अक्षरधाम में हुआ भव्य अन्नकूट उत्सव: भगवान को अर्पित किए गए 1232 व्यंजन, गोवर्धन पूजा में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब!


अक्षरधाम मंदिर में अन्नकूट उत्सव के दौरान भगवान को 1232 सात्विक व्यंजन अर्पित किए गए, गोवर्धन पूजा में हजारों श्रद्धालु उमड़े।

दिव्यता से ओतप्रोत हुआ अक्षरधाम: गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव ने रचा नया अध्याय

दिल्ली के प्रतिष्ठित स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर में इस वर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव अत्यंत भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि भक्तिभाव और भारतीय संस्कृति की अद्भुत झलक भी प्रस्तुत करता रहा। महंत स्वामी महाराज की प्रेरणा से आयोजित इस समारोह में श्रद्धालुओं का अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ पड़ा, जिन्होंने दिव्यता से परिपूर्ण वातावरण में भगवान के दर्शन और प्रसाद का लाभ लिया।

गोवर्धन पर्वत की बनी प्रतिकृति, हुई दिव्य महापूजा

सुबह 10 बजे से इस महोत्सव की शुरुआत गोवर्धन महापूजा से हुई। इस अवसर पर मंदिर परिसर में गोवर्धन पर्वत की भव्य प्रतिकृति बनाई गई, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना का प्रतीक बनी। वरिष्ठ संतों ने वैदिक मंत्रोच्चार और दिव्य आरती के साथ पूजा संपन्न की। वातावरण में गूंजते भक्ति गीतों और शंखध्वनि ने सभी को आध्यात्मिक अनुभूति से भर दिया।

1232 सात्विक व्यंजनों का भोग अर्पण

इस भव्य उत्सव का मुख्य आकर्षण भगवान को अर्पित किए गए 1232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन रहे। यह अन्नकूट भोग परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का प्रतीक है। इन व्यंजनों को विशेष रूप से तैयार किया गया और सुंदर थालों में सजाकर भगवान के समक्ष अर्पित किया गया। 'तेरा तुझको अर्पण' की भावना से ओतप्रोत यह भोग अर्पण समारोह भक्तों को आत्मिक संतोष और गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

महंत स्वामी महाराज का आशीर्वाद

समारोह के दौरान महंत स्वामी महाराज ने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस पावन अवसर पर हर व्यक्ति तन, मन और धन से समृद्ध और शांतिपूर्ण बने। उन्होंने यह भी कहा कि नव वर्ष के इस प्रारंभिक दिन पर सभी को सकारात्मक गुणों को आत्मसात करना चाहिए और निंदा अथवा दोषारोपण से बचना चाहिए। उनका संदेश था कि समाज में प्रेम, सहिष्णुता और विनम्रता का भाव बना रहे।

हजारों श्रद्धालुओं की सहभागिता

इस आयोजन में देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। सुबह से ही मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं। अन्नकूट दर्शन हेतु श्रद्धालु घंटों इंतजार करते नजर आए। स्वयंसेवकों की एक समर्पित टीम ने व्यवस्था को संभालते हुए हर एक भक्त को सुलभ दर्शन और प्रसाद उपलब्ध कराया। इस अवसर पर मंदिर में विशेष लाइटिंग, सजावट और पुष्पों से सजाए गए प्रवेश द्वार श्रद्धालुओं को आनंदित कर रहे थे।

अन्नकूट दर्शन देर शाम तक रहे खुले

यह भव्य आयोजन देर शाम तक चलता रहा, जिससे दिल्लीवासियों और अन्य राज्यों से आए श्रद्धालुओं को दर्शन का भरपूर अवसर मिला। मंदिर के प्रत्येक कोने में भक्तिमय गतिविधियों का आयोजन किया गया, जिसमें संगीत, भजन, और सत्संग शामिल रहे। श्रद्धालुओं ने इस उत्सव को दिवाली के बाद नव वर्ष का स्वागत मानते हुए पूरे उत्साह से मनाया।

स्वामिनारायण मंदिरों में विश्वस्तरीय आयोजन

महंत स्वामी महाराज की प्रेरणा से न केवल दिल्ली बल्कि दुनियाभर में फैले 1800 से अधिक स्वामिनारायण मंदिरों और केंद्रों में अन्नकूट और दिवाली का यह पावन उत्सव मनाया गया। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में लाखों श्रद्धालुओं ने एक साथ भगवान को अन्नकूट का भोग अर्पित कर भावपूर्ण भक्ति का परिचय दिया।

धार्मिक मान्यता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के गर्व को शांत करने के लिए गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था। जब इंद्र ने भारी वर्षा की तो श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर समस्त गोकुलवासियों की रक्षा की। उसी उपलक्ष्य में आज भी गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

यह पर्व न केवल धार्मिक है, बल्कि समाज में एकता, कृतज्ञता और सामूहिक चेतना को भी बढ़ावा देता है। अन्नकूट उत्सव के माध्यम से हम भगवान के प्रति आभार प्रकट करते हैं और यह हमें सेवा, त्याग और समर्पण की प्रेरणा देता है। इसके आयोजन में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता यह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति कितनी समावेशी और भावनात्मक है।

भक्ति, सेवा और समर्पण की त्रिवेणी

अक्षरधाम में आयोजित अन्नकूट उत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि भक्ति, सेवा और समर्पण की त्रिवेणी बन गया। हजारों स्वयंसेवकों की अनथक मेहनत, संतों की आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्तों की असीम श्रद्धा ने इस आयोजन को एक आध्यात्मिक पर्व का रूप दे दिया, जो आने वाले समय में भी लोगों की स्मृति में अमिट छाप छोड़ेगा।

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