सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में कांवड़ यात्रा के दौरान भगदड़ और दम घुटने से 4 श्रद्धालुओं की मौत, प्रशासन पर लापरवाही के आरोप।
11 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा बनी मौत का सफर
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित कुबेरेश्वर धाम एक बार फिर श्रद्धा और व्यवस्था की टकराहट का गवाह बना। बाबा कुबेरेश्वर को जल चढ़ाने के लिए आयोजित 11 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा के दौरान दो दिन में चार श्रद्धालुओं की मौत हो गई। यह यात्रा पंडित प्रदीप मिश्रा के नेतृत्व में आयोजित की गई थी, जिसमें देशभर से लाखों भक्त शामिल हुए।
मंगलवार को रुद्राक्ष वितरण के दौरान मची भगदड़, दो महिलाओं की मौत
भीड़ ने जैसे ही कुबेरेश्वर धाम मंदिर परिसर में प्रवेश किया, उसी दौरान रुद्राक्ष वितरण के दौरान भगदड़ मच गई। अफरातफरी में दो महिलाओं की दम घुटने से मौत हो गई। यह हादसा मंगलवार दोपहर हुआ, जब मंदिर परिसर पूरी तरह से श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि आयोजकों और प्रशासन की ओर से भीड़ प्रबंधन की कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई थी। कोई नियंत्रित प्रवेश द्वार नहीं था, जिससे एक साथ हजारों लोग मंदिर में घुसने लगे और हादसा हो गया।
बुधवार को फिर दो श्रद्धालुओं की मौत, प्रशासन पर उंगली
भगदड़ की भयावहता से अभी लोग उबरे भी नहीं थे कि बुधवार को दो और श्रद्धालुओं की मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया। बताया गया कि एक व्यक्ति होटल के बाहर खड़े-खड़े गिर गया, जबकि दूसरा श्रद्धालु कुबेरेश्वर धाम परिसर में चक्कर खाकर गिर पड़ा।
दोनों की मौत का कारण अत्यधिक भीड़ और दम घुटना बताया जा रहा है। चश्मदीदों ने दावा किया कि तापमान और उमस के बीच जरूरत भर का पीने का पानी और प्राथमिक उपचार भी उपलब्ध नहीं था।
श्रद्धालुओं की नाराजगी, पुलिस पर लापरवाही के गंभीर आरोप
कांवड़ यात्रा में शामिल कई श्रद्धालुओं ने कहा कि आयोजकों ने सोशल मीडिया, भाषणों और प्रचार के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को बुलाया, लेकिन भीड़ को संभालने के लिए पुलिस और प्रशासन की तैयारियां बेहद कमजोर थीं।
कई श्रद्धालु गुस्से में नजर आए। एक श्रद्धालु ने कहा, "भीड़ देखकर लग रहा था कि जैसे कांवड़ यात्रा नहीं, कोई राजनीतिक रैली हो रही हो।" कई ने यह भी आरोप लगाया कि मंदिर परिसर में प्रवेश और निकासी के लिए कोई नियोजित मार्ग नहीं बनाए गए, जिससे भगदड़ की स्थिति बनी।
भारी भीड़, कमजोर इंतजाम और मौतों का सिलसिला
सूत्रों के अनुसार, करीब पांच लाख श्रद्धालु बुधवार को सिवान नदी से जल लेकर कांवड़ यात्रा में शामिल हुए। यह यात्रा करीब 11 किलोमीटर की थी जो कुबेरेश्वर धाम मंदिर पर आकर समाप्त होती है।
श्रद्धालु पूरे उत्साह और भक्ति भाव से यात्रा में शामिल हुए थे। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग सभी भक्तों ने मिलकर "बोल बम" के जयकारे लगाए, लेकिन व्यवस्था की कमी ने आस्था के इस महापर्व को मातम में बदल दिया।
रूद्राक्ष वितरण बना हादसे का केंद्र, वीडियो हुआ वायरल
मंगलवार को रुद्राक्ष वितरण के दौरान मची भगदड़ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इसमें साफ दिख रहा है कि श्रद्धालु रुद्राक्ष लेने के लिए एक-दूसरे को धक्का दे रहे हैं और हालात बेकाबू हो चुके हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया कि मंच से बार-बार रुद्राक्ष वितरण की घोषणा की जा रही थी, जिससे लोग लालायित होकर भागे चले आ रहे थे। लेकिन ना कोई कतारबद्ध प्रणाली थी, ना ही प्रशासन का कोई स्पष्ट नियंत्रण।
जांच के आदेश, फिर भी जवाबदेही का इंतजार
चार मौतों के बाद अब प्रशासन ने जांच के आदेश दे दिए हैं। स्थानीय प्रशासन और पुलिस पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा में कोताही बरतने का आरोप है।
हालांकि अब तक किसी भी अधिकारी या आयोजन समिति के खिलाफ कोई कार्रवाई की खबर नहीं है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन मौतों की जिम्मेदारी कोई लेगा?
देशभर से आए थे श्रद्धालु, लौटे मातम में डूबे
मृतकों में से एक हरियाणा और एक गुजरात का निवासी था। वे श्रद्धा भाव से अपने परिवार के साथ कुबेरेश्वर धाम दर्शन को आए थे। उन्हें क्या पता था कि ये यात्रा उनकी जिंदगी की आखिरी यात्रा बन जाएगी।
परिजन स्तब्ध हैं, और सवाल कर रहे हैं कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बुलाया गया, तो व्यवस्था क्यों नहीं की गई? कांवड़ यात्रा जैसे आयोजन में सुरक्षा सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी।
प्रदीप मिश्रा की चुप्पी पर भी उठे सवाल
इतने बड़े हादसे के बाद पंडित प्रदीप मिश्रा की तरफ से कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। श्रद्धालुओं का कहना है कि जिस आयोजन में इतनी भीड़ होनी थी, उसमें खुद आयोजक को भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा की योजना पहले से तय करनी चाहिए थी।
लोगों का यह भी कहना है कि धर्म के नाम पर इस तरह की लापरवाही स्वीकार नहीं की जा सकती, खासकर तब जब इसकी कीमत इंसानी जानों से चुकानी पड़े।


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