कितना जरूरी है बालिकाओं का शिक्षा गृहण करना : राहुल यदुवंशी



संवाददाता मुदित प्रताप सिंह की रिपोर्ट

जनपद बरेली फतेहगंज पश्चिमी _ यदि हम किसी को भोजन देते हैं तो एक दिन संवरता है यदि किसी को कुछ पैसे देते हैं तो उसके कुछ दिन संवर सकते हैं....परन्तु यदि हम किसी को शिक्षा देते हैं तो उसका पूरा जीवन ही संवर सकता है।

किसी ने क्या खूब कहा है....... कि

कौन कहता है कि कफन...... सफेद रंग का होता है,

हमने कई बेटियों को लाल लहंगे में दफ़न होते देखा है।

जी हां हम सब जहां एक ओर

 पढ़े बेटी – बढ़े बेटी

पढ़ी लिखी लड़की – रोशनी घर की।

जैसे नारों को बुलंद करते हैं और यह सोचते हैं कि हमारा देश सिर्फ इन चंद नारों से प्रगति पथ पर आगे बढ़ जाएगा यह संभव नहीं है...इसके लिए जरूरी है हम सब एक जिम्मेदार नागरिक बन समाज को जागृत करने का कार्य करें...उनको गांवों में आज भी 70% आबादी में सिर्फ़ उतनी ही शिक्षा तक बालिकाएं जा पाती हैं जिस स्तर तक विद्यालय गांवों में संचालित हैं...बालिकाओं को उनके परिजन विद्यालय शिक्षा के लिए ना भेजकर चूल्हा–चौके तक ही सीमित कर देते हैं। 

हम समाज में एक ओर तो नारी शक्ति को बराबरी का हिस्सा देने बात करते हैं वहीं दूसरी ओर उनके बचपन व अनिवार्य शिक्षा और बाल अधिकारों का हनन करने वाले कृत्य में भी जाने–अनजाने शामिल भी हो जाते हैं।

15 वर्ष की अवस्था तक पंहुचते पंहुचते माता पिता अपनी इन अबोध बेटियों के हाथ पीले कर घर से विदा करने का सपना देखना शुरू कर देते हैं। परिपक्वता की दहलीज़ पार करने से पहले ही उन्हें अपने माता पिता के घर की दहलीज पार करा दी जाती है।

ना जाने घर वालों को यह कब समझ में आएगा कि हम जीते जी बेटियों की भावनाओं को दफ़न कर रहे हैं।

मैं ऐसे उन तमाम उन लोगों का सदैव धुर विरोधी रहूंगा जो एक ओर अपनी बेटियों को शिक्षा से वंचित करने का कुत्सित प्रयास करते हैं वहीं दूसरी ओर जब उनकी पत्नी या परिवार की महिला जब डिलीवरी टेबल पर हो तो एक लेडी डॉक्टर को खोजते हैं यह विचार मन में लाने का हक़ वो उसी समय खो चुके होते हैं जिस दिन उन्होंने अपनी बेटी के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद किए थे।

हम सामाजिक समानता को आज आज़ादी के 70 वर्ष बाद तक भी हासिल नहीं कर सके हैं। इस लक्ष्य को हम तब तक हासिल नहीं कर सकते जब तक हम बेटियों को भी बेटों के समान पढ़ने लिखने के समान अवसर स्वयं से नहीं देंगे। इसमें सरकारें तब तक सफल नहीं हो सकतीं जब तक हम बेटियों को उनकी शिक्षा में सहायक ना बन जाएं।



अब तक यह पुरुष प्रधान समाज आधी आबादी को नजरंदाज कर अकेले ही तरक्की का दंभ भर रहा है यकीन मानिए जिस दिन हमारी आधी आबादी भी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर चल पड़ेगी यह देश उसी दिन से तरक्की के रास्ते पर चलता हुआ विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा दिखाई देगा।

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