बालाघाट की संघमित्रा ने रक्षाबंधन पर पाकिस्तान की जेल में बंद भाई को भावुक खत लिखा, 4 साल से रिहाई के लिए लड़ रही लड़ाई
पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय: एक बहन की भावुक जंग
रक्षाबंधन के पवित्र अवसर पर भारत की हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसके सुख-समृद्धि और लंबी उम्र की कामना करती है। लेकिन मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए यह दिन पिछले 14 वर्षों से अधूरा है। उनके भाई प्रसन्नजीत रंगारी, जो कभी पढ़ाई में बेहद होशियार और परिवार के होनहार बेटे थे, अब पिछले 6 साल से पाकिस्तान की लाहौर स्थित कोट लखपत सेंट्रल जेल में बंद हैं। बहन का कहना है कि जब तक वह अपने भाई को वापस नहीं लाएंगी, तब तक वह किसी को राखी नहीं बांधेंगी।
इस साल रक्षाबंधन पर भी संघमित्रा ने अपने भाई के लिए एक भावुक चिट्ठी लिखी। उन्होंने सरकार से इस पत्र को जेल में उनके भाई तक पहुंचाने की अपील की है। इस पत्र में उन्होंने अपने दिल का दर्द, अपनी पीड़ा और भाई के प्रति अटूट प्रेम को शब्दों में पिरोया।
पढ़ाई में होनहार, लेकिन जिंदगी ने लिया दुखद मोड़
प्रसन्नजीत रंगारी का जन्म बालाघाट जिले के खैरलांजी में हुआ। बचपन से ही पढ़ाई में बेहद होशियार थे। उन्होंने 2011 में जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी की पढ़ाई पूरी की और एमपी स्टेट फार्मेसी काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन कराया। परिवार को उम्मीद थी कि पढ़ाई के बाद वह एक अच्छे करियर की शुरुआत करेंगे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़ दी और घर लौट आए। यह समय उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था। परिवार ने उन्हें संभालने की कोशिश की, लेकिन उनकी मानसिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाया।
रहस्यमय तरीके से गायब होना
कुछ समय बाद प्रसन्नजीत अचानक घर से गायब हो गए। परिवार ने हर जगह तलाश की, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला। आठ महीने बाद वह वापस लौटे और अपनी बहन के घर रहने लगे। कुछ समय बाद फिर अपने माता-पिता के पास चले गए।
लेकिन फिर एक दिन, वह दोबारा बिना किसी को बताए घर से निकल गए और इस बार उनका कोई सुराग नहीं मिला। महीनों की खोजबीन और निराशा के बाद, परिवार ने मान लिया कि अब प्रसन्नजीत इस दुनिया में नहीं हैं।
2021 में आया चौंकाने वाला फोन कॉल
करीब 12 साल बीत चुके थे कि साल 2021 में संघमित्रा के पास एक फोन आया। कॉल करने वाले का नाम था कुलदीप सिंह, जो 29 साल पाकिस्तान की उसी जेल में रहकर भारत लौटे थे। उन्होंने बताया कि उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत सेंट्रल जेल में बंद है और वहां ‘सुनिल अदे’ के नाम से रह रहा है।
कुलदीप सिंह ने बताया कि जेल में रहते हुए प्रसन्नजीत ने उन्हें अपना असली नाम और भारत में अपने रिश्तेदारों के नाम बताए थे। यह सुनकर संघमित्रा के पैरों तले जमीन खिसक गई।
हिरासत की कहानी
कुलदीप के मुताबिक, 1 अक्टूबर 2019 को पाकिस्तान के बाटापुर इलाके से प्रसन्नजीत को हिरासत में लिया गया था। उस समय तक उन पर कोई औपचारिक आरोप तय नहीं हुआ था। पाकिस्तान में कई भारतीय नागरिक बिना मुकदमे के वर्षों तक जेल में पड़े रहते हैं और यही हालत प्रसन्नजीत की भी है।
पिता का इंतजार और मौत
संघमित्रा बताती हैं कि भाई की पहचान से जुड़े दस्तावेज भारत में मंत्रालय को भेजे गए थे। लेकिन उनकी पुष्टि उसी दिन आई, जिस दिन उनके पिता लोपचंद रंगारी का निधन हुआ। वह बेटे का चेहरा देखे बिना ही इस दुनिया से चले गए। मां मानसिक रूप से बीमार हैं और पड़ोसियों की मदद से अपना जीवन यापन कर रही हैं।
रक्षाबंधन पर बहन का दर्द
उन्होंने यह भी बताया कि उनकी भांजियां भी अपने मामा को देखने के लिए तरस रही हैं और मां हर दिन उनके लौटने का इंतजार करती हैं।
पाकिस्तान से चिट्ठी भेजने पर पाबंदी
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चिट्ठी व कुरियर सेवा बंद हो गई। इसका मतलब है कि संघमित्रा का खत फिलहाल उनके भाई तक नहीं पहुंच सकता। यह स्थिति उनके लिए और भी दर्दनाक है।
आर्थिक संघर्ष और जिम्मेदारियां
संघमित्रा मजदूरी करके अपने परिवार और दो बेटियों का पालन-पोषण करती हैं। उनके पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं और सास बीड़ी बनाकर थोड़ी आय अर्जित करती हैं। पाकिस्तान की जेल से भाई को छुड़ाने की प्रक्रिया में आने वाले खर्च ने उनकी आर्थिक स्थिति और कमजोर कर दी है।
सरकार से उम्मीद
संघमित्रा ने भारत सरकार से अपील की है कि वह इस मामले में दखल दे और उनके भाई को पाकिस्तान की जेल से छुड़वाकर भारत लाए। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि देश के हर उस नागरिक का मुद्दा है जो बिना अपराध के विदेशी जेलों में कैद हैं।
भारत-पाकिस्तान संबंध और कैदी मामले
भारत और पाकिस्तान के बीच कई ऐसे मामले रहे हैं, जहां दोनों देशों के नागरिक गलती से सीमा पार कर गए और वर्षों तक जेल में बंद रहे। समय-समय पर दोनों देशों के बीच कैदियों की अदला-बदली होती है, लेकिन कई मामले राजनीतिक तनाव के कारण अटके रहते हैं। प्रसन्नजीत का मामला भी इसी श्रेणी में आता है।
बहन की कसम
संघमित्रा ने यह संकल्प लिया है कि जब तक वह अपने भाई को वापस नहीं लाएंगी, वह किसी और को राखी नहीं बांधेंगी। यह व्रत उन्होंने चार साल पहले लिया था और आज भी उसे निभा रही हैं।
न्याय की उम्मीद
यह कहानी सिर्फ एक बहन और भाई के रिश्ते की नहीं है, बल्कि उस उम्मीद की है जो मुश्किल हालात में भी जीवित रहती है। संघमित्रा को यकीन है कि एक दिन उनका भाई वापस लौटेगा और तब वह अपनी जिंदगी के सबसे बड़े रक्षाबंधन का त्योहार मनाएंगी।


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