दिल्ली ब्लास्ट में अमरोहा निवासी अशोक कुमार की मौत, तीन बच्चों के पिता थे और DTC में कंडक्टर का काम करते थे
लाल किले के पास हुआ धमाका, जिसने उजाड़ दिया एक परिवार
दिल्ली में सोमवार शाम हुए ब्लास्ट ने कई परिवारों की खुशियां उजाड़ दीं. इस हादसे में उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के मंगरोला गांव के रहने वाले अशोक कुमार की मौत हो गई. अशोक दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (DTC) में कंडक्टर के पद पर कार्यरत थे और अपने परिवार के इकलौते सहारा थे. उनका जीवन संघर्ष से भरा था, लेकिन वे हमेशा मुस्कुराते रहते थे. उनकी मृत्यु की खबर जैसे ही गांव पहुंची, पूरे इलाके में मातम छा गया.
तीन बच्चों का पिता और मां का सहारा था अशोक
अशोक कुमार अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले सदस्य थे. उनके परिवार में बूढ़ी मां, पत्नी और तीन छोटे बच्चे हैं. वह हर दिन सुबह जल्दी घर से निकलते और देर रात तक काम करते ताकि अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे सकें. उनकी मां बूढ़ी हो चुकी हैं और बेटे पर ही पूरी तरह निर्भर थीं. अशोक ने कड़ी मेहनत से अपने परिवार को संभाला था, लेकिन अब उनके जाने के बाद पूरा परिवार बेसहारा हो गया है.
दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे थे अशोक
अशोक दिन में डीटीसी की बस में कंडक्टर की नौकरी करते थे, और रात में सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. यह सब सिर्फ इसलिए ताकि उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ सकें और मां की दवाइयां समय पर मिलें. उन्होंने कभी किसी से मदद नहीं मांगी, बल्कि अपने पसीने की कमाई से ही सबकी जरूरतें पूरी कीं. उनकी यह मेहनत गांव में भी मिसाल बन चुकी थी.
नियति ने लिया अनचाहा मोड़
सोमवार का दिन अशोक के लिए भी बाकी दिनों की तरह ही था. उन्होंने सुबह ड्यूटी की और शाम को घर लौटने की तैयारी कर रहे थे. तभी उनके पुराने साथी लोकेश अग्रवाल का फोन आया. लोकेश से मिलने की बात पर अशोक लाल किले की तरफ चले गए. उन्हें नहीं पता था कि यह मुलाकात उनके जीवन की आखिरी होगी. लाल किले के पास हुए धमाके में दोनों की मौके पर ही मौत हो गई.
दिल्ली ब्लास्ट से हिली राजधानी
दिल्ली में सोमवार को लाल किले के पास हुए इस ब्लास्ट ने राजधानी में सनसनी फैला दी. धमाका इतना जोरदार था कि आसपास खड़ी कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त हो गईं. पुलिस और एनएसजी की टीमें मौके पर पहुंचीं और इलाके को घेर लिया गया. फिलहाल जांच एजेंसियां हर एंगल से इस मामले की जांच कर रही हैं. बताया जा रहा है कि धमाके की वजह से कई लोग घायल हुए और दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जिनमें से एक अशोक कुमार थे.
गांव में पसरा मातम, घरवालों का बुरा हाल
अशोक की मौत की खबर जब उनके गांव अमरोहा के मंगरोला पहुंची, तो माहौल मातमी हो गया. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. उनके छोटे बच्चे अब भी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके पिता क्यों नहीं लौटे. पत्नी बदहवास है और बार-बार बेहोश हो जा रही है. सबसे बड़ा दुख यह है कि अशोक की बूढ़ी मां को अभी तक यह खबर नहीं दी गई है. परिवार को डर है कि यह सदमा उनकी जान ले सकता है.
लोगों की जुबान पर एक ही सवाल – क्यों?
अशोक की मौत ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – आखिर निर्दोष लोगों को इस तरह की घटनाओं में क्यों मरना पड़ता है? अशोक किसी राजनीति या विवाद से नहीं जुड़े थे. वह एक आम मेहनतकश इंसान थे, जो सिर्फ अपने परिवार के लिए जीते थे. उनका जाना इस बात की याद दिलाता है कि आतंक या हिंसा का शिकार सबसे ज्यादा निर्दोष लोग ही होते हैं.
दिल्ली से गांव तक गूंजा शोक का माहौल
दिल्ली से लेकर अमरोहा तक अशोक की मौत की चर्चा है. डीटीसी में उनके साथी उन्हें ईमानदार और जिम्मेदार कर्मचारी बताते हैं. उनके साथियों ने कहा कि अशोक कभी काम से नहीं भागे, हमेशा दूसरों की मदद करते थे. वहीं गांव में लोग उन्हें मेहनतकश और नेकदिल इंसान के रूप में जानते थे. उनकी मौत ने पूरे गांव को हिला कर रख दिया है.
सरकार और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
इस घटना के बाद सरकार और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. परिवार को अभी तक कोई आधिकारिक सहायता नहीं मिली है. गांव के लोगों ने सरकार से मांग की है कि अशोक के परिवार को मुआवजा दिया जाए और बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी सरकार उठाए. लेकिन अब तक कोई अधिकारी उनके घर तक नहीं पहुंचा है.
लाल किले के पास सुरक्षा पर उठे सवाल
लाल किला दिल्ली के सबसे सुरक्षित इलाकों में से एक माना जाता है, लेकिन यहां ब्लास्ट होना सुरक्षा तंत्र की बड़ी नाकामी है. यह सवाल उठता है कि जब इतने बड़े स्मारक के आसपास इतनी सुरक्षा होती है, तो आखिर धमाका कैसे हो गया? विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षा एजेंसियों को अब अपनी व्यवस्था पर फिर से नजर डालनी होगी.
अशोक की कहानी – लाखों श्रमिकों की सच्चाई
अशोक की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी. गांव से निकलकर दिल्ली में नौकरी पाने और फिर परिवार को पालने की जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं था. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनका जीवन उन लाखों मजदूरों और कर्मचारियों की तरह है, जो रोज़ अपने परिवार के लिए शहरों में मेहनत करते हैं. उनके जाने से न केवल एक परिवार बल्कि एक वर्ग की जद्दोजहद उजागर हुई है.
अशोक की यादें और अधूरी ख्वाहिशें
अशोक का सपना था कि वह अपने बच्चों को पढ़ाकर अफसर बनाए. उन्होंने अपनी पत्नी से कई बार कहा था कि "मैं चाहता हूं मेरे बच्चे वो जीवन जिएं जो मैंने नहीं जिया". लेकिन अब वह सपना हमेशा के लिए अधूरा रह गया. उनकी पत्नी ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही अशोक ने बच्चों के लिए नए कपड़े खरीदे थे और अपनी मां के लिए दवा लेने की बात कही थी.
परिवार को मिला समाज का सहारा
अशोक की मौत के बाद गांव के लोग उनके परिवार के साथ खड़े हैं. पड़ोसी, रिश्तेदार और मित्र लगातार उनके घर पहुंच रहे हैं. गांव के युवाओं ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर सरकार से न्याय की मांग की है. स्थानीय नेता भी उनके परिवार से मिलने पहुंचे हैं, लेकिन फिलहाल परिवार को राहत देने वाला कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
जांच एजेंसियों की रिपोर्ट का इंतजार
फिलहाल दिल्ली पुलिस, एनएसजी और एनआईए की टीमें धमाके की जांच में जुटी हैं. शुरुआती रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि धमाका आईईडी डिवाइस से किया गया था. जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि इसके पीछे किस संगठन का हाथ है. इस बीच दिल्ली सरकार ने पीड़ित परिवारों को मदद देने की घोषणा की है.
अशोक की कहानी देश के हर आम आदमी की कहानी
अशोक कुमार की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि उस वर्ग की त्रासदी है जो रोज़ मेहनत करके अपने परिवार को संवारता है. वह न तो किसी राजनैतिक बहस का हिस्सा थे, न किसी आंदोलन का. फिर भी वे हिंसा के शिकार बने. यह घटना बताती है कि आतंक की कोई सीमा नहीं होती – यह हर आम नागरिक के लिए खतरा है.


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