ACP मोहसिन खान को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, कोर्ट बोला- दूसरी महिला से संबंध रखना कदाचार नहीं, निलंबन पर लगाई रोक।
कानपुर:
उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा में तैनात रहे आईपीएस अफसर और पूर्व एसीपी मोहसिन खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उनके निलंबन आदेश पर फिलहाल रोक लगाते हुए सरकार से चार हफ्ते में जवाब तलब किया है। मोहसिन खान पर IIT कानपुर की एक छात्रा ने यौन शोषण का आरोप लगाया था, जिसके बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। लेकिन हाईकोर्ट ने यह कहते हुए राहत दी कि "दूसरी महिला से संबंध होना कदाचार नहीं है।"
हाईकोर्ट ने क्यों दी मोहसिन खान को राहत?
मामले की सुनवाई जस्टिस करुणेश सिंह पवार की एकल पीठ में हुई, जहां वादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्र ने दलील दी कि यूपी सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 के अनुसार, अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो वह कदाचार की श्रेणी में आता है, लेकिन किसी महिला से संबंध रखना—चाहे नैतिक रूप से गलत हो—नियमों की कानूनी परिभाषा में नहीं आता। कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताते हुए मोहसिन खान के निलंबन पर स्टे लगा दिया।
क्या था पूरा मामला?
मोहसिन खान पर आरोप था कि कानपुर में तैनाती के दौरान उन्होंने IIT की एक छात्रा से नजदीकी बढ़ाई और बाद में उनके साथ संबंध बनाए। छात्रा ने उन पर रेप का केस दर्ज कराया था, जिसकी जांच के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था। लेकिन अब कोर्ट के आदेश से साफ हो गया है कि केवल संबंध बनाने को आधार बनाकर उन्हें नौकरी से हटाना या निलंबित करना आचरण नियमों के तहत उचित नहीं है।
28 जुलाई को अगली सुनवाई
अदालत ने सरकार को चार सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने को कहा है और मोहसिन खान को भी जवाबी हलफनामा देने का मौका दिया है। अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित है। तब तक मोहसिन खान के निलंबन पर रोक बरकरार रहेगी।
IIT से जुड़ा था मोहसिन का क्रिमिनोलॉजी कोर्स
जानकारी के मुताबिक, मोहसिन खान वर्ष 2013 बैच के आईपीएस अफसर हैं और कानपुर में तैनाती के दौरान उन्होंने IIT कानपुर में क्रिमिनोलॉजी का कोर्स जॉइन किया था। इसी दौरान उनकी मुलाकात एक छात्रा से हुई थी, जो बाद में गंभीर आरोपों में बदल गई।
हाईकोर्ट के फैसले से प्रशासन पर सवाल
इस आदेश के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिना मजबूत आचरण उल्लंघन के आधार पर निलंबन करना कानूनी है? और क्या पुलिस विभाग अब हर अफसर के निजी जीवन में झांक कर कार्रवाई करेगा? कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि जब तक कदाचार सिद्ध न हो, तब तक नौकरी में दखल नहीं दिया जा सकता।
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