उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से काल बना खीरगंगा, 80 साल पहले निकला था कल्प केदार मंदिर, अब फिर मलबे में समाया।
उत्तरकाशी की धरती ने फिर निगल लिया शिव का धाम
उत्तराखंड की पवित्र घाटियों में बसे धराली गांव से जो खबर आई है, उसने पूरे देश को सन्न कर दिया है। बादल फटने से आई तबाही ने न सिर्फ सैकड़ों लोगों की जिंदगियों को हिला कर रख दिया, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर को भी लील लिया—कल्प केदार मंदिर। यह वही मंदिर है, जो करीब 80 साल पहले खीरगंगा नदी की तलहटी से खुदाई के बाद सामने आया था। अब वही मंदिर एक बार फिर मलबे में दब गया है।
काल बनी खीरगंगा नदी, 5 की मौत, 100 लापता
धराली गांव में आई विनाशकारी बाढ़ ने 5 लोगों की जान ले ली, जबकि 100 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। राहत की बात यह रही कि सेना, ITBP, NDRF, SDRF और दमकल विभाग की टीमें अब तक 130 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाल चुकी हैं। पर इस तबाही में जो इतिहास दोबारा दब गया, वह कल्प केदार मंदिर है, जिसे लेकर वर्षों से रहस्य और श्रद्धा जुड़ी रही है।
केदारनाथ जैसी बनावट, खीरगंगा में छुपा शिवधाम
स्थानीय लोगों के अनुसार, कल्प केदार मंदिर की बनावट केदारनाथ मंदिर जैसी थी। वर्षों पहले यह मंदिर भी किसी प्राकृतिक आपदा में जमीन में दब गया था। फिर साल 1945 में जब खीरगंगा का बहाव कम हुआ, तो मंदिर का शिखर दिखाई दिया। खुदाई करने पर मंदिर बाहर आया और उसकी पूजा दोबारा शुरू हुई।
मिट्टी हटाकर बनाया गया रास्ता फिर मलबे में समाया
खुदाई के बाद मंदिर पूरी तरह से धरातल पर नहीं था। श्रद्धालुओं को पूजा के लिए नीचे उतरना पड़ता था। मंदिर के गर्भगृह में अक्सर खीरगंगा का जल पहुंचता था, जिससे मंदिर की पवित्रता और अधिक मानी जाती थी। लोगों ने मिट्टी निकालकर रास्ता बनाया था, जो अब एक बार फिर भारी मलबे में दब चुका है।
महाभारत काल और पांडवों से जुड़ा कनेक्शन
स्थानीय दावों की मानें तो इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं पांडवों ने की थी जब वे अपने वनवास के दौरान केदारनाथ पहुंचे थे। हालांकि, इस बात की ऐतिहासिक पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन ग्रामीणों की आस्था में यह कहानी गहराई तक समाई हुई है।
अंग्रेज यात्री ने 1816 में किया था उल्लेख
इस ऐतिहासिक मंदिर का उल्लेख सबसे पहले 1816 में अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर ने अपने यात्रा वृतांत में किया था। गंगा भागीरथी की उत्पत्ति की खोज में निकले फ्रेजर ने धराली के मंदिरों में विश्राम का जिक्र किया है। इसके बाद 1869 में अंग्रेज खोजकर्ता और फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन ने इन मंदिरों की तस्वीरें भी खींची थीं, जो आज भी पुरातत्व विभाग में संरक्षित हैं।
गर्भगृह में विराजमान था नंदी पीठ वाला शिवलिंग
कल्प केदार मंदिर की वास्तुकला कत्यूर शैली की मानी जाती है। इसका गर्भगृह मुख्य द्वार से कई फीट नीचे था। मंदिर के बाहर पत्थरों पर की गई नक्काशी इसकी प्राचीनता को दर्शाती थी। गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग, केदारनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग की तरह ही नंदी की पीठ जैसी आकृति लिए हुए था।
आदि शंकराचार्य या पांडवों ने की थी स्थापना?
मंदिर को लेकर एक मत यह भी है कि इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। तो वहीं कुछ लोगों का विश्वास है कि पांडवों द्वारा स्थापित यह मंदिर सदियों तक बर्फ और मलबे के नीचे दबा रहा। वर्ष 1945 की खुदाई में इसकी दोबारा प्राप्ति हुई और श्रद्धालुओं ने वहां फिर से पूजा-अर्चना शुरू कर दी।
त्रासदी में लील गया इतिहास, फिर से उठे सवाल
धराली में आई इस प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए कितना तैयार हैं। एक बार खुदाई में जो धरोहर निकली थी, वह अब दोबारा जमीन में दफन हो चुकी है। क्या इसे फिर कभी देखा जा सकेगा? क्या इसके अवशेषों की सुरक्षा और पुनर्निर्माण की कोई योजना बनेगी?
श्रद्धालुओं में शोक, सरकार से संरक्षण की मांग
स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि कल्प केदार मंदिर उनकी आस्था का केंद्र था और अब जब वह दोबारा मलबे में समा गया है, तो वे बेहद व्यथित हैं। सरकार से मांग की जा रही है कि एक बार फिर मंदिर की खुदाई करवाई जाए और यदि संभव हो तो उसका पुनर्निर्माण कर उसे संरक्षित धरोहर घोषित किया जाए।


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