दंगों का दर्दः हरे हैं जख्म, कोई बताए...कुसूर क्या था

यूं तो वक्त बड़े से बड़ा जख्म भर देता है, लेकिन दिल्ली दंगों का दर्द भुलाया नहीं जा सकता।

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