मेरठ में जलभराव के बीच कमिश्नर ने जूते उतारे, जींस चढ़ाई, हाथ में जूते लेकर निकले, वायरल तस्वीर से नगर निगम की खुली पोल
मेरठ में मानसून की मार: शहर जलमग्न, अफसरों को उतरना पड़ा मैदान में
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में बीते 24 घंटों की भारी बारिश ने पूरे शहर की व्यवस्था को पानी-पानी कर दिया। शहर के अधिकतर इलाकों में सड़कें तालाब में तब्दील हो गईं। हालात इतने बिगड़ गए कि खुद मेरठ मंडल के कमिश्नर ऋषिकेश भास्कर यशोद और जिला अधिकारी डॉ वीके सिंह को जलभराव के बीच सड़कों पर उतरना पड़ा।
नगर निगम कार्यालय बना 'तालाब', जूते उतारने पड़े कमिश्नर साहब को
कमिश्नर ऋषिकेश भास्कर यशोद जब मेरठ नगर निगम कार्यालय पहुंचे, तो उन्हें वहां भी पानी से भरी सड़कों का सामना करना पड़ा। जलभराव इतना था कि उन्हें अपनी जींस घुटनों तक चढ़ानी पड़ी और जूते हाथ में लेकर गाड़ी की ओर जाना पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम की तस्वीर किसी ने खींच ली, जो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। तस्वीर में कमिश्नर साहब के साथ नगर निगम के कई अधिकारी भी नजर आ रहे हैं।
जलभराव में डूबा मेरठ, नगर निगम पर उठे सवाल
नगर निगम की जिम्मेदारी होती है कि शहर में नालों की नियमित सफाई कराई जाए ताकि जलभराव की स्थिति उत्पन्न न हो। इसके लिए हर साल करोड़ों रुपये का बजट भी पास किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद हर बार की तरह इस बार भी शहर की सड़कों पर पानी भर गया। नगर निगम की लापरवाही का नजारा इस बार खुद अफसरों को भी झेलना पड़ा।
अधिकारी हुए मजबूर, खुद उतरकर किया निरीक्षण
जल निकासी की लचर व्यवस्था को देखते हुए कमिश्नर ने नगर निगम अधिकारियों के साथ बैठक की। वहीं, जिला अधिकारी डॉ वीके सिंह भी दोपहर में शहर के विभिन्न इलाकों का निरीक्षण करने पहुंचे। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नागरिकों की शिकायतों के बाद उन्हें खुद पानी में उतरकर निरीक्षण करना पड़ा।
सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीर, जनता का फूटा गुस्सा
जिस क्षण कमिश्नर ऋषिकेश भास्कर जल से लबालब नगर निगम परिसर से बाहर निकल रहे थे और हाथ में जूते लिए हुए अपनी कार की ओर बढ़ रहे थे, उस पल को कैमरे में कैद कर लिया गया। यह तस्वीर देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लोग इस तस्वीर को लेकर नगर निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
नगर निगम की कार्यशैली पर उठे सवाल, सिस्टम पर फिर भरोसा टूटा
तस्वीरों के वायरल होने के बाद नगर निगम की पोल एक बार फिर खुल गई है। नगर निगम जिन नालों की सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों खर्च करता है, वहीं नाले बारिश के पानी को निकालने में असमर्थ साबित हुए। नतीजा ये हुआ कि कमिश्नर से लेकर आम नागरिक तक सभी को जलभराव की समस्या झेलनी पड़ी।
अधिकारियों की सक्रियता के बावजूद सिस्टम बेहाल
हालांकि, अधिकारियों की तत्परता जरूर दिखाई दी, लेकिन यह सवाल अभी भी बरकरार है कि आखिर नगर निगम के दावों के बावजूद शहर क्यों डूब जाता है? क्या नालों की सफाई सिर्फ कागजों पर होती है? क्या बजट केवल खानापूर्ति का हिस्सा बन गया है?
जनप्रतिनिधियों की शिकायतों के बाद बढ़ी सक्रियता
बताया जा रहा है कि पिछले कई दिनों से शहर में जलभराव की स्थिति पर जनप्रतिनिधि और आम लोग नगर निगम से शिकायत कर रहे थे, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। आखिरकार जब स्थिति बदतर हो गई, तो जिले के बड़े अफसरों को खुद उतरकर मुआयना करना पड़ा।
स्थानीय लोगों ने जताई नाराजगी
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर नगर निगम समय रहते नालों की सफाई करता और जल निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्था करता, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। कई इलाकों में तो लोगों के घरों में भी पानी घुस गया। व्यापारियों को भी नुकसान झेलना पड़ा।
भारी बारिश में खुली व्यवस्था की पोल
इस घटना ने नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की तैयारियों की असलियत उजागर कर दी है। यह सवाल केवल मेरठ तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर के उन शहरों के लिए भी है जहां बारिश होते ही सड़कों पर नाव चलने की नौबत आ जाती है।


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