धराली तबाही की असली वजह: उमस से टूटा 'हैंगिंग ग्लेशियर', फिर आया मौत का सैलाब! वैज्ञानिकों ने जानिए क्या बताया


धराली त्रासदी का कारण बादल फटना नहीं बल्कि उमस में टूटा ग्लेशियर! वैज्ञानिकों ने बताया भयावह सच, जानिए पूरा घटनाक्रम


धराली तबाही में नया खुलासा, बादल नहीं फटे – वैज्ञानिकों ने बताई असली वजह

उत्तरकाशी के धराली गांव में आई तबाही के पीछे अब नया सच सामने आया है। मौसम विभाग और भूगर्भ वैज्ञानिकों की संयुक्त रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यह आपदा Cloudburst नहीं बल्कि Hanging Glacier Collapse से हुई थी। मंगलवार को गांव में जो भीषण सैलाब आया, उसने कई जिंदगियों को निगल लिया। लेकिन अब इस सच्चाई ने सबको चौंका दिया है कि भारी बारिश इसका कारण नहीं थी।

हैंगिंग ग्लेशियर का पिघलना बना मौत का कारण

वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉक्टर एसपी सती ने बताया कि श्रीखंड पर्वत के ऊपर स्थित हैंगिंग ग्लेशियर उमस और बढ़ते तापमान के कारण कमजोर हो गए थे। यही ग्लेशियर ऊंची ढलानों पर टिके रहते हैं और तापमान में हल्का बदलाव भी उन्हें गिरा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, बारिश और उमस की वजह से एक बड़ा हिस्सा ग्लेशियर का टूटकर नीचे गिरा, जिससे ऊपर मौजूद 2-3 झीलें भी फट गईं। नतीजा, वो मलबा और पानी एक तेज रफ्तार से नीचे की ओर बहा और धराली गांव को अपनी चपेट में ले लिया।

मौसम वैज्ञानिक ने क्या कहा?

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के डायरेक्टर डॉक्टर विक्रम सिंह के अनुसार, जिस दिन त्रासदी हुई, उस दिन केवल 2.7 mm बारिश दर्ज हुई थी, जो कि सामान्य मानी जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बादल फटने की घटना नहीं हुई थी। ऐसे में असली वजह climate change और glacier burst को माना जा रहा है।

रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी, सेना और SDRF जुटी

धराली में तबाही के बाद राहत और बचाव कार्य लगातार चल रहा है। गुरुवार को साफ मौसम के चलते हेलिकॉप्टर की मदद से एक बार फिर राहत अभियान शुरू किया गया। अब तक करीब 400 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है, वहीं सेना के 11 जवानों को भी एयरलिफ्ट करके सुरक्षित लाया गया है। प्रशासन के अनुसार, अब भी करीब 150 लोग मलबे में दबे हो सकते हैं।

घटनास्थल पर जमा है 30-50 फीट मलबा

धराली गांव में सैलाब के बाद कई घर, होटल और दुकानें मलबे में समा गईं। अनुमान है कि 30 से 50 फीट तक मलबा गांव में जमा है। ITBP, सेना और SDRF की टीमें ground penetrating radar और खोजी कुत्तों की मदद से लापता लोगों की तलाश कर रही हैं। अधिकारियों ने बताया कि इस बार माणा में हुए हिमस्खलन से सीखी गई रणनीति का इस्तेमाल यहां किया जा रहा है।

मौसमीय नहीं, भूगर्भीय आपदा थी यह

डॉक्टर एसपी सती के अनुसार, यह आपदा meteorological disaster नहीं बल्कि एक विशुद्ध रूप से geo-climatic event थी। ट्रांस हिमालय क्षेत्र में लगातार हो रही गर्मी के चलते ऊपर जमे ग्लेशियर कमजोर हो गए हैं। इस तरह की घटनाएं जलवायु परिवर्तन का संकेत हैं और आने वाले समय में और भी खतरनाक रूप ले सकती हैं।

फिर फटे ग्लेशियर, लगातार गिर रहा मलबा

गुरुवार को सुबह जैसे ही रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ, खबर आई कि ऊपर से फिर से एक छोटा ग्लेशियर फटा है। इसके साथ ही नया मलबा भी नीचे की तरफ आने लगा, जिससे बचाव कार्य फिर से कुछ देर के लिए रोकना पड़ा। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक ऊपर से गिरने वाला खतरा पूरी तरह थमेगा नहीं, तब तक धराली पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।

गांव की पहचान मिटा दी तबाही ने

जहां कभी पर्यटक रुकते थे, मंदिरों में पूजा होती थी, आज वहां सिर्फ कीचड़ और मलबे का साम्राज्य है। गांव का नक्शा ही बदल चुका है। टूरिस्टों की रौनक वाली गलियां अब वीरान हैं और गांव के लोग बेघर होकर राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं।

क्या यह चेतावनी है भविष्य के लिए?

धराली त्रासदी ने यह साफ कर दिया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में climate change अब महज़ रिपोर्टों की बात नहीं रहा, यह जमीनी खतरा बन चुका है। मौसम का मिजाज, पहाड़ों की बनावट और इंसानी हस्तक्षेप – ये तीनों मिलकर अब जानलेवा साबित हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि अब भी सतर्क नहीं हुए, तो ऐसी त्रासदियां बार-बार दोहराई जाएंगी।

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