“नर्मदा के घाट क्या पेशाब करने की जगह हैं?” बरमान घाट पर अफसर ने युवक को जड़ा थप्पड़, पुजारी अपमान से भड़का समाज, वायरल वीडियो ने मचाया बवाल



नरसिंहपुर के बरमान घाट पर स्वच्छता निरीक्षण के दौरान सीईओ पर युवक को थप्पड़ मारने और पुजारी से बदसलूकी के आरोप, वीडियो वायरल


नर्मदा के पावन घाट पर विवाद की शुरुआत

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित नर्मदा नदी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखने वाला बरमान घाट इन दिनों किसी तीर्थ या आस्था की वजह से नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक विवाद के कारण चर्चा में है। स्वच्छता निरीक्षण के नाम पर पहुंचे जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश पर आरोप है कि उन्होंने घाट पर मौजूद एक युवक के साथ न सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग किया, बल्कि सरेआम थप्पड़ भी जड़ दिया। यह पूरी घटना कैमरे में कैद हो गई और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसके बाद मामला स्थानीय विवाद से निकलकर प्रदेश स्तर की बहस बन गया।

स्वच्छता निरीक्षण या शक्ति प्रदर्शन

जानकारी के मुताबिक, बरमान घाट पर बीते कुछ समय से गंदगी, अव्यवस्थित दुकानों और मूलभूत सुविधाओं की कमी को लेकर शिकायतें सामने आ रही थीं। इन्हीं शिकायतों के आधार पर जिला पंचायत सीईओ निरीक्षण के लिए घाट पर पहुंचे थे। शुरुआत में इसे एक सामान्य प्रशासनिक दौरा माना गया, लेकिन चंद मिनटों में ही माहौल बदल गया। आरोप है कि घाट पर खड़े एक युवक को देखते ही सीईओ का गुस्सा भड़क उठा और उन्होंने ऊंची आवाज में डांटना शुरू कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, युवक कुछ कह पाता उससे पहले ही उसे थप्पड़ मार दिया गया।

“नर्मदा के घाट क्या पेशाब करने के लिए हैं?”

वायरल वीडियो में साफ देखा और सुना जा सकता है कि अफसर गुस्से में कहते हैं, “नर्मदा के घाट क्या पेशाब करने के लिए हैं?” इसके तुरंत बाद वह युवक को थप्पड़ मारते नजर आते हैं। यही नहीं, वीडियो में यह भी सुना जा सकता है कि वह एक अन्य व्यक्ति को धमकी भरे लहजे में कहते हैं, “जितना ऊपर हो, उतना ही नीचे गड़वा दूंगा।” इस संवाद ने पूरे विवाद को और गंभीर बना दिया, क्योंकि इसे एक सरकारी अफसर की ओर से खुलेआम धमकी के तौर पर देखा गया।

युवक पर क्या लगे आरोप

स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस युवक को थप्पड़ मारा गया, वह घाट पर अपनी छोटी-सी दुकान या ठेला लगाकर रोजी-रोटी कमा रहा था। आरोप है कि बिना किसी नोटिस या वैधानिक प्रक्रिया के सीईओ ने उसकी दुकान हटाने का आदेश दे दिया और दोबारा घाट पर नजर न आने की चेतावनी भी दी। लोगों का कहना है कि यदि कोई नियम उल्लंघन था तो उसके लिए कानूनी कार्रवाई की जा सकती थी, लेकिन सरेआम मारपीट और अपमान किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

वरिष्ठ पुजारी के आरोपों से बढ़ा विवाद

इस पूरे घटनाक्रम ने तब और तूल पकड़ लिया, जब बरमान घाट के वरिष्ठ पुजारी पंडित कैलाश चंद्र मिश्रा सामने आए। उन्होंने आरोप लगाया कि निरीक्षण के दौरान जब उन्होंने घाट पर सुलभ शौचालय, साफ-सफाई और श्रद्धालुओं के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी की ओर सीईओ का ध्यान दिलाया, तो अधिकारी ने उनके साथ भी अभद्र व्यवहार किया। पुजारी के अनुसार, उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया, जिससे न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत गरिमा को ठेस पहुंची बल्कि पूरे ब्राह्मण समाज की भावनाएं आहत हुईं।

धार्मिक स्थल पर सम्मान बनाम प्रशासन

बरमान घाट नर्मदा परिक्रमा और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसे में घाट के पुजारी और सेवादारों की भूमिका अहम मानी जाती है। पुजारी वर्ग का कहना है कि प्रशासन को स्वच्छता सुनिश्चित करने का पूरा अधिकार है, लेकिन इसका तरीका मर्यादित और सम्मानजनक होना चाहिए। धार्मिक स्थल पर अपमानजनक भाषा और मारपीट से प्रशासन की छवि पर भी सवाल खड़े होते हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो

घटना का वीडियो सामने आते ही फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर तेजी से वायरल हो गया। वीडियो को लेकर लोग दो खेमों में बंटते नजर आए। एक पक्ष ने अफसर के व्यवहार की कड़ी निंदा की और इसे सत्ता का दुरुपयोग बताया, जबकि दूसरा पक्ष स्वच्छता के नाम पर सख्ती को जरूरी ठहराता दिखा। हालांकि, अधिकांश लोगों की राय यही रही कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी हिंसा और अपमान का सहारा नहीं लिया जा सकता।

प्रशासनिक कार्रवाई की मांग तेज

वीडियो वायरल होने के बाद ब्राह्मण सभा और अन्य सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा गया कि यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। संगठनों का कहना है कि एक सरकारी पद पर बैठे व्यक्ति से संयम और संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है, न कि आक्रामकता और धमकी की।

स्थानीय लोगों में आक्रोश

बरमान घाट और आसपास के इलाकों में इस घटना को लेकर आक्रोश का माहौल है। स्थानीय दुकानदारों और नाविकों का कहना है कि प्रशासन अक्सर बिना संवाद के सीधे कार्रवाई पर उतर आता है, जिससे आम लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है। उनका कहना है कि घाट की सफाई और व्यवस्था सुधारने में स्थानीय लोगों का सहयोग लिया जाना चाहिए, न कि उन्हें डराया या अपमानित किया जाना चाहिए।

सीईओ की सफाई में क्या कहा

विवाद बढ़ने पर जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश ने अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा कि वे स्वयं नर्मदा के भक्त हैं और घाटों की स्वच्छता उनके लिए सर्वोपरि है। उनके अनुसार, गंदगी फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि नर्मदा की पवित्रता बनी रहे। उन्होंने यह भी कहा कि उनके बयान और व्यवहार को गलत संदर्भ में लिया गया है, हालांकि उन्होंने थप्पड़ मारने के आरोपों पर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा।

सवालों के घेरे में प्रशासनिक आचरण

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या स्वच्छता और अनुशासन के नाम पर किसी अफसर को सार्वजनिक रूप से मारपीट करने का अधिकार है। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी स्थिति में हाथ उठाना या धमकी देना सेवा नियमों और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। यदि कोई नियम तोड़ा गया है तो उसके लिए तय प्रक्रिया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

नर्मदा घाटों की स्वच्छता का बड़ा मुद्दा

यह मामला केवल एक थप्पड़ या विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि नर्मदा घाटों की स्वच्छता और व्यवस्थाओं की असल स्थिति को भी उजागर करता है। श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि घाटों पर पर्याप्त शौचालय, कूड़ेदान और सफाई कर्मचारी नहीं हैं। ऐसे में गंदगी फैलने की समस्या बनी रहती है, जिसका दोष अंततः आम लोगों पर डाल दिया जाता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

घटना के बाद कुछ स्थानीय नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी बयान दिए। उनका कहना है कि यदि प्रशासन वास्तव में स्वच्छता चाहता है तो उसे स्थायी समाधान पर काम करना चाहिए, न कि अचानक निरीक्षण कर लोगों पर गुस्सा निकालना चाहिए। विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को हाथोंहाथ लिया और इसे सत्ता के अहंकार का उदाहरण बताया।

जांच की मांग और आगे की राह

फिलहाल पूरा मामला जांच की मांग पर टिक गया है। सामाजिक संगठनों का कहना है कि वायरल वीडियो की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और सच्चाई सामने आनी चाहिए। यदि अफसर दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी इस तरह का व्यवहार करने से पहले सोचे।

बरमान घाट की छवि पर असर

इस विवाद का असर बरमान घाट की छवि पर भी पड़ा है। जो घाट श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है, वह अब प्रशासनिक विवाद की वजह से चर्चा में है। स्थानीय लोगों को डर है कि यदि ऐसे विवाद बढ़ते रहे तो श्रद्धालुओं की संख्या पर भी असर पड़ सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।

बरमान घाट पर हुआ यह घटनाक्रम कई सवाल छोड़ जाता है। क्या स्वच्छता अभियान केवल डंडे के बल पर सफल हो सकता है। क्या प्रशासन और जनता के बीच संवाद की कमी ऐसे टकरावों की असली वजह है। और सबसे अहम सवाल, क्या कानून से ऊपर कोई भी हो सकता है।



नर्मदा की पवित्रता और प्रशासन की जिम्मेदारी

नर्मदा नदी केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। इसकी पवित्रता बनाए रखना प्रशासन और समाज दोनों की जिम्मेदारी है। लेकिन यह जिम्मेदारी तभी निभाई जा सकती है, जब नियमों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं का भी ध्यान रखा जाए। बरमान घाट का यह विवाद आने वाले समय में प्रशासनिक कार्यशैली पर एक अहम उदाहरण बन सकता है, बशर्ते इसकी निष्पक्ष जांच हो और सही निष्कर्ष निकाले जाएं।

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