दिवाली के बाद पटरी पर दौड़ेगी भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन! जींद-सोनीपत रूट से होगी शुरुआत, जानिए इसकी ताकत और तकनीक




भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन दिवाली के बाद दौड़ेगी। जानिए जींद-सोनीपत रूट से शुरू हो रही इस 'नमो ग्रीन रेल' की खूबियां।


दिवाली के बाद भारत को मिलेगी हाइड्रोजन ट्रेनों की सौगात

दिवाली के ठीक बाद भारत रेलवे क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखने जा रहा है। देश की पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन "नमो ग्रीन रेल" अब पूरी तरह से तैयार है और इसे हरियाणा के सोनीपत-गोहाना-जींद रूट पर लॉन्च किया जाएगा। लगभग 89 किलोमीटर लंबा यह रूट अब देश के हरित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाने वाला है।

इस ट्रेन की रफ्तार 110 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा होगी और यह पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त होगी। ट्रेन का निर्माण 120 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस तकनीक को अपनाकर भारत दुनिया का पांचवां ऐसा देश बन जाएगा, जहां हाइड्रोजन ट्रेनें दौड़ेंगी।

पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बनी ‘नमो ग्रीन रेल’

यह हाइड्रोजन ट्रेन भारत में ही तैयार की गई है। इसके इंजन और बोगियों का निर्माण लखनऊ स्थित रेलवे कोच फैक्ट्री में किया गया, जबकि इसका परीक्षण दिल्ली के शकूर बस्ती स्थित यार्ड और हरियाणा के जींद जिले में हुआ। जींद में बने हाइड्रोजन प्लांट से इस ट्रेन को ईंधन की आपूर्ति की जाएगी, जो 1 मेगावाट पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन (PEM) इलेक्ट्रोलाइज़र की सहायता से प्रतिदिन 430 किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन करेगा।

इस ईंधन प्रणाली में 3,000 किलोग्राम हाइड्रोजन स्टोरेज कैपेसिटी, कंप्रेसर और प्री-कूलर सहित दो डीस्पेंसर लगाए गए हैं। इस पूरे तंत्र को भारत की अग्रणी ग्रीनएच इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिससे ट्रेन का संचालन पूरी तरह हरित और स्वच्छ रहेगा।

ट्रैक पर उतरने को तैयार है 8 कोच वाली हाई-स्पीड ग्रीन ट्रेन

इस हाइड्रोजन ट्रेन में कुल 8 कोच होंगे, और यह एक बार में करीब 2,638 यात्रियों को सफर करवा सकेगी। ट्रेन की गति 110 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा तक होगी, जिससे यह ट्रेन पारंपरिक डीजल या इलेक्ट्रिक ट्रेनों की तुलना में कहीं अधिक कुशल साबित होगी। इसके संचालन के लिए पूरे 89 किलोमीटर लंबे सोनीपत-गोहाना-जींद ट्रैक को तैयार किया गया है।

पूरी ट्रेन को परीक्षण के लिए दिल्ली लाया गया है और अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन (RDSO) इसका अंतिम परीक्षण कर रहा है। अगर सबकुछ योजना के अनुसार चला, तो दिवाली के बाद इसे हरी झंडी मिल जाएगी।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में क्रांतिकारी कदम

हाइड्रोजन ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह डीजल या इलेक्ट्रिक से नहीं, बल्कि हाइड्रोजन ईंधन से चलेगी। इससे सिर्फ जलवाष्प और ऊष्मा निकलती है, जिससे यह ट्रेनों को पूरी तरह से प्रदूषणमुक्त बना देती है। भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही "हरित ऊर्जा" की नीति में यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

ट्रेन के संचालन में न बिजली की आवश्यकता होगी, न ही पेट्रोल या डीजल की, जिससे ईंधन की लागत में भी भारी कमी आएगी और कार्बन उत्सर्जन भी न के बराबर रहेगा। इससे भारत न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा, बल्कि भविष्य की परिवहन तकनीकों में भी अग्रणी बनेगा।

किसने बनाई यह ग्रीन हाइड्रोजन ट्रेन?

रेलवे की ओर से यह ट्रेन चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में तैयार की गई है। इसके डिज़ाइन, मानकीकरण और परीक्षण की जिम्मेदारी अनुसंधान, डिज़ाइन एवं मानक संगठन (RDSO) ने संभाली है। अब यह पूरी तरह से चलने के लिए तैयार है और रेलवे बोर्ड की अनुमति के बाद इसे औपचारिक रूप से जनता के लिए शुरू किया जाएगा।

यह ट्रेन भारतीय रेलवे के लिए भविष्य के इको-फ्रेंडली परिवहन का मॉडल बन सकती है, जिसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।

किन देशों में पहले से चल रही हैं हाइड्रोजन ट्रेनें?

हाइड्रोजन ट्रेन के मामले में भारत अब उन देशों की सूची में शामिल होने जा रहा है, जहां इस उन्नत तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, चीन और जापान जैसे देशों ने पहले ही इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।

जर्मनी 2018 में पहली बार हाइड्रोजन ट्रेन शुरू करने वाला देश बना और आज उसके पास सबसे बड़ा हाइड्रोजन ट्रेन का नेटवर्क है।
फ्रांस की कंपनी Alstom ने जर्मनी के लिए हाइड्रोजन ट्रेनें विकसित की हैं।
चीन ने शहरी क्षेत्रों में हाई-कैपेसिटी हाइड्रोजन ट्रेनों का निर्माण और संचालन शुरू कर दिया है।
जापान भी हाइड्रोजन ट्रेन की तकनीक पर काम कर रहा है और निकट भविष्य में उसका संचालन शुरू हो सकता है।

अब भारत भी इस दौड़ में कदम रख चुका है, और दीपावली के बाद इसकी शुरुआत से देश एक नई तकनीकी क्रांति की ओर अग्रसर होगा।

हाइड्रोजन ट्रेन: भारत में परिवहन क्रांति की नई शुरुआत

भारत सरकार द्वारा ‘नमो ग्रीन रेल’ के नाम से पेश की जा रही यह हाइड्रोजन ट्रेन सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि एक नीति परिवर्तन की मिसाल भी है। यह साबित करता है कि देश अपने ऊर्जा संसाधनों को हरित और स्वच्छ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

हरियाणा के जींद से शुरू होकर यह पहल आने वाले वर्षों में पूरे देश में फैल सकती है। इससे न केवल रेलवे की कार्बन फुटप्रिंट में भारी कमी आएगी, बल्कि भारत को वैश्विक हाइड्रोजन तकनीक में अग्रणी देशों की सूची में भी शामिल कर देगी।

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