मध्यप्रदेश में 'कार्बाइड गन' ने छीन ली आँखों की रौशनी! 14 मासूमों की आंखें गईं, 122 घायल – दीवाली पर मौत बनकर फटा खतरनाक खिलौना!



MP में दिवाली पर 'कार्बाइड गन' से बड़ा हादसा, 14 बच्चों की आंखों की रोशनी गई, 122 घायल; डॉक्टर बोले- ये पटाखा नहीं हथियार है।


दिवाली की रौशनी में छुपा मौत का साया

मध्यप्रदेश में इस बार की दिवाली, रौशनी की जगह अंधेरे की कहानियाँ लिख गई। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और विदिशा जैसे शहरों में 'कार्बाइड गन' नामक खतरनाक देसी पटाखा बच्चों के लिए जानलेवा साबित हुआ। अस्पतालों में चीख-पुकार मची रही और त्योहार मातम में बदल गया। कुल 130 से ज्यादा बच्चे इस विस्फोटक खिलौने का शिकार बने जिनमें से 14 मासूमों की आंखों की रोशनी सदा के लिए चली गई।

कैसे बनती है ये जानलेवा 'जुगाड़ गन'

'कार्बाइड गन' कोई साधारण खिलौना नहीं बल्कि विस्फोटक हथियार है। कैल्शियम कार्बाइड, प्लास्टिक पाइप और गैस लाइटर के मेल से बनी इस देसी गन में जब कार्बाइड पानी से प्रतिक्रिया करता है तो एसिटिलीन गैस बनती है। यही गैस जब चिंगारी से जलती है तो जबरदस्त विस्फोट करती है। इस विस्फोट में प्लास्टिक पाइप के टुकड़े छर्रों की तरह उड़ते हैं और सीधा चेहरे, आंखों, शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं।

बच्चों के लिए कब्र बन गई 'पटाखा गन'

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भर्ती 14 वर्षीय हेमंत पंथी और 15 वर्षीय आरिस जैसे कई मासूम अपनी रोशनी गंवा चुके हैं। आरिस के पिता सरीख खान का गुस्सा फूट पड़ा – "सरकार को ऐसी खतरनाक वस्तुओं की बिक्री रोकनी चाहिए। हमारे बच्चों की आंखों की कीमत कोई नहीं चुका सकता।"

इसी तरह एम्स भोपाल में भर्ती 12 वर्षीय बच्चे की आंख बचाने की कोशिशें जारी हैं। सेवा सदन, जेपी और हमीदिया अस्पताल में अब तक 70 से अधिक घायल बच्चों का इलाज चल रहा है। कई के चेहरे झुलसे हैं, कई की पलकें जल गई हैं और कुछ को आंशिक दृष्टिहानि हुई है।

सोशल मीडिया बना खतरनाक प्रेरणा

कई बच्चों ने कबूल किया कि उन्होंने सोशल मीडिया पर देख कर खुद से ऐसी गन बनाई। नेहा, राज विश्वकर्मा जैसे बच्चों ने बताया कि वीडियो देखकर ये जुगाड़ बनाया, लेकिन विस्फोट के बाद आंखों की रोशनी खो बैठे। यहां सवाल उठता है कि क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे वीडियो की कोई निगरानी नहीं?

लापरवाही के निर्देशों में दब गई सख्ती

18 अक्टूबर को ही मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि कार्बाइड गन जैसी वस्तुओं की बिक्री रोकी जाए, लेकिन इसके बावजूद ये खतरनाक खिलौना खुलेआम बिकता रहा। भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे शहरों की गलियों में बच्चों के हाथ में ये गन दिखाई देती रही। लापरवाही का नतीजा ये रहा कि अब 14 परिवारों की दिवाली अंधेरे में डूब गई।

भोपाल में सबसे ज्यादा केस

राजधानी भोपाल में सबसे ज्यादा केस दर्ज किए गए। हमीदिया अस्पताल में दिवाली के अगले दिन से ही बच्चों की लंबी कतारें देखने को मिलीं। डॉक्टरों ने बताया कि घायलों की उम्र 6 से 15 साल के बीच है। इस बार का त्योहार उनके जीवन का सबसे दर्दनाक अनुभव बन गया है।

डॉक्टरों की चेतावनी: यह पटाखा नहीं हथियार है

डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि इस तरह की 'पटाखा गन' दरअसल एक खतरनाक विस्फोटक उपकरण है, न कि कोई सामान्य खिलौना। प्लास्टिक पाइप से बनी ये गन इतनी खतरनाक है कि आंखों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि इस पर प्रतिबंध लगाया जाए और इसके निर्माण, बिक्री पर तत्काल रोक लगे।

अब उठ रही है न्याय और मुआवजे की मांग

सोशल मीडिया और नागरिक मंचों पर लोगों की ओर से यह मांग उठ रही है कि सरकार न केवल इस जानलेवा खिलौने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए, बल्कि जिन परिवारों के बच्चों को नुकसान पहुंचा है, उन्हें न्याय मिले। परिजनों की ओर से भी मुआवजे और मुफ्त इलाज की मांग जोर पकड़ रही है।

प्रशासन की नाकामी या सिस्टम की साजिश?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब मुख्यमंत्री ने पहले ही चेतावनी दी थी तो फिर ये खिलौना गन बाजार में इतनी आसानी से कैसे बिकती रही? क्या यह जिला प्रशासन की नाकामी है या फिर सिस्टम की मिलीभगत से खिलौनों की आड़ में हथियार बिक रहे हैं?

खतरे का एक और नाम: बाजार में बेखौफ बिकता 'मौत का खेल'

जानकारी के मुताबिक, यह गन 100 से 150 रुपए में मिल जाती है और इसमें कोई नियंत्रण नहीं है। इसे बनाने और बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग हो रही है। डॉक्टरों ने इसे आतंकी हथियार के समान बताते हुए कहा कि यह बच्चों के हाथों में मौत का उपकरण है।

क्या अब भी जागेगा सिस्टम?

दिवाली का यह हादसा एक चेतावनी है कि हम बच्चों के मनोरंजन के नाम पर बाजार में बिक रहे हथियारों से अंजान नहीं रह सकते। यदि अब भी प्रशासन और सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति से इनकार नहीं किया जा सकता।

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