शाहजहांपुर मेडिकल कॉलेज में मां की मौत से पहले बेटे से वसूले गए 200 रुपये, इलाज शुरू होने से पहले टूट गई सांसें।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने पूरे प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल मेडिकल कॉलेज में एक गरीब बेटा अपनी मां के इलाज की उम्मीद लेकर पहुंचा, लेकिन उसे वहां इंसानियत से ज़्यादा लालच और सिस्टम की सड़ांध देखने को मिली।
रोजा थाना क्षेत्र के अटसलिया गांव निवासी युवक की मां, नन्ही देवी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। घबराया बेटा तुरंत 108 नंबर पर कॉल कर सरकारी एंबुलेंस बुलवाया और मां को लेकर शाहजहांपुर के मेडिकल कॉलेज पहुंचा। लेकिन वहां पहुंचते ही उम्मीद टूटने लगी।
ड्राइवर बोला- ‘100 रुपये दो, तभी अंदर शिफ्ट करूं’
एम्बुलेंस से मां को इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट कराने के लिए ड्राइवर ने खुलेआम 100 रुपये की मांग की। मां की हालत बिगड़ती जा रही थी, बेटे ने झट से पैसे दिए कि शायद इससे समय बचेगा और मां बच जाएगी। लेकिन यह तो बस रिश्वतखोरी की शुरुआत थी।
इमरजेंसी में वार्डबॉय ने मांगी दूसरी किस्त
बेटा जैसे ही मां को लेकर इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा, वहां मौजूद एक वार्डबॉय ने कहा कि डॉक्टर से जल्दी दिखवाना है तो "थोड़े और पैसे दो"। इस बार भी 100 रुपये का भुगतान किया गया, ये सोचकर कि अब तो इलाज शुरू होगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ।
‘पैसा ले लिया, इलाज नहीं किया… गोद में मर गई मां’
मां ने बेटे की गोद में ही अंतिम सांसें ले लीं। डॉक्टर नदारद रहे, इलाज शुरू नहीं हुआ। और तब जाकर सिस्टम की बेशर्मी का एक और अध्याय सामने आया — वही वार्डबॉय जो रिश्वत लेकर गया था, अब आकर पैसे लौटाने लगा। लेकिन बेटे की आंखों से बहते आंसुओं के बीच यह पैसे बेकार हो चुके थे।
‘बेटा दौड़ता रहा… लेकिन सिस्टम जीत गया’
इस हृदयविदारक घटना से साफ है कि गरीबों की जान का कोई मोल नहीं। जब किसी की मां मौत से लड़ रही हो, तब भी हमारे सिस्टम में घूस लेने की लालसा कम नहीं होती। यह एक आम आदमी की त्रासदी है, जो डॉक्टर, ड्राइवर और वार्डबॉय की लापरवाही की भेंट चढ़ गई।
DM के आदेश पर जांच शुरू, लेकिन क्या बदलेगा सिस्टम?
जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन अब तक जिनकी मां जा चुकी है, उनके लिए यह कार्रवाई क्या मायने रखती है?
‘सरकारी अस्पताल या रिश्वत का अड्डा?’
लोगों का सवाल अब यही है कि सरकारी अस्पतालों में क्या बिना पैसे के किसी की जान बच सकती है? एक आम आदमी की मजबूरी को भुनाकर पैसा कमाना क्या यही हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई बन चुकी है?
इंसाफ की गुहार और मरे हुए सिस्टम पर हज़ारों सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बार फिर सवाल खड़े हुए हैं — क्या अस्पतालों में वाकई मरीजों की जिंदगी की कोई कीमत है? या फिर इलाज से पहले 'कैश' दिखाना ही इनका नियम बन चुका है?
0 टिप्पणियाँ