबाव था कि उन्होंने यह कदम उठाया।”

अस्पताल प्रशासन भी जांच के घेरे में

इस पूरे मामले में अस्पताल प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। डॉक्टरों के संगठन ने कहा है कि अगर डॉक्टर संपदा को संस्थागत समर्थन मिला होता तो शायद वे इतना बड़ा कदम नहीं उठातीं। उन्होंने कहा कि अस्पताल प्रबंधन को इस बात की जानकारी थी कि डॉक्टर पर बाहरी दबाव डाला जा रहा है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।

राज्य के हेल्थ डिपार्टमेंट ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “यह बेहद गंभीर मामला है। डॉक्टरों को किसी भी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव से मुक्त होकर काम करने की गारंटी होनी चाहिए। अगर कोई दोषी पाया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

संपदा मुंडे की पृष्ठभूमि

डॉ. संपदा मुंडे एक संवेदनशील और मेहनती डॉक्टर के रूप में जानी जाती थीं। उनके सहयोगियों का कहना है कि वे मरीजों के प्रति बेहद समर्पित थीं और कभी किसी गलत काम में शामिल नहीं रहीं। उनके निधन से पूरा मेडिकल समुदाय स्तब्ध है।

उनकी सहकर्मी डॉक्टर मनीषा पाटिल ने कहा, “संपदा बेहद जिम्मेदार डॉक्टर थीं। वे हमेशा मरीजों की भलाई को प्राथमिकता देती थीं। अगर उन्होंने आत्महत्या की है तो जरूर उनके साथ बहुत अन्याय हुआ है।”

समाज और व्यवस्था पर बड़ा सवाल

यह घटना केवल एक आत्महत्या नहीं बल्कि सिस्टम पर गहरा सवाल है। एक डॉक्टर जिसने अपने पेशे की शपथ निभाई, उसे झूठे आरोपों और दबाव के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। अगर यह पत्र असली पाया गया, तो यह सिर्फ एक महिला डॉक्टर की आवाज नहीं बल्कि पूरे हेल्थ सेक्टर की चीख होगी, जो राजनीतिक और पुलिस दबाव में दब रही है।

लोग अब सरकार और पुलिस से यह उम्मीद कर रहे हैं कि डॉक्टर संपदा मुंडे को न्याय मिले और ऐसे हालात दोबारा किसी डॉक्टर के साथ न बनें।

डॉ. संपदा मुंडे की आत्महत्या से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी डॉक्टरों पर बाहरी दबाव कितना खतरनाक रूप ले सकता है। अगर इस मामले की जांच निष्पक्ष हुई तो न केवल दोषियों का पर्दाफाश होगा बल्कि यह केस आने वाले समय में मेडिकल प्रोफेशन की स्वतंत्रता के लिए एक मिसाल बन सकता है।

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