रावण दहन तो होगा लेकिन नहीं जलेगी शूर्पणखा: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, सोनम रघुवंशी केस से जुड़ा विवाद थमा



इंदौर हाईकोर्ट ने शूर्पणखा दहन कार्यक्रम पर रोक लगाई। दशहरे पर केवल रावण दहन होगा। सोनम रघुवंशी की मां ने फैसले का स्वागत किया।


इंदौर में शूर्पणखा दहन पर हाईकोर्ट की रोक

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में दशहरे के अवसर पर होने वाले शूर्पणखा दहन कार्यक्रम पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस बार दशहरे पर केवल परंपरागत रूप से रावण दहन ही होगा। महिला अपराधियों के नाम पर बनाए जाने वाले पुतलों का दहन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। यह फैसला तब आया जब सोनम रघुवंशी की मां संगीता रघुवंशी ने इस पर आपत्ति जताते हुए याचिका दायर की।

याचिका में क्या कहा गया

संगीता रघुवंशी ने अपनी याचिका में कहा कि दशहरा जैसे धार्मिक पर्व पर महिला अपराधियों के नाम पर प्रतीकात्मक पुतले जलाना समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। इससे मृतक या आरोपी महिलाओं के परिजनों की भावनाएं आहत होती हैं। उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि परंपराओं के नाम पर महिलाओं को अपमानित करने वाली इस प्रथा को खत्म किया जाए।

अदालत का बड़ा निर्णय

हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि धार्मिक आयोजन सामाजिक सौहार्द और नैतिक संदेश देने के लिए होते हैं, न कि किसी वर्ग या लिंग विशेष को नीचा दिखाने के लिए। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि शूर्पणखा या किसी भी महिला अपराधी के पुतले दहन की अनुमति नहीं दी जाएगी। अब दशहरे पर केवल रावण का ही दहन किया जाएगा।

इस बार नहीं जलेंगे महिला अपराधियों के पुतले

इंदौर में हर साल रावण दहन के साथ 11 महिला अपराधियों के प्रतीकात्मक पुतले जलाए जाने की परंपरा रही है। इनमें सोनम और मुस्कान जैसे नाम भी शामिल किए जाते थे। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस साल ये पुतले नहीं जलेंगे। केवल परंपरागत रावण दहन ही होगा, जिसे लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।

संगीता रघुवंशी ने फैसले का किया स्वागत

सोनम रघुवंशी की मां संगीता रघुवंशी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी का नाम इस तरह बदनाम करना उनके परिवार के लिए असहनीय था। हाईकोर्ट के इस फैसले ने उनकी पीड़ा को सम्मान दिया है और समाज को भी सकारात्मक संदेश मिला है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है।

समाज की मिली-जुली प्रतिक्रिया

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद स्थानीय लोग और सामाजिक संगठनों की राय बटी हुई नजर आ रही है। कुछ लोग मानते हैं कि यह फैसला सही है और इससे महिलाओं का सम्मान बढ़ेगा। वहीं कुछ लोग इसे परंपराओं में दखल मान रहे हैं। उनका कहना है कि दशहरे पर पुतला दहन बुराई के अंत का प्रतीक होता है और इसमें बदलाव उचित नहीं है।

दशहरा और सामाजिक संदेश

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि धार्मिक पर्व केवल मनोरंजन के लिए नहीं होते, बल्कि ये समाज को दिशा देने का काम करते हैं। दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है और इस पर्व के जरिए समाज को यह संदेश दिया जाना चाहिए कि बुराई चाहे किसी भी रूप में हो, उसका अंत होना तय है। लेकिन इस प्रक्रिया में किसी वर्ग या लिंग की गरिमा आहत नहीं होनी चाहिए।

आगे क्या होगा

अब सवाल यह उठ रहा है कि आने वाले समय में इस फैसले का क्या असर होगा। क्या देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह के प्रतीकात्मक पुतला दहन पर रोक लगेगी? फिलहाल इतना तय है कि इंदौर में इस बार दशहरे पर केवल रावण दहन ही होगा और शूर्पणखा दहन कार्यक्रम पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।

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