मऊ में राशन कार्ड न मिलने से नाराज बुजुर्ग दूध की पॉलिथीन में कोबरा लेकर डीएम ऑफिस जा रहा था, पुलिस ने रोका और सांप छुड़वाया
मऊ में अनोखा विरोध: दूध की पॉलिथीन में कोबरा लेकर निकला बुजुर्ग
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया, जिसने पूरे इलाके को हैरान कर दिया। बरपुर इलाके के रहने वाले 65 वर्षीय किसान राधेश्याम मौर्य ने अपने राशन कार्ड न बनने से नाराज़ होकर एक अनोखे तरीके से विरोध जताने की ठान ली। उन्होंने दूध से भरी पॉलिथीन में एक जीवित कोबरा का बच्चा डालकर डीएम ऑफिस की ओर कूच कर दिया। इस अजीबोगरीब घटना की खबर पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गई।
दो साल से लंबित राशन कार्ड की समस्या
राधेश्याम मौर्य ने बताया कि उनकी पत्नी के नाम पर बना राशन कार्ड पत्नी की मृत्यु के बाद से निरस्त हो गया है। पत्नी की मौत को दो साल हो चुके हैं और तब से वह अपने नाम पर नया राशन कार्ड बनवाने के लिए अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। हर बार उन्हें आश्वासन मिला लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनके मुताबिक, कई बार आवेदन देने और संबंधित दफ्तरों में बार-बार जाने के बावजूद उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। यही कारण था कि उन्होंने लोगों और प्रशासन का ध्यान अपनी समस्या की ओर खींचने के लिए यह असामान्य कदम उठाया।
रास्ते में लोगों ने रोका, पुलिस को दी सूचना
घटना बुधवार सुबह करीब 11 बजे की है। राधेश्याम मौर्य दूध की पॉलिथीन हाथ में लेकर घर से निकले, जिसमें कोबरा का बच्चा था। पॉलिथीन में सांप की हलचल साफ दिख रही थी। वह धीरे-धीरे पैदल चलते हुए दोपहर करीब 1 बजे पुरानी तहसील इलाके तक पहुंचे, जो डीएम ऑफिस से करीब दो किलोमीटर दूर है। वहां मौजूद लोगों की नजर जैसे ही पॉलिथीन में मौजूद कोबरा पर पड़ी, उन्होंने बुजुर्ग को रोक लिया और पूछताछ शुरू की। इस दौरान किसी ने पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दे दी।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई
सूचना मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंची। अधिकारियों ने बुजुर्ग से पॉलिथीन ली और सावधानीपूर्वक जांच की तो उसमें वास्तव में एक जिंदा कोबरा का बच्चा मिला। पुलिस ने तुरंत ही वन विभाग के सहयोग से उस कोबरा को सुरक्षित नदी किनारे जंगल में छोड़ दिया। इस पूरी प्रक्रिया में यह ध्यान रखा गया कि सांप को कोई नुकसान न पहुंचे। पुलिस ने राधेश्याम को भी समझाया कि इस तरह का कदम उठाना खतरनाक है और भविष्य में ऐसा न करने की सख्त हिदायत दी।
प्रशासन का आश्वासन
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मौके पर ही राधेश्याम मौर्य की पूरी समस्या सुनी। उन्हें भरोसा दिलाया गया कि उनकी राशन कार्ड की समस्या का समाधान जल्द किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि संबंधित विभाग से तुरंत संपर्क कर प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
विरोध के असामान्य तरीके और प्रशासनिक तंत्र पर सवाल
यह घटना न सिर्फ मऊ जिले बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गई है। कई लोगों का मानना है कि राधेश्याम का कदम भले ही खतरनाक था, लेकिन इससे यह भी साफ होता है कि आम आदमी अपनी समस्या को लेकर कितनी हताशा और निराशा में पहुंच सकता है। प्रशासनिक प्रक्रियाओं की जटिलता और लंबी खींचतान लोगों को ऐसे असामान्य कदम उठाने पर मजबूर कर सकती है।
ग्रामीण इलाकों में राशन कार्ड की जटिल प्रक्रिया
उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण इलाकों में राशन कार्ड बनवाने की प्रक्रिया लोगों के लिए सिरदर्द बन चुकी है। आवेदन की ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रक्रिया के बावजूद तकनीकी दिक्कतें, दस्तावेजों की कमी और सत्यापन में देरी जैसे मुद्दे आम हैं। बुजुर्गों और अशिक्षित लोगों के लिए यह प्रक्रिया और भी मुश्किल हो जाती है। राधेश्याम का मामला इसी समस्या का जीता-जागता उदाहरण है, जहां दो साल तक कोशिश करने के बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिली।
घटना का सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
राधेश्याम मौर्य की यह घटना लोगों के बीच जागरूकता और चर्चा का कारण बनी है। सोशल मीडिया पर भी इस मामले की तस्वीरें और खबरें तेजी से फैल रही हैं। कई लोग प्रशासन की आलोचना कर रहे हैं कि अगर समय रहते बुजुर्ग की समस्या का समाधान हो गया होता तो शायद वह इस तरह का कदम न उठाते। वहीं, कुछ लोग इसे एक चेतावनी मान रहे हैं कि नागरिकों की समस्याओं पर संवेदनशीलता और तेजी से कार्रवाई होनी चाहिए।
पुलिस और प्रशासन की संयुक्त प्रतिक्रिया
मऊ पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई की। न केवल सांप को सुरक्षित छोड़ा गया बल्कि बुजुर्ग की समस्या को सुलझाने के लिए भी कदम उठाए गए। अधिकारियों ने कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए स्थानीय प्रशासन को ज्यादा सजग रहना होगा। साथ ही, जन शिकायत निवारण प्रणाली को और प्रभावी बनाना होगा, ताकि आम आदमी को बार-बार दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें।
मऊ में हुई यह घटना दिखाती है कि जब आम आदमी की समस्याओं को लंबे समय तक अनसुना किया जाता है, तो वह किसी भी हद तक जाने को मजबूर हो सकता है। राधेश्याम मौर्य का यह अनोखा विरोध भले ही खतरनाक था, लेकिन इसने प्रशासन का ध्यान उनकी समस्या की ओर खींचा। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन अपने वादे पर कितना खरा उतरता है और क्या इस घटना के बाद सरकारी तंत्र में नागरिकों की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है या नहीं।


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