महाकुंभ में 'पंच धूनी तपस्या' की शुरुआत बसंत पंचमी से हुई। अग्नि के बीच बैठकर साधक आत्मसंयम की कठिन परीक्षा देते हैं। जानिए इसकी रहस्यमयी साधना।
महाकुंभ में पंच धूनी तपस्या: अग्नि में तपकर साधक करते हैं आत्मसंयम की साधना
हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन या नासिक – महाकुंभ केवल पवित्र स्नान और आस्था का संगम नहीं, बल्कि यह कठोर तप और आध्यात्मिक साधनाओं का महासमागम भी है। इन्हीं कठिन साधनाओं में से एक है 'पंच धूनी तपस्या', जिसे अग्नि स्नान की साधना भी कहा जाता है। यह साधना बसंत पंचमी से शुरू होकर पूरे महाकुंभ में साधकों की तपस्या का साक्षी बनती है। इसमें साधक अपने चारों ओर जलती हुई अग्नि के घेरे में बैठकर ध्यान और मंत्रोच्चारण करते हैं।
क्या है पंच धूनी तपस्या?
'पंच धूनी तपस्या' एक अत्यंत कठिन और रहस्यमयी साधना है, जिसमें साधक अपने चारों ओर पांच अलग-अलग स्थानों पर अग्नि प्रज्वलित करता है और उन्हीं की जलती हुई लपटों के बीच बैठकर तपस्या करता है। साधना के दौरान वह न केवल आग की भीषण गर्मी को सहता है, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को संपूर्ण नियंत्रण में रखता है। इसे अग्नि स्नान साधना भी कहा जाता है क्योंकि इसमें साधक अग्नि में तपकर अपनी आत्मशक्ति को जागृत करता है।
महाकुंभ में हर अखाड़ा अपने-अपने तरीके से साधनाएं करता है, लेकिन पंच धूनी तपस्या विशेष रूप से दिगंबर अनी अखाड़ा और अखिल भारतीय पंच तेरह भाई त्यागी खालसा के संतों द्वारा की जाती है। यह साधना सिर्फ एक आध्यात्मिक प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि शिष्य को वैराग्य की कठिन परीक्षा में डालने का तरीका भी है।
कैसे होती है पंच धूनी तपस्या?
यह कठिन साधना कई चरणों में पूरी होती है:
- साधक सबसे पहले एक मुख्य अग्निकुंड जलाता है और उसी से पांच अलग-अलग स्थानों पर छोटी-छोटी अग्नि धूनी (अग्नि पिंड) प्रज्वलित करता है।
- इन अग्नि पिंडों को उपले (गोबर के उपले) और लकड़ियों से जलाया जाता है।
- साधक ध्यान और गुरुमंत्र का उच्चारण करते हुए इन जलती हुई धूनियों के बीच बैठता है।
- समय-समय पर साधु चिमटे में जलती हुई आग को उठाकर अपने ऊपर घुमाते हैं और फिर उसे वापस अग्नि पिंड में डाल देते हैं।
- इस दौरान, साधु अपने पैरों पर कपड़ा डालकर संपूर्ण ध्यान साधना में मग्न रहता है।
- यह साधना हर साल बसंत पंचमी से गंगा दशहरा तक (लगभग 5 महीने) की जाती है और इसे 18 वर्षों तक करना अनिवार्य होता है।
क्यों की जाती है यह कठोर साधना?
अग्नि को हिंदू धर्म में पवित्र और शुद्धिकरण का प्रतीक माना गया है। पंच धूनी तपस्या का मुख्य उद्देश्य आत्मसंयम, सहनशीलता और तपस्वी साधकों की मानसिक और शारीरिक सीमाओं का परीक्षण करना है। यह साधना केवल तपस्वियों के लिए नहीं, बल्कि सामान्य श्रद्धालुओं के लिए भी एक गहरी आध्यात्मिक सीख देती है कि मानव शरीर कठिनतम परिस्थितियों में भी आत्मबल और संयम के सहारे अडिग रह सकता है।
महाकुंभ में पंच धूनी तपस्या का महत्व
महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक समागम है, जहां श्रद्धालु केवल पुण्य लाभ के लिए नहीं, बल्कि साधुओं और तपस्वियों की कठिन साधनाओं को देखने और उनसे प्रेरणा लेने के लिए भी आते हैं। पंच धूनी तपस्या इस पर्व का एक अनोखा आकर्षण होती है, जहां श्रद्धालु साधकों की अग्नि साधना को देख उनकी अद्वितीय सहनशक्ति और त्याग से प्रेरित होते हैं।
क्या होता है साधकों के साथ?
यह साधना आसान नहीं है। अत्यधिक गर्मी और अग्नि के प्रचंड ताप से साधकों की त्वचा झुलस सकती है, सांस लेने में कठिनाई हो सकती है और अत्यधिक पसीना निकलता है। लेकिन इन सबके बावजूद, यह तपस्वी ध्यान की गहरी अवस्था में चले जाते हैं और अपने शरीर और मन को अग्नि के प्रभाव से मुक्त कर देते हैं।
दिगंबर अनी अखाड़े के महंत मंगल दास के अनुसार, "यह साधना केवल शरीर को मजबूत बनाने के लिए नहीं, बल्कि मानसिक स्थिरता और आत्मानुभूति के लिए की जाती है। जो इसे पूरी कर लेते हैं, वे सांसारिक मोह और भौतिक इच्छाओं से मुक्त हो जाते हैं।"
श्रद्धालुओं की आस्था और महाकुंभ में पंच धूनी तपस्या का भविष्य
महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालु इस अद्भुत साधना को देखने के लिए आते हैं। भक्तों के बीच यह धारणा है कि जो व्यक्ति पंच धूनी तपस्या का दर्शन कर लेता है, उसके जीवन की कई बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती हैं। इसलिए, हर महाकुंभ में यह साधना न केवल साधुओं के लिए बल्कि आम श्रद्धालुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण आकर्षण बन जाती है।
पंच धूनी तपस्या केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मसंयम, वैराग्य और मानसिक दृढ़ता की कठिनतम परीक्षा है। यह साधना हमें सिखाती है कि आध्यात्मिक उन्नति केवल त्याग और तपस्या से ही संभव है। महाकुंभ में इस साधना को देखकर हर कोई यह महसूस करता है कि आग केवल जलाने का साधन नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने का माध्यम भी हो सकती है।
महाकुंभ में पंच धूनी तपस्या की यह अनूठी परंपरा हर साल लाखों लोगों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है। यह साधना दिखाती है कि जब आत्मशक्ति जाग्रत हो जाए, तो अग्नि भी साधक का कुछ नहीं बिगाड़ सकती!
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