‘iPhone दिला दो वरना…’, गरीब किसान पिता की मजबूरी नहीं समझ सकी बेटी, जालौन में 11वीं की छात्रा ने ज़हर खाकर दे दी जान



जालौन में 18 साल की छात्रा ने iPhone न मिलने पर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। गरीब किसान पिता की मजबूरी ने पूरे गांव को झकझोर दिया।


जालौन की यह घटना क्यों पूरे समाज को सोचने पर मजबूर कर रही है

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले से सामने आई यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या की खबर नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक दबाव, उपभोक्तावादी सोच और पीढ़ियों के बीच बढ़ती दूरी की दर्दनाक तस्वीर है, जिसने एक गरीब किसान परिवार की खुशियां छीन लीं। डकोर कोतवाली क्षेत्र के कुसमीलिया गांव में रहने वाली 18 वर्षीय माया राजपूत की मौत ने पूरे इलाके को गहरे सदमे में डाल दिया है। गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा है और हर आंख नम है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि एक लड़की ने iPhone के लिए जान क्यों दे दी, बल्कि यह भी है कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां महंगे मोबाइल फोन किसी की जिंदगी से ज्यादा अहम हो गए हैं।

किसान पिता की आर्थिक हकीकत और बेटी की अधूरी ख्वाहिश

माया के पिता तुलसीराम राजपूत खेती-किसानी और ऑटो चलाकर किसी तरह अपने परिवार का गुजारा करते थे। बटाई पर ली गई जमीन, मौसम की मार, फसल की अनिश्चित कीमत और रोजमर्रा के खर्चों के बीच वह अपनी पूरी कोशिश करते थे कि बच्चों की पढ़ाई और जरूरतों में कोई कमी न रहे। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी, बेटा मानवेंद्र पढ़ाई कर रहा था और माया गांव के राजकीय इंटर कॉलेज में 11वीं कक्षा की छात्रा थी। परिवार की आर्थिक स्थिति कभी ऐसी नहीं रही कि 40 हजार रुपये का फोन बिना सोचे-समझे खरीदा जा सके, लेकिन पिता का कहना था कि फसल बिकते ही वह बेटी की इच्छा पूरी कर देते।

मोबाइल टूटने से शुरू हुई जिद, iPhone पर आकर अटक गई बात

परिजनों के अनुसार, कुछ समय पहले माया का पुराना मोबाइल फोन खराब हो गया था। इसके बाद उसने नया फोन लेने की जिद शुरू की। शुरुआत में बात सामान्य स्मार्टफोन तक सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे उसकी मांग एक पुराने iPhone पर आकर टिक गई। गांव में रहने वाली एक सामान्य किसान परिवार की बेटी के लिए iPhone सिर्फ एक फोन नहीं था, बल्कि शायद सामाजिक प्रतिष्ठा, दोस्तों के बीच पहचान और आधुनिक दिखने का जरिया बन चुका था। पिता ने कई बार समझाया कि अभी पैसे नहीं हैं, 15 दिन बाद हरी मटर की फसल बिक जाएगी, तब फोन दिला देंगे, लेकिन माया इस बात को मानने को तैयार नहीं थी।

‘दो दिन में फोन नहीं मिला तो अंजाम बुरा होगा’

शुक्रवार को माया ने पिता से साफ शब्दों में कहा था कि अगर दो दिन में iPhone नहीं मिला तो अंजाम बुरा होगा। उस वक्त पिता ने इसे किशोर उम्र की नाराजगी समझकर नजरअंदाज कर दिया। उन्हें लगा कि बेटी बस गुस्से में बोल रही है और कुछ समय में शांत हो जाएगी। शायद यही वह पल था, जहां एक परिवार से अनजाने में सबसे बड़ी चूक हो गई। कोई नहीं समझ पाया कि माया के मन में क्या चल रहा है और उसकी जिद किस हद तक खतरनाक रूप ले चुकी है।

घर में अकेली थी माया, मौत का फैसला उसी वक्त ले लिया

शनिवार का दिन था। पिता रोज की तरह ऑटो चलाने चले गए थे और मां बबली खेत में मटर तोड़ने गई हुई थीं। घर पर सिर्फ माया अकेली थी। इसी दौरान उसने चूहे मारने की दवा खा ली। जब मां खेत से लौटीं और भाई मानवेंद्र घर पहुंचा, तब माया ने खुद बताया कि उसने ज़हर खा लिया है। घर में अफरा-तफरी मच गई। परिजन बिना वक्त गंवाए उसे उरई मेडिकल कॉलेज ले गए, जहां से हालत गंभीर होने पर झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया।

अस्पताल से झांसी तक की जंग और आखिरकार मौत

डॉक्टरों ने माया को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन ज़हर की मात्रा ज्यादा होने के कारण उसकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई। रविवार को इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। एक होनहार छात्रा, जो कुछ दिन पहले तक अपने भविष्य के सपने देख रही थी, हमेशा के लिए खामोश हो गई। मेडिकल कॉलेज के बाहर खड़े परिजनों की चीखें हर सुनने वाले का कलेजा चीर रही थीं।

बेटी की मौत के बाद खुद को कोसता पिता

तुलसीराम राजपूत की हालत बेटी की मौत के बाद बेहद खराब है। वह बार-बार खुद को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वह किसी तरह पैसे जुटाकर फोन दिला देते या बेटी की मानसिक स्थिति को समझ पाते, तो शायद आज माया जिंदा होती। गरीब किसान पिता की यह बेबसी बताती है कि आर्थिक तंगी सिर्फ जेब पर नहीं, रिश्तों और फैसलों पर भी भारी पड़ती है।

गांव में मातम, हर कोई हैरान

कुसमीलिया गांव में इस घटना के बाद मातम पसरा हुआ है। गांव के लोग इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे कि इतनी छोटी सी बात ने इतना बड़ा रूप ले लिया। पड़ोसियों का कहना है कि माया पढ़ाई में ठीक थी और सामान्य व्यवहार करती थी। किसी को अंदाजा नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगी। गांव के बुजुर्ग इस घटना को नई पीढ़ी पर बढ़ते सामाजिक दबाव और दिखावे की होड़ से जोड़कर देख रहे हैं।

सोशल मीडिया और स्टेटस की दुनिया का दबाव

आज के दौर में सोशल मीडिया, महंगे गैजेट और दिखावे की संस्कृति बच्चों और किशोरों पर गहरा असर डाल रही है। iPhone जैसे फोन अब सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि एक स्टेटस सिंबल बन चुके हैं। छोटे कस्बों और गांवों तक यह दबाव पहुंच चुका है, जहां आर्थिक हकीकत उससे मेल नहीं खाती। माया की मौत इस टकराव का सबसे दुखद उदाहरण बन गई है।

पुलिस जांच में जुटी, हर पहलू खंगाला जा रहा

डकोर कोतवाली प्रभारी निरीक्षक विजय पांडेय के अनुसार, मामले की जांच की जा रही है। परिजनों के बयान दर्ज किए गए हैं और यह समझने की कोशिश की जा रही है कि माया ने किन परिस्थितियों में यह कदम उठाया। पुलिस का कहना है कि फिलहाल किसी तरह की साजिश या बाहरी दबाव की बात सामने नहीं आई है, लेकिन हर एंगल से जांच की जा रही है।

शिक्षा, संवाद और समझ की जरूरत

यह घटना सिर्फ एक खबर बनकर नहीं रहनी चाहिए। यह समाज, परिवार और शिक्षा व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। बच्चों से संवाद, उनकी मानसिक स्थिति को समझना और उन्हें यह सिखाना कि किसी वस्तु की कीमत जिंदगी से ज्यादा नहीं होती, आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है। आर्थिक मजबूरी को अपराध नहीं समझा जाना चाहिए और बच्चों को यह अहसास दिलाना जरूरी है कि हर इच्छा तुरंत पूरी होना संभव नहीं होता।

एक परिवार उजड़ गया, सवाल पूरे समाज पर

माया की मौत के साथ ही एक परिवार का भविष्य अंधेरे में चला गया है। पिता की मेहनत, मां की ममता और भाई-बहन के रिश्ते पर यह घाव शायद कभी न भर सके। यह घटना हम सभी से सवाल करती है कि क्या हम अपने बच्चों को सही मायनों में मजबूत बना पा रहे हैं या उन्हें सिर्फ दिखावे की दौड़ में धकेल रहे हैं।

जालौन की यह कहानी हर घर तक पहुंचनी चाहिए

जालौन की यह दर्दनाक कहानी हर माता-पिता, हर शिक्षक और हर युवा तक पहुंचनी चाहिए। ताकि कोई और माया किसी फोन, कपड़े या किसी और मांग के लिए अपनी जिंदगी खत्म न करे। जिंदगी की कीमत किसी भी गैजेट से कहीं ज्यादा है, यह बात अगर समय रहते समझ ली जाए, तो शायद कई घर उजड़ने से बच सकते हैं।

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