तीन दिवसीय संस्कृति महोत्सव में गुरुग्राम पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने किया भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र का शिलान्यास



विशेष संवाददाता भावेश की रिपोर्ट

गुरुग्राम में बनाए जाने वाला भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र 'एक भारत - श्रेष्ठ भारत' की संकल्पना को साकार करेगा। इस केंद्र के माध्यम से राज्यों के बीच संस्कृति का आदान-प्रदान होगा। देश-विदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों  व सरस्वती नदी के अवशेषों का संग्रहालय भी बनाया जाएगा। संग्रहालय के माध्यम से सरस्वती नदी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी आएगी।

देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीन दिवसीय संस्कृति महोत्सव के दूसरे दिन सेक्टर-9ए स्थित सिद्धेश्वर स्कूल में प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए जिसमे उन्होंने उम्मीद जताई की कि दिव्य परिवार सोसायटी द्वारा बनाए जाने वाला भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को साकार करेगा। राष्ट्रपिता देश की भाषाओं पर जोर देते थे।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन में कहा कि महत्मा गांधी कहते थे कि हर भारतवासी को अंग्रेजी के साथ-साथ एक भारतीय भाषा को जरूर सीखना चाहिए। हमे सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए। भाषाओं का सम्मान ही संस्कृति का सम्मान है। यह केंद्र भाषाओं के बीच की दूरियों को मिटाने में भी मील का पत्थर साबित होगा। आदिकाल से ही भारत मे विभिन्न भाषाएं हैं, उसके बावजूद भी हमारी संस्कृति एक है। भाषाएं समाज को जोड़ने का कार्य करती हैं।

केंद्र सरकार का प्रयास है कि चिकित्सा, इंजीनियरिंग व अन्य उच्च पाठ्यक्रमों की पढ़ाई अंग्रेजी के अलावा भारतीय भाषाओं में भी हो। न्यायालयों में भी भारतीय भाषाओं में सुनवाई हो। इससे आम आदमी को न्याय मिल पाएगा। उन्हें गर्व है कि उनके समय में नई शिक्षा नीति बनी। प्रवासी भारतीयों पर भी देश को गर्व है जो अपनी प्रतिभा के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को जीवंत किए हुए हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ने आगे कहा कि केंद्र का निर्माण महाभारत काल से जुड़े गुरुग्राम में हो रहा है। यह बहुत ही खुशी का विषय है। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने का कार्य भी हरियाणा में किया जा रहा है। इससे हरियाणा का पुरातात्विक महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।


पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र की सुगंध केवल गुरुग्राम तक ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पहुंचेगी। भाषाएं भले ही अलग-अलग हों, लेकिन उनके बोलने से पता चल जाता है कि वे क्या कह रहे हैं। भारत में भाषाएं तो अनेक हैं लेकिन उनके भाव एक है।

वेशभूषा, खाना, भाषा अलग होने के बाद भी संस्कृति एक है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देती है। उन्होंने युवाओं को आह्वान किया कि वे संस्कृति को पढ़ें और अपने ज्ञान को बढ़ाएं।

भारतीय भाषाएं राज्यों की संस्कृति को आगे बढ़ाने में सहयोगी हैं। सरस्वती नदी को पुनर्जीवित किए जाने की दिशा में प्रयास को ऐतिहासिक कार्य बताते हुए कहा कि यह भागीरथी प्रयास है।

भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के चेयरमैन व राज्यसभा के पूर्व महासचिव डा. योगेंद्र नारायण एवं केंद्र के महासचिव डा. अमित जैन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक पवन जिंदल, स्वामी रामेश्वरानंद, पद्मश्री डा. जितेंद्र सिंह शंटी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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