व्हीलचेयर पर होने के कारण छात्रा को LLM एडमिशन से किया इनकार, DM की सख्ती से मिला इंसाफ, यूनिवर्सिटी ने किया दाखिला
कानपुर में शिक्षा के अधिकार से वंचित करने का मामला
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में मानवता और संवैधानिक अधिकारों को चुनौती देने वाली एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। एक निजी विश्वविद्यालय ने व्हीलचेयर पर आने वाली छात्रा को एलएलएम में दाखिला देने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि वह दिव्यांग है। छात्रा की लड़ाई ने नया मोड़ तब लिया जब जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह ने मामले में दखल देकर छात्रा को उसका हक दिलाया।
छात्रा श्रेया शुक्ला को किया गया प्रवेश से इनकार
रामबाग की रहने वाली श्रेया शुक्ला, जिन्होंने डीसी लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की है, एलएलएम करना चाहती थीं। पीड़िता ने बताया कि दाखिले से पहले विश्वविद्यालय प्रशासन ने न केवल प्रवेश की स्वीकृति दी थी, बल्कि दिव्यांग श्रेणी में होने के कारण फीस में छूट और आवश्यक सुविधाएं देने की बात भी कही थी। मगर जब श्रेया 29 जुलाई को दाखिले के लिए पहुंचीं, तो साफ इनकार कर दिया गया।
विश्वविद्यालय का हैरान करने वाला रवैया
विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने श्रेया से कह दिया, “हम व्हीलचेयर पर आने वाले छात्रों को दाखिला नहीं देते।” यह कथन न केवल असंवेदनशील था बल्कि भारतीय कानूनों और यूजीसी के दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन था। इस अपमानजनक व्यवहार से आहत छात्रा और उनके पिता अधिवक्ता एल.के. शुक्ला ने 30 जुलाई को जनता दर्शन में जिलाधिकारी से मुलाकात की और पूरे मामले की जानकारी दी।
डीएम के हस्तक्षेप ने बदली तस्वीर
जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने मामले को तुरंत गंभीरता से लिया और एसडीएम सदर अनुभव सिंह को जांच कर उचित कार्रवाई के निर्देश दिए। एसडीएम ने विश्वविद्यालय प्रबंधन से संपर्क किया और उन्हें बताया कि दिव्यांगों को शिक्षा से वंचित करना कानूनी अपराध है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी संस्थान को यह अधिकार नहीं कि वह व्हीलचेयर पर होने के आधार पर किसी विद्यार्थी को शिक्षा से रोके।
श्रेया ने पास किया एंट्रेंस टेस्ट
डीएम के हस्तक्षेप और लगातार मॉनिटरिंग के चलते 1 अगस्त को विश्वविद्यालय ने श्रेया के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की। श्रेया ने यह परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की और प्रशासन ने अंततः उनका दाखिला स्वीकार कर लिया। इससे यह सिद्ध हुआ कि छात्रा केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि अकादमिक रूप से भी पूरी तरह योग्य थी।
पिता ने जताया प्रशासन के प्रति आभार
छात्रा श्रेया शुक्ला के पिता ने जिलाधिकारी का आभार जताते हुए कहा कि यदि समय पर हस्तक्षेप न होता, तो उनकी बेटी का एक साल बर्बाद हो जाता। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार हर छात्र का है, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो। डीएम ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि शासन ने दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण हेतु सख्त नियम बनाए हैं और जो संस्थान इन्हें नहीं मानते, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कानून के खिलाफ है इस तरह का भेदभाव
दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 और यूजीसी के गाइडलाइंस के मुताबिक कोई भी शैक्षिक संस्था किसी दिव्यांग छात्र को दाखिला देने से मना नहीं कर सकती। इस मामले में विश्वविद्यालय की ओर से किया गया व्यवहार पूरी तरह से अवैधानिक और असंवेदनशील था, जिसे डीएम के हस्तक्षेप ने समय रहते दुरुस्त किया।
कानपुर डीएम की भूमिका की सराहना
कानपुर जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह की तत्परता और संवेदनशीलता ने एक बार फिर साबित कर दिया कि प्रशासन यदि चाहे तो व्यवस्था में बदलाव संभव है। उन्होंने दिखा दिया कि एक योग्य छात्रा को उसके सपने पूरे करने से कोई नहीं रोक सकता, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो।


0 टिप्पणियाँ
आपका विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण है, कृपया अपनी राय नीचे लिखें।