नशा छुड़ाने गए युवक की दर्दनाक मौत! बिजनौर के नशा मुक्ति केंद्र में बर्बर पिटाई के बाद मिली लाश, पूरे शरीर पर चोटों के निशान, संचालक फरार



बिजनौर के नशा मुक्ति केंद्र में युवक की संदिग्ध मौत, शरीर पर चोटों के निशान, परिवार ने केंद्र संचालक पर हत्या का लगाया आरोप


नशा छुड़ाने की जगह मौत का घर बना केंद्र

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में नशा मुक्ति केंद्र से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है. 22 वर्षीय युवक प्रीत, जो नशा छोड़ने के लिए यहां भर्ती हुआ था, उसकी लाश संदिग्ध परिस्थितियों में मिली. केंद्र कर्मचारियों ने दावा किया कि वह छत से गिर गया, जबकि परिजन इस मौत को बर्बर हत्या बता रहे हैं. मृतक के चेहरे, सिर, हाथ और पैरों पर गहरे चोटों के निशान मिले हैं, जो साफ संकेत देते हैं कि उसके साथ निर्ममता की गई. यह कोई पहली घटना नहीं, बल्कि पिछले एक साल में इस तरह की यह सातवीं मौत है, जिससे पूरे जिले में हड़कंप मच गया है

परिवार का आरोप: प्रीत को दी गई थी अमानवीय यातनाएं

प्रीत बिजनौर के धारूवाला मंडावली का रहने वाला था. करीब छह महीने पहले वह चक्कर रोड स्थित नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हुआ था ताकि नशे की लत से छुटकारा पा सके. लेकिन परिजनों का कहना है कि बेटे को छुटकारा नहीं, बल्कि मौत मिली. जब परिवार को मौत की सूचना मिली और वे केंद्र पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि प्रीत के शरीर पर जगह-जगह सूजन और चोटें हैं. सिर और चेहरे पर भी गहरे घाव थे. परिजनों ने सीसीटीवी फुटेज मांगी, लेकिन केंद्र संचालक ने कहा कि कैमरे खराब हैं और रेकॉर्डिंग नहीं हो रही थी. इसी दौरान परिजन आक्रोशित हो गए और हंगामा करने लगे. पुलिस के पहुंचने से पहले ही केंद्र संचालक मौके से फरार हो गया

सीसीटीवी बंद, संचालक फरार और मरीज लापता

घटना के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसे केंद्रों की निगरानी कौन कर रहा है? जब पुलिस मौके पर पहुंची तो केंद्र का हाल देख सभी हैरान रह गए. कई कमरे बंद थे, जहां से अन्य मरीजों को भागते देखा गया. कुछ ने बताया कि यहां आए दिन मरीजों को मारपीट कर अनुशासन सिखाने के नाम पर यातनाएं दी जाती थीं. सीसीटीवी बंद होने की वजह बताई गई कि कैमरे पिछले हफ्ते से खराब हैं, जबकि जांच में पता चला कि उन्हें जानबूझकर बंद रखा गया था ताकि किसी भी घटना का वीडियो न बने. केंद्र संचालक और स्टाफ फरार हैं, जबकि पुलिस ने केंद्र को सील कर दिया है

सात मौतों की गवाही दे रहा बिजनौर

बिजनौर में नशा मुक्ति केंद्रों का यह कोई पहला काला अध्याय नहीं है. पिछले एक साल में ऐसे सात मामले सामने आ चुके हैं, जहां नशा छुड़ाने के नाम पर मरीजों की मौत हो गई. कहीं गला दबाकर, कहीं करंट लगाकर तो कहीं मारपीट से जान ली गई. लेकिन हर बार जांच के नाम पर मामला दबा दिया गया. प्रशासन ने अब तक किसी केंद्र का लाइसेंस रद्द नहीं किया. आंकड़े बताते हैं कि बिजनौर में दर्जनों नशा मुक्ति केंद्र संचालित हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के पास पंजीयन और चिकित्सकीय स्टाफ की वैधता नहीं है

सिस्टम की नाकामी: नशा मुक्ति के नाम पर ‘नशा मुनाफा केंद्र’

सरकार की योजनाओं के तहत नशा मुक्ति अभियान के लिए हर साल करोड़ों रुपये की ग्रांट जारी होती है. इस बजट का बड़ा हिस्सा केंद्र संचालक और कुछ स्थानीय प्रभावशाली लोगों की जेब में चला जाता है. डॉक्टर और काउंसलर की नियुक्ति दिखावे में होती है, जबकि असल में प्रशिक्षित स्टाफ का नाम तक नहीं लिया जा सकता. यही वजह है कि इन केंद्रों में इलाज के बजाय मरीजों पर हिंसा, मारपीट और डर का माहौल बन गया है. कई केंद्रों में मरीजों को कमरे में बंद कर रखा जाता है ताकि वे भाग न सकें. यह पूरी व्यवस्था नशे से मुक्ति नहीं, बल्कि भय और अत्याचार का प्रतीक बन गई है

पुलिस की कार्रवाई और प्रशासनिक उदासीनता

घटना के बाद बिजनौर के एएसपी गौतम राय ने बताया कि पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है और रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. फिलहाल संचालक और स्टाफ की तलाश जारी है. वहीं स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि नशा मुक्ति केंद्रों की सूची और लाइसेंसिंग प्रक्रिया की जांच की जाएगी. लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि जांच सिर्फ कागजों में सिमट जाएगी और फिर सब पहले जैसा चलता रहेगा. यही कारण है कि परिवार न्याय की मांग के साथ केंद्र के बाहर धरने पर बैठ गया है

मृतक के परिवार की पुकार: “प्रीत को इंसाफ दो”

प्रीत की मां ने रोते हुए कहा कि उनका बेटा नशे की लत से लड़ रहा था, इसलिए उसे बेहतर जीवन देने के लिए नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया था. लेकिन वहां से उसका शव मिला. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इन केंद्रों पर कार्रवाई नहीं करती तो और भी लोगों के बच्चे ऐसे ही मरेंगे. पिता ने कहा कि यह संस्थान नशा मुक्ति नहीं बल्कि हत्या के अड्डे बन गए हैं. परिवार ने मुख्यमंत्री और डीजीपी से गुहार लगाई है कि केंद्र संचालक और उसके साथियों को सख्त सजा दी जाए

जांच की आड़ में जारी अत्याचार

प्रदेश में चल रहे कई नशा मुक्ति केंद्रों का हाल लगभग ऐसा ही है. बिना डॉक्टर, बिना प्रशिक्षण और बिना किसी कानूनी निगरानी के ये केंद्र मनमानी से चल रहे हैं. मरीजों को बांधकर रखना, खाने-पीने में मारपीट करना, बिजली का झटका देना आम बात है. परिवारों को सच्चाई तक नहीं बताई जाती. कई बार मरीजों की मौत को आत्महत्या या गिरने जैसी घटना बताकर मामला दबा दिया जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि इन संस्थानों की नियमित जांच आखिर कौन करता है? क्या सरकार के स्वास्थ्य विभाग की भूमिका सिर्फ लाइसेंस देने तक सीमित है

प्रदेशभर में फैला डर, बढ़ा आक्रोश

प्रीत की मौत के बाद बिजनौर ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों में भी लोगों में गुस्सा है. कई सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि सभी नशा मुक्ति केंद्रों का ऑडिट और मेडिकल निरीक्षण कराया जाए. यह भी सामने आया है कि कुछ केंद्रों में कर्मचारियों को खुद नशे की लत होती है. ऐसे में सवाल यह है कि जो खुद नशे से मुक्त नहीं, वे दूसरों को कैसे नशामुक्त करेंगे?

प्रशासन ने किया केंद्र सील, लेकिन भरोसा टूटा

फिलहाल बिजनौर पुलिस ने केंद्र को सील कर दिया है और एफआईआर दर्ज कर ली है. लेकिन लोगों का भरोसा अब उठ चुका है. जो केंद्र कभी पुनर्वास का प्रतीक माने जाते थे, वे आज भय और अत्याचार की कहानी कह रहे हैं. नशे से मुक्ति की उम्मीद में आने वाले लोग अब वहां कदम रखने से डरते हैं. परिजन प्रशासन से यही मांग कर रहे हैं कि इस घटना की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को फांसी तक की सजा दी जाए

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