रेखा गुप्ता की तीखी टिप्पणी: ममता पर आरोपों की झड़ी
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा हमला किया है। उनका आरोप है कि ममता बनर्जी राज्य में सत्ता संरक्षित अपराधियों को खुली छूट देती हैं, जबकि न्याय मांगने वाली पीड़िताओं की आवाज दबा दी जाती है। रेखा गुप्ता ने कहा कि ममता का बेटियों की आज़ादी पर दिया गया बयान “राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा” है।
सुरक्षा का अभाव, तुगलकी पहरा
रेखा गुप्ता ने यह भी आरोप लगाया कि ममता बनर्जी बेटियों की स्वतंत्रता पर तुगलकी पहरा लगाती हैं। उनका कहना है कि एक मुख्यमंत्री का कर्तव्य नारी की सुरक्षा करना है न कि उनके अधिकारों पर सवाल खड़ा करना। रेखा गुप्ता ने यह भी कहा कि जब अपराधी खुले घूमते हैं और दोषियों को संरक्षण मिलता है, तो राज्य की प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
दुर्गापुर गैंगरेप: घटना और ममता की प्रतिक्रिया
दुर्गापुर में एक 23 वर्षीय छात्रा के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आई। छात्रा निजी मेडिकल कॉलेज की छात्रा है और ओडिशा की निवासी बतायी जा रही है। ममता बनर्जी ने इस घटना पर कहा था कि “रात 12:30 बजे कैसे बाहर आई?” और यह टिप्पणी उन्होंने बाद में “संदर्भ से बाहर पेश किये जाने वाला बयान” बताया। ममता ने यह भी कहा कि उनके शब्दों को जानबूझकर मरोड़कर पेश किया गया।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और रणनीति
रेखा गुप्ता ने इस घटना को तृणमूल कांग्रेस सरकार के विफल प्रशासन और नैतिक पतन से जोड़ते हुए बताया कि राज्य नेतृत्व अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी निभाने में फेल है। उन्होंने यह भी कहा कि अपराधियों को संरक्षण देना शासन की पहचान बन गया है।
विपक्षी प्रतिक्रिया और राजनीतिक खिंचाव
ममता बनर्जी की टिप्पणी ने विरोधियों को सक्रिय कर दिया है। रेखा गुप्ता के बयान ने राजनीतिक ताप बढ़ाया है और दक्षिण बंगाल की सुरक्षा तथा कानून व्यवस्था पर बहस छेड़ दी है। कई पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक इस विषय पर बहस कर रहे हैं कि क्या राज्य इतने संवेदनशील मामलों में नेतृत्व की भूमिका नीति, नैतिकता और संवेदनशीलता के दायरे में रही है या नहीं।
सार्वजनिक असर और सामाजिक प्रतिक्रिया
यह वाकया सिर्फ एक उपनगरीय घटना नहीं है; यह समस्या उन बुनियादी सवालों को भी खाड़ा करता है — सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी, पीड़िताओं की स्वालंबन कैसे सुनिश्चित हो, और नेतृत्व की नैतिक उम्मीदों की सीमा कहाँ तक है। जनता और महिलाओं के अधिकार संगठन इस घटना को कानून व्यवस्था पर प्रतिबिंब मान रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि दोषियों को कठोर सजा मिले और राज्य शासन नारी सुरक्षा को प्राथमिकता दे।

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