लखनऊ की 'मॉडल चाय वाली' सिमरन गुप्ता को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, पुलिस पर मारपीट और उत्पीड़न मामले की जांच के आदेश
लखनऊ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: 'मॉडल चाय वाली' सिमरन गुप्ता को न्याय की उम्मीद
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ‘मॉडल चाय वाली’ के नाम से मशहूर सिमरन गुप्ता को लखनऊ हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों द्वारा कथित मारपीट और उत्पीड़न के मामले में जांच के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने लखनऊ पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की निष्पक्ष जांच कर छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट शपथपत्र के साथ दाखिल करें।
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी भी पुलिसकर्मी की भूमिका दोषपूर्ण पाई जाती है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह फैसला सिमरन गुप्ता की उस याचिका पर आया है जिसमें उन्होंने पुलिस की प्रताड़ना और अपमानजनक बर्ताव का आरोप लगाया था।
घटना का वीडियो हुआ वायरल, सीसीटीवी फुटेज बना बड़ा सबूत
यह मामला तब तूल पकड़ा जब घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। सिमरन का आरोप है कि 8 जून 2025 की रात राम राम बैंक चौकी के तत्कालीन इंचार्ज आलोक कुमार चौधरी, सिपाही अभिषेक यादव, दुर्गेश कुमार वर्मा और महिला सिपाही किरन अग्निहोत्री ने उनके साथ बदसलूकी और मारपीट की।
सिमरन का दावा है कि जब उन्होंने पुलिस द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार का वीडियो बनाना चाहा तो पुलिस ने उनका फोन छीन लिया। लेकिन दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे और एक राहगीर के मोबाइल से रिकॉर्ड हुआ वीडियो वायरल होने के बाद मामला मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर फैल गया।
कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर को सौंपी जांच की जिम्मेदारी
इस संवेदनशील मामले में लखनऊ हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मनीष कुमार शामिल थे, ने सिमरन की याचिका पर सुनवाई की। सिमरन के वकील चंदन श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि घटना के बाद सिमरन ने पुलिस कमिश्नर और डीसीपी को शिकायती पत्र दिया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
वकील ने कोर्ट को बताया कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस अधिनियम की धारा 7 और 29 के तहत कार्रवाई बनती है। साथ ही यह भी बताया कि पुलिसकर्मियों ने सिमरन की दुकान पर काम करने वाले एक लड़के को भी चौकी ले जाकर पीटा और वहां भी सिमरन को प्रताड़ित किया।
कौन हैं ‘मॉडल चाय वाली’ सिमरन गुप्ता?
सिमरन गुप्ता, जिनका असली नाम आंचल गुप्ता है, मूल रूप से गोरखपुर की रहने वाली हैं। वर्ष 2018 में उन्होंने ‘मिस गोरखपुर’ का खिताब अपने नाम किया था। उनके पिता राजेंद्र गुप्ता शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग हैं, जिसकी वजह से सिमरन ने परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए मॉडलिंग शुरू की।
कोविड-19 महामारी के बाद मॉडलिंग का करियर ठप हो गया, जिसके बाद उन्होंने गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हॉस्टल के सामने 'मॉडल चाय वाली' नाम से चाय का स्टॉल शुरू किया। सस्ती और अलग-अलग फ्लेवर वाली चाय ने उन्हें युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय बना दिया।
लखनऊ में भी स्टॉल शुरू कर बनाई अलग पहचान
गोरखपुर में सफलता के बाद सिमरन ने लखनऊ में इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे पर भी अपनी दुकान शुरू की। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई। उन्होंने न सिर्फ चाय की दुकान से अच्छा मुनाफा कमाया, बल्कि बाद में उस दुकान को खरीद भी लिया।
आज सिमरन सोशल मीडिया पर भी खूब लोकप्रिय हैं। उनके इंस्टाग्राम पर 29,000 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और वह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से भी कमाई करती हैं। अपने स्टाइलिश अंदाज, बोल्ड ड्रेसिंग और अनोखे चाय फ्लेवर के लिए युवाओं के बीच उनकी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुई वीडियो ने खोली पोल
वायरल हुए वीडियो में पुलिसकर्मियों को सिमरन के स्टॉल पर उनके साथ हाथापाई करते और उनके कपड़े खींचते हुए देखा गया। यह वीडियो पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। इस वीडियो के सामने आने के बाद पुलिस प्रशासन की किरकिरी होने लगी और मामला अदालत तक पहुंचा।
सिमरन का यह भी कहना है कि पुलिसकर्मी उन्हें लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित करते रहे और धमकियां देते रहे। वह इस उत्पीड़न से परेशान होकर कोर्ट की शरण में गईं। हाईकोर्ट का यह आदेश उनके लिए न्याय की पहली किरण बनकर सामने आया है।
अगली सुनवाई और जांच की डेडलाइन
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस मामले की जांच छह सप्ताह के भीतर पूरी होनी चाहिए और उसकी रिपोर्ट शपथपत्र के साथ कोर्ट में दाखिल की जानी चाहिए। जांच की जिम्मेदारी सीधे लखनऊ के पुलिस कमिश्नर को सौंपी गई है। मामले की अगली सुनवाई भी छह सप्ताह बाद तय की गई है।
‘मॉडल चाय वाली’ बनीं संघर्ष और हिम्मत की मिसाल
सिमरन गुप्ता की कहानी सिर्फ एक चायवाली की नहीं है, बल्कि वह एक संघर्षशील महिला की मिसाल हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी डटी रहीं। अब जब हाईकोर्ट ने उनके मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं, तो यह कदम न्याय व्यवस्था में आम जनता की आस्था को और मजबूत करता है।


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