गौतम गंभीर ने खुलासा किया था कि वो अनिल कुंबले के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं, उनके भरोसे ने ही बदल दी थी करियर की दिशा।
गौतम गंभीर: मैदान का जुझारू योद्धा, कोच जिसने कभी हार नहीं मानी
टीम इंडिया के पूर्व स्टार ओपनर और मौजूदा हेड कोच गौतम गंभीर 14 अक्टूबर को 44 साल के हो गए। गंभीर सिर्फ क्रिकेटर नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के इतिहास में उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्होंने दो वर्ल्ड कप जीताने में अहम भूमिका निभाई।
2003 में इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखने वाले इस बाएं हाथ के बल्लेबाज को हमेशा उनके आक्रामक स्वभाव, जुझारूपन और नेतृत्व क्षमता के लिए याद किया जाता है। चाहे मैदान पर विपक्षी गेंदबाजों को जवाब देना हो या बयानबाज़ी में विरोधियों को पछाड़ना — गंभीर ने हमेशा दिखाया कि वे सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बल्कि सोच का प्रतीक हैं।
“अगर किसी के लिए जान देनी पड़े, तो वो अनिल कुंबले होंगे”
गंभीर ने अपने करियर में कई यादगार पल देखे, लेकिन एक पल ऐसा भी था जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।
वो वक्त था साल 2008 का, जब ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत दौरे पर थी और गंभीर अपने टेस्ट करियर के कठिन दौर से गुजर रहे थे। ढाई साल से उन्होंने कोई शतक नहीं लगाया था और आलोचकों की निगाहें उन पर थीं। तभी उन्हें मिला अनिल कुंबले जैसा कप्तान, जिसने उन पर भरोसा जताया जब औरों ने साथ छोड़ दिया।
गंभीर ने 2018 में एक इंटरव्यू में बताया था कि वो और वीरेंद्र सहवाग डिनर पर थे, तभी कुंबले वहां आए और बोले —
“तुम दोनों पूरी सीरीज में ओपनिंग करोगे, चाहे लगातार 8 पारियों में 0 पर आउट हो जाओ।”
गंभीर के मुताबिक, “मैंने क्रिकेट में कभी ऐसा भरोसा महसूस नहीं किया था। उस रात के बाद मुझे लगा कि मेरे पास खोने को कुछ नहीं है। अगर मुझे किसी के लिए अपनी जान देनी पड़े, तो वो अनिल कुंबले होंगे।”
एक भरोसे ने बदल दिया करियर
कुंबले के इन शब्दों ने गंभीर को नई ऊर्जा दी। उसी सीरीज में उन्होंने एक शतक और एक दोहरा शतक जमाया और भारतीय टेस्ट टीम में अपनी जगह पक्की कर ली।
इसके बाद उन्होंने अगले डेढ़ साल में टेस्ट क्रिकेट में छह शतक ठोके।
सबसे यादगार पारी थी न्यूजीलैंड के नेपियर टेस्ट की, जहां उन्होंने 643 मिनट तक बल्लेबाजी की, 436 गेंदों का सामना किया और 137 रन बनाकर भारत को हार से बचाया। उस टेस्ट को ड्रॉ करवाने में गंभीर की पारी निर्णायक साबित हुई।
गंभीर की पहचान: भरोसे का नाम, जो कभी डगमगाया नहीं
गंभीर हमेशा से ऐसे खिलाड़ी रहे जिन्होंने सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि टीम के लिए खेला।
2007 टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ उनकी 75 रन की पारी और 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ 97 रन आज भी भारतीय क्रिकेट इतिहास में वीरता की मिसाल मानी जाती है।
उन्होंने कई बार कहा है कि “क्रिकेट मेरे लिए जज़्बे का खेल है, आंकड़ों का नहीं।”
उनकी यह सोच ही उन्हें बाकी क्रिकेटरों से अलग बनाती है।
दिल्ली से टीम इंडिया तक का सफर
14 अक्टूबर 1981 को दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में जन्मे गौतम गंभीर ने रोशनआरा क्लब से क्रिकेट की शुरुआत की। जल्द ही वो दिल्ली की रणजी टीम में जगह बनाने में सफल रहे।
उनका घरेलू प्रदर्शन इतना प्रभावशाली था कि 2003 में वनडे डेब्यू और 2004 में टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला।
हालांकि शुरुआत में निरंतरता की कमी के कारण उनका चयन अनियमित रहा, लेकिन 2008 के बाद उन्होंने एक नए अंदाज में वापसी की।
टीम इंडिया के लिए गंभीर की यादगार पारियां
गंभीर ने भारत के लिए 58 टेस्ट, 147 वनडे और 37 टी20 इंटरनेशनल मैच खेले।
टेस्ट में उनके नाम 4154 रन, 9 शतक और 22 अर्धशतक हैं, जबकि वनडे में 5238 रन, 11 शतक और 34 अर्धशतक दर्ज हैं।
टी20 में गंभीर ने 932 रन बनाए, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ 2007 टी20 वर्ल्ड कप फाइनल की 75 रन की पारी सबसे यादगार रही।
2008 से 2011 के बीच वे भारतीय क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद ओपनर बनकर उभरे।
उनकी संयम और आक्रामकता का मिश्रण हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा रहा।
विश्व कप जीत के नायक, लेकिन सुर्खियों से दूर
2011 वर्ल्ड कप फाइनल में जब श्रीलंका के खिलाफ भारत शुरुआती दो विकेट खो चुका था, तब गंभीर ने एक शानदार 97 रन की पारी खेलकर भारत को संभाला।
फिर भी वह हमेशा कहते रहे कि “टीम की जीत सबसे ऊपर है।”
उनकी यह विनम्रता और टीम के प्रति निष्ठा ने उन्हें सच्चा टीम प्लेयर बना दिया।
राजनीति से कोचिंग तक: गंभीर का दूसरा innings
क्रिकेट से संन्यास के बाद गौतम गंभीर ने राजनीति में कदम रखा और पूर्वी दिल्ली से सांसद बने। संसद में भी उनका तेवर वैसा ही रहा — साफ, सख्त और निडर।
इसके बाद जब उन्हें टीम इंडिया के हेड कोच की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो उन्होंने कहा —
“मेरे लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं, देश की सेवा का दूसरा मौका है।”
आज गंभीर भारतीय टीम के खिलाड़ियों में वही आत्मविश्वास भर रहे हैं, जो कभी अनिल कुंबले ने उनमें डाला था।
क्रिकेट में गंभीर की विरासत
गौतम गंभीर ने भारतीय क्रिकेट को वो जज़्बा दिया, जो हार से लड़ना सिखाता है।
उनके करियर की कहानी इस बात की गवाही है कि अगर किसी पर भरोसा किया जाए, तो वो खिलाड़ी अपने करियर की दिशा बदल सकता है।
अनिल कुंबले के एक फैसले ने गंभीर को वो हौसला दिया, जिसने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
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